संजीव सिंह(रांची): कांके स्थित केंद्रीय मन: चिकित्सा संस्थान (सीआइपी) और रिनपास में मानसिक रोग का इलाज कराने आ रहे 25-30 प्रतिशत लोग किसी न किसी नशे के आदी हैं. अस्पतालों में चिकित्सकों को इससे मानसिक रोग की शुरुआत का पता लगाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, अस्पतालों में संबंधित रोगी व परिवार के लोगों से प्राप्त हिस्ट्री के आधार पर ही रोग के संबंध में निष्कर्ष निकाल कर इलाज करना पड़ रहा है. नशापान से छुटकारा पाने के लिए सीआइपी के 70 बेड और रिनपास के 50 बेड के ड्रग एडिक्शन वार्ड की सभी सीटें फुल हैं. जिनमें अधिकतर शराब, स्मैक, तंबाकू तथा गांजा के आदि हो चुके रोगी हैं. सीआइपी के चिकित्सक डॉ संजय कुमार मुंडा के अनुसार, सीआइपी में नशापान से छुटकारा पाने के लिए पुरुष के साथ-साथ महिलाएं भी आ रही हैं. डॉ मुंडा ने बताया कि पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं में भी नशा करने की आदत बढ़ी है. राजधानी में ही महिलाओं के बीच ब्राउन शुगर से लेकर हेरोइन, शराब, ई-सिगरेट, गुल तथा गुड़ाकु का सेवन करनेवालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. सीआइपी में दो लड़कियां ऐसी हैं, जो ब्राउन शुगर की लत लगने के बाद इलाज करा रही हैं. यहां वैसी भी महिलाएं अपना इलाज करा रही हैं या फिर इलाज करा कर लौट गयी हैं, जिन्हें शराब और ई-सिगरेट की लत लग गयी थी. झारखंड सहित बंगाल की कई महिलाएं हैं, जो गुल व गुड़ाकू के सेवन करने की आदि हो गयी हैं और अब इलाज करा रह छुटकारा पानी चाहती हैं.
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मानसिक रोग का इलाज कराने आ रहे 30 प्रतिशत लोग नशे के आदी
कांके स्थित केंद्रीय मन: चिकित्सा संस्थान (सीआइपी) और रिनपास में मानसिक रोग का इलाज कराने आ रहे 25-30 प्रतिशत लोग किसी न किसी नशे के आदी हैं.
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