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झारखंड के पांच गांवों की 2000 एकड़ जमीन ओड़िशा के कब्जे में, 56 सालों से है सीमा विवाद

मनीष कुमार सिन्हा, जमशेदपुर : सुवर्णरेखा नदी के कटाव और दिशा बदलने के कारण पूर्वी सिंहभूम के पांच गांवों पर ओड़िशा की सरकार और वहां के लोगों ने कब्जा जमा लिया है. ये पांच गांव पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा अंचल के सोना पेटपाल, छेड़घाटी काशीपाल, कुड़िया मोहनपाल, कैमा व भुरसान हैं. इन गांवों के […]

मनीष कुमार सिन्हा, जमशेदपुर : सुवर्णरेखा नदी के कटाव और दिशा बदलने के कारण पूर्वी सिंहभूम के पांच गांवों पर ओड़िशा की सरकार और वहां के लोगों ने कब्जा जमा लिया है. ये पांच गांव पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा अंचल के सोना पेटपाल, छेड़घाटी काशीपाल, कुड़िया मोहनपाल, कैमा व भुरसान हैं.
इन गांवों के अधिकतर लोग अब सुवर्णरेखा नदी के इस पार महुलडांगरी व अन्य इलाकों में आकर बस गये हैं. ग्रामीणों का दावा है कि झारखंड की करीब दो हजार एकड़ जमीन ओड़िशा के कब्जे में है. इनमें करीब 20 एकड़ जमीन पर वहां के लोग जबरन खेती कर रहे हैं. इस जमीन का लगान झारखंड के लोग जमा करा रहे हैं. सुवर्णरेखा के कटाव से ओड़िशा के कब्जे में गयी झारखंड की जमीन के बड़े भाग पर अब बालू पसर गया है.
ओड़िशा सरकार ने झारखंड में पड़नेवाले इस क्षेत्र से बालू उठाव के लिए लीज भी जारी कर दियाहै. इसका भी लगान झारखंड के लोग भर रहे हैं.झारखंड और ओड़िशा के बीच की सीमा का निर्धारण कारिया नाला से किया गया था. कारिया नाला के उस तरफ ओड़िशा का क्षेत्र था और इस ओर झारखंड का. सुवर्णरेखा नदी तब झारखंड के इलाके से होकर गुजरती थी़ धीरे-धीरे नदी का पाट बढ़ता गया और झारखंड के इलाके में बड़ा कटाव हुआ़ बाद में ओड़िशा के लोगों ने सुवर्णरेखा नदी को ही सीमा मान कर झारखंड के लोगों को वहां से खदेड़ दिया.
उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया. केंद्र सरकार से राज्य स्तर कर इस विवाद को सुलझाने का प्रयास किया गया. लेकिन अब तक सुलझ नहीं पाया है. झारखंड के ग्रामीणों की जमीन वापस नहीं मिल पायी है. विवादास्पद जमीन पर झारखंड का अपना दावा है, तो ओड़िशा सरकार अपना दावा करती है.
विवाद को सुलझाने के लिए अब तक हुए प्रयास
– 9 सितंबर 1962 : जमशेदपुर परिसदन में दोनों राज्यों के पदाधिकारियों की बैठक, 16 सितंबर को संयुक्त स्थल निरीक्षण किया.1963 व 65 में भी हुई संयुक्त बैठक
– 1972 में तत्कालीन बंदोबस्त पदाधिकारी महिंद्र सिंह ने चारों गांव का स्थल निरीक्षण किया और विवादित जमीन को बिहार (संयुक्त बिहार) राज्य का माना
– 6 जनवरी 1976 को केंद्रीय गृह मंत्रालय के परामर्शी केवीके सुंदरम ने दोनों राज्यों के पदाधिकारियों के साथ बैठक की, परामर्शी ने मंतव्य के साथ सौंपी रिपोर्ट (कंडिका 9 में) में 50-60 सालों से उस मौजा में बिहार का राजस्व प्रशासन होने के कारण बिहार (अब झारखंड) के दावे को मान लेने का मंतव्य दिया था.
-10 दिसंबर 1983 को सिंहभूम और मयूरभंज के डीसी ने स्थल का दौरा किया और सिंहभूम के उपायुक्त के आदेश पर सीमा स्थल खूंटागाड़ी (सीमांकन) की गयी.
– 1987 से 1992 तक सीमा विवाद में कोई प्रगति नहीं हुई
-10 अगस्त 1992 को दोनों राज्यों के पदाधिकारियों की जमशेदपुर में बैठक हुई
-13 जुलाई 2005 को झारखंड और ओड़िशा के पदाधिकारियों की भुवनेश्वर में बैठक हुई, संयुक्त स्थल निरीक्षण का लिया गया निर्णय
– तीन और चार अप्रैल 2008 को संयुक्त स्थल निरीक्षण किया गया
– झारखंड स्तर पर अंतिम बार जून 2016 में बैठक हुई. पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन की ओर से सर्वे रिपोर्ट दी गयी. इसके बाद से विवाद को सुलझाने के कोई प्रयास नहीं हुए हैं. झारखंड के ग्रामीणों की जमीन अब भी ओड़िशा के कब्जे में है.
झारखंड का पक्ष
जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट के अनुसार सीमा विवाद की शुरुआत झारखंड( बिहार) की नजर में 1962 में शुरू हुई. तब ओड़िशा क्षेत्र के नेदा ग्राम के लोगों ने जमीन के विवाद को लेकर मयूरभंज के राजस्व अधिकारियों से भेंट की. स्थल निरीक्षण करने के बाद मयूरभंज के डीएम(जिला दंडाधिकारी) ने सिंहभूम के उपायुक्त को पत्र लिख कर 1.28 एकड़ जमीन ओड़िशा की होने का दावा किया.
बहरागोड़ा के महुलडांगरी के लोगों के अनुसार विवाद 1982 में तब शुरू हुआ, जब लोग उस जमीन पर खेती करने सुवर्णरेखा नदी के उस पार गये. उन्हें भगा दिया गया. 21 दिसंबर 1983 को तत्कालीन डीसी जीएस कंग ने विवादित स्थल का दौरा किया. इसके बाद सर्वे कर झारखंड-ओड़िशा की सीमा तय की गयी. इसके बाद झारखंड के ग्रामीणों ने 1987 में अपनी जमीन पर रहड़ की खेती की, लेकिन ओड़िशा प्रशासन की मदद से वहां के लोगों ने लगभग सौ एकड़ जमीन पर लगी फसल को काट लिया. जमीन पर कब्जा कर लिया. झारखंड के लोग अपनी जमीन पर नहीं जा सके.
क्या है पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन की अंतिम रिपोर्ट में
जून 2016 में राजस्व विभाग के सचिव की बैठक में लिये गये निर्णय के आधार पर जिला प्रशासन ने विवादास्पद क्षेत्र का सर्वे कराया था. जांच रिपोर्ट राजस्व विभाग को भेजी थी. झारखंड एवं ओड़िशा राज्य सीमा विवाद( मौजा सोना पेटपाल थाना नंबर 1000, मौजा छेड़ाघाटी काशीपाल थाना संख्या 1001, कुड़िया मोहनपाल थाना संख्या 1002, कैमा थाना संख्या 1003 मौजा भुरसान थाना संख्या 1005) के संबंध में पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त द्वारा 26 जून 2016 को भेजी अंतिम रिपोर्ट में बताया गया था कि सभी गांव नवसृजित गुड़ाबांधा प्रखंड के अंतर्गत आते हैं.
इसमें सोना पेटपाल, छेड़ाघाटी काशीपाल, कुड़िया मोहनपाल बेचिरागी (बिना आबादी) वाले और कैमा (आबादी 356) व भुरसान (आबादी 352) आबादी वाले गांव हैं. रिपोर्ट में गांव की मतदाता सूची, राशन कार्ड, लगान रसीद का ब्योरा दिया गया था.
बढ़ता गया सुवर्णरेखा का पाट, झारखंड की तरफ होता गया कटाव, ओड़िशा के लोग कब्जाते रहे जमीन
ओड़िशा के झाड़पोखरिया थाना क्षेत्र के नेदा ग्राम व झारखंड के बहरागोड़ा के महुलडांगरी के बीच विवाद
पहले करिया नाला था सीमा, पर अब सुवर्णरेखा को बता रही ओड़िशा सरकार
अब भी लगान भर रहे झारखंड के लोग, पूर्वी सिंहभूम में कट रहा लगान रसीद
मतदाता सूची, राशन कार्ड में झारखंड के लोगों के नाम, पर लाभ उठा रहे ओड़िशा के लोग
झारखंड के क्षेत्र में पड़नेवाले सुवर्णरेखा नदी के बालू घाटों के लिए लीज दे रही ओड़िशा सरकार
इन बालू घाटों पर पहले थी हरियाली, झारखंड के लोग करते थे खेती
खेती करने सुवर्णरेखा के उस पार गये
झारखंड के लोगों को ओड़िशा के ग्रामीणों ने कई बार खेदड़ा
इन गांवों पर है ओड़िशा का कब्जा
सोना पेटपाल
छेड़घाटी काशीपाल
कुड़िया मोहनपाल
कैमा
भुरसान
पहले था 1.28 एकड़ जमीन का विवाद
सीमा विवाद की शुरुआत ओड़िशा सरकार के अनुसार 1894 से पहले से है. 1962 में ओड़िशा के ग्रामीणों ने पहले 1.28 एकड़ जमीन पर अपना किया था. इस जमीन के कुछ भाग पर मंदिर बना था. ओड़िशा सरकार की ओर से बताया गया था कि नेदा मौजा की सीमा रेखा के संबंध में मानचित्र के अंतिम प्रकाशन के साथ ही 1894 में मयूरभंज दरबार ने आपत्ति दर्ज की थी.
मयूरभंज दरबार 1894 में प्रकाशित मानचित्र में सुवर्णरेखा के मध्य भाग को नेदा और अन्य ग्रामों के लिए सीमा रेखा मानती है. बिहार सरकार एवं मयूरभंज दरबार के बीच विवाद के बाद ब्रिटिश भारतीय पदाधिकारी क्रेवेन को सीमा निर्धारण के लिए प्रतिनियुक्त किया गया. क्रेवेन के मत को मयूरभंज दरबार ने स्वीकार नहीं किया. महाराजा मयूरभंज ने गवर्नर जनरल के एजेंट को भी पत्र भेजा था.

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