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रांची : रिनपास का आज मनाया जायेगा 93वां स्थापना दिवस, बढ़ते गये मरीज, घटती जा रही सुविधा
मनोज सिंह रांची : रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) का इतिहास तो यूं 100 साल से भी पुराना है, पर संस्थान 1925 में रांची शिफ्ट होने के बाद से अपनी स्थापना की गिनती करता है. इसकी शुरुआत 1795 में मुंगेर के गंगा नदी किनारे हुई थी. उस वक्त यह ल्यूनेटिक एसाइलम […]
मनोज सिंह
रांची : रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) का इतिहास तो यूं 100 साल से भी पुराना है, पर संस्थान 1925 में रांची शिफ्ट होने के बाद से अपनी स्थापना की गिनती करता है. इसकी शुरुआत 1795 में मुंगेर के गंगा नदी किनारे हुई थी. उस वक्त यह ल्यूनेटिक एसाइलम के नाम से जाना जाता था. 1821 में यह पटना कॉलेजिएट स्कूल शिफ्ट कर दिया गया. वहां से इसे चार सितंबर 1925 तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के हरे-भरे इलाके कांके में शिफ्ट किया गया.
इसी वक्त से संस्थान अपनी स्थापना की गिनती करता है. इसी लिहाज से चार सितंबर को संस्थान अपना 93वां स्थापना दिवस मंगलवार को मनायेगा. उस वक्त यहां मरीजों की संख्या करीब 110 थी. यहां संयुक्त भारत के समय ढाका के मरीज भी भर्ती होते थे. संस्थान का नाम उस वक्त इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ था. 1958 में इसका नाम बदल कर रांची मानसिक आरोग्यशाला (आरएमएस) कर दिया गया.
1994 में एक घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संस्थान के संचालन में हस्तक्षेप किया. इसको स्वायत्त करने का निर्देश दिया. इसकी प्रक्रिया शुरू होने के बाद 10 जनवरी 1998 को संस्थान को स्वायत्त कर दिया गया. उसी वक्त इसका नाम रखा गया रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास). इस वक्त यहां बिहार, बंगाल और ओड़िशा के मरीजों का इलाज होता था.
राज्य गठन के समय थे 16,175 मरीज : अलग राज्य होने के बाद भी बिहार और ओड़िशा के मरीजों का इलाज यहां होता रहा. दोनों राज्य यहां भर्ती होने वाले मरीजों का खर्च वहन करते थे. संस्थान को दोनों राज्य मरीजों की भर्ती का पैसा भी देते थे.
उस वक्त यहां करीब 16,175 मरीज भर्ती थे. कुछ वर्षों के बाद ही ओड़िशा के मरीजों का इलाज यहां बंद हो गया. बिहार के मरीजों का इलाज अभी भी हो रहा है. इसके एवज में बिहार एक मुश्त पैसा संस्थान को देता है. 2016-17 में यहां एक लाख सात हजार से अधिक मरीज इलाज के लिए आये थे. यहां औसतन 350 मरीज इलाज के लिए हर दिन आते हैं. इनमें 50 से अधिक मरीज नये होते हैं.
समारोह के मुख्य अतिथि होंगे स्वास्थ्य मंत्री
रिनपास का स्थापना दिवस समारोह मंगलवार को आयोजित होगा. समारोह के मुख्य अतिथि स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी होंगे. अतिथि के रूप में सांसद रामटहल चौधरी, स्वास्थ्य सचिव निधि खरे, विधायक जीतू चरण राम और प्रमंडलीय आयुक्त श्रवण साय को आमंत्रित किया गया है.
11 साल से स्थायी निदेशक नहीं
एमसीआइ ने रिनपास में शिक्षकों की कमी देखते हुए एमडी और डीपीएम में नया एडमिशन नहीं लेने का आदेश दिया है. संस्थान में शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक चिकित्सकों का करीब 50 स्वीकृत पद है. इनमें 15 के आसपास ही चिकित्सक कार्यरत हैं. यहां वार्ड ब्वॉय के 80 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं.
करीब यही स्थित यहां नर्सों की है. 2004 के बाद यहां नन गजटेड पदों पर बहाली नहीं हुई है. 1998 से नर्सों की बहाली नहीं हुई है. कई बार बहाली की प्रक्रिया शुरू की गयी है, लेकिन अब तक पूरी नहीं हुई है. यहां 2007 से स्थायी निदेशक नहीं है. 11 साल से प्रभार देकर चलाया जा रहा है. 2007 में ब्रिगेडियर डॉ पीके चक्रवर्ती अंतिम निदेशक थे.
संस्थान को बनाना है एक्सलेंस
संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ सुभाष सोरेन कहते हैं कि संस्थान को एक्सलेंस बनाना है. इस दिशा में प्रयास हो रहे हैं. कर्मियों की कमी दूर करने के लिए नियुक्ति नियमावली बनायी जा रही है. यह पूरा होनेवाला है. इस साल के अंत तक यह काम हो जायेगा. उसके बाद नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. संस्थान में मरीजों को नि:शुल्क मेडिकल केयर दिया जा रहा है. भर्ती होने वाले मरीजों को खाना भी दिया जाता है. आनेवाले कुछ महीनों में यहां हॉफ वे होम और ड्रग डिएडिक्शन सेंटर शुरू हो जायेगा.
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