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झारखंड में कछुए की 12 प्रजातियां, सबसे ज्यादा फ्लैपशेल टर्टल

टीआइसी सर्वे के अनुसार झारखंड में कछुओं की पांच प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं.

आइयूसीएन की सूची में पांच प्रजाति विलुप्ति के कगार पर और तीन संकटग्रस्तरांची (अभिषेक रॉय).

कछुआ धरती पर पाये जाने वाले सबसे पुराने जीवित सरीसृपों में एक है. इसकी प्रजातियां लाखों वर्षों से अस्तित्व में हैं. कहा जाता है कि पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाये रखने में कछुआ महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. जगह-जगह बीज फैलाव, पोषक चक्रण और जलीय आबादी को नियंत्रित करने में बड़ा योगदान होता है. पर्यावरण प्रदूषण के कारण इनका अस्तित्व अब संकट में है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन), टर्टल सर्वाइवल अलायंस और वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर-इंडिया ने वन विभाग के संयुक्त प्रयास से 2023 में देशभर के कछुओं का ट्रैफिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड (टीआइसी) जारी किया है. इसमें 12 ऐसी प्रजातियां हैं, जो झारखंड में भी पायी जाती हैं. इनमें सबसे ज्यादा इंडियन फ्लैपशेल टर्टल है, जो राज्य के प्राय: सभी जिलों की गहरे पानी वाली नदी व जलाशय में पाये जाते हैं. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कछुआ की सबसे ज्यादा प्रजातियां कोडरमा व हजारीबाग के जलाशयों में चिह्नित की गयी हैं.

कछुआ की यह प्रजातियां हुई चिह्नित

टीआइसी सर्वे के अनुसार झारखंड में कछुओं की पांच प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. इनमें गंगाज सॉफ्टसेल टर्टल, इंडियन पीकॉक सॉफ्टशेल टर्टल, ब्लैक स्पॉटेड पॉन्ड टर्टल, क्राउंड रिवर टर्टल और ट्रिकैरिनेट हिल टर्टल शामिल हैं. वहीं संकटग्रस्त स्थिति में चार प्रजातियां इंडियन नैरोहेडेड सॉफ्टशेल टर्टल, थ्री स्ट्राइप्ड रूफ्ड टर्टल और येलो टॉर्टाेइज शामिल हैं. राज्य में सबसे अधिक पायी जानेवाली कछुआ की प्रजाति इंडियन फ्लैपसेल टर्टल को आइयूसीएन ने निकट भविष्य में लुप्तप्राय की श्रेणी में रखा है. दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के फॉरेस्ट गार्ड राजा घोष ने बताया कि इसका मुख्य कारण ग्रामीणों की ओर से कछुओं का शिकार करना है. गर्मी के दिनों में कछुओं का शिकार सबसे ज्यादा होता है. ऐसे में कछुओं के संरक्षण के लिए मछुआरों को जागरूक किया जा रहा है.

लुप्तप्राय है रेड क्राउंड रूफ्ड टर्टल

इसके अलावा हजारीबाग, बोकारो, पाकुड़, गिरिडीह व देवघर में पाये जाने वाला रेड क्राउंड रूफ्ड टर्टल अब लुप्तप्राय हो चला है. इसे आखरी बार 2020 में देखा गया था. वहीं, इंडियन रूफ्ड टर्टल और इंडियन ब्लैक टर्टल को निकट भविष्य में संकटग्रस्त की श्रेणी में शामिल किया गया है. कछुआ की इन प्रजातियाें को कोडरमा, दुमका, साहेबगंज, गढ़वा, पलामू व चतरा के नदी और धान के खेतों में देखा गया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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