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रांची : खतरे में टैगोर की विरासत, दरक रहा मंडप, क्षतिग्रस्त हो चुका है गुंबद

रांची : मोरहाबादी का टैगोर हिल राजधानी रांची की एक अप्रतिम धरोहर है. इसकी यादें गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर और उनके भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर से जुड़ी हैं. टैगोर हिल के नाम से मशहूर इस पहाड़ी की चोटी पर ईंट-गारे बना महज स्मृति मंडप हीं नहीं है, बल्कि रवींद्र नाथ के समृद्ध साहित्यिक कर्म की […]

रांची : मोरहाबादी का टैगोर हिल राजधानी रांची की एक अप्रतिम धरोहर है. इसकी यादें गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर और उनके भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर से जुड़ी हैं. टैगोर हिल के नाम से मशहूर इस पहाड़ी की चोटी पर ईंट-गारे बना महज स्मृति मंडप हीं नहीं है, बल्कि रवींद्र नाथ के समृद्ध साहित्यिक कर्म की विरासत भी है.
मंडप का दरकता गुंबद, गुंबद पर निकल आये पीपल का पेड़ इसकी दुर्दशा बयां कर रही हैं. अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया, तो गुरुदेव की यह अमर स्मृति भरभरा कर गिर जायेगी. रविवार को प्रभात खबर के संवाददाता राहुल गुरु और फोटो ग्राफर अमित दास ने टैगोर हिल का जायजा लिया.
टैगोर हिल के शीर्ष पर स्थित मुख्य मंडप (ब्रह्म स्थल) में कभी गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर चिंतन-मनन किया करते थे. यह पहाड़ी उनके साहित्य सृजन, गीत का गवाह है. विभागीय लापरवाही और सामाजिक संगठनों की उदासीनता की वजह से यह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है.
मुख्य मंडप के पूर्व और उत्तर की ओर से बने गुंबद में लगे लाल पत्थर गिर चुके हैं. इसी गुंबद पर एक पीपल का पेड़ उग आया है, जो अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है. पेड़ की फैलती जड़ों ने गुंबद की छत को दो हिस्सों में बांट दिया है. मंडप की छत नीचे से फट गयी है. उसमें लगे टाइल्स कभी भी गिरने की स्थिति में पहुंच गये हैं. पूरा मंडप आठ पिलर के सहारे टिका हुआ है. इनमें से एक पिलर का निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है. पिलर में लगे छड़ भी दिख रहे हैं.
केवल सीढ़ियों को सुंदर बनाया
समय-समय पर इस ऐतिहासिक धरोहर को सजाने-संवारने का काम हुआ, लेकिन कारगर कार्य योजना नहीं बनी. सीढ़ियां तो अच्छी बन गयी हैं. जगह-जगह चेतावनी और बोर्ड भी लगा दिये गये है. दिन भर सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है. सुरक्षा की व्यवस्था है, पार्किंग के पैसे भी वसूले जा रहे हैं. लेकिन, मुख्य मंडप पर किसी का ध्यान नहीं है.
जयंती पर सक्रिय होते हैं संगठन
पर्यटन विभाग, नगर विकास आदि को छोड़ भी दें, तो इस टैगोर हिल से आत्मियता रखने वाले दर्जनों संगठन काम कर रहे हैं. लेकिन, ऐसे संगठनों की सक्रियता केवल टैगोर जयंती व विश्व धरोहर दिवस के दिन ही दिखायी देती है. माैके पर घूमने आये कई परिवार के लोगों ने कहा कि हम जिस उम्मीद से यहां आये, वह हमें निराश करती है. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक महत्व का यह स्थल केवल सीढ़ियों तक ही आकर्षित करता है.
रोप-वे की योजना ठंडे बस्ते में
पर्यटन विभाग की ओर से टैगोर हिल पर रोप-वे बनाने की योजना तैयार की थी. पर्यटन विभाग यहां आनेवाले सैलानियों के लिए रोप-वे तैयार करने का प्रस्ताव बना कर आधारभूत संरचना को मजबूत करना चाहता था. हालांकि, इस योजना पर भी कोई काम नहीं हुआ. टैगोर हिल के जीर्णाद्धार पर सरकार का विशेष ध्यान नहीं रहा.
13 साल में नहीं बन पाया ओपन एयर थियेटर
झारखंड सरकार ने टैगोर हिल के पीछे ओपेन एयर थियेटर के निर्माण का फैसला किया था. इस विहंगम स्थल पर थियेटर से संबंधित प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश कला-संस्कृति विभाग को दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने स्वयं इस स्थल का भ्रमण किया था.
जाने-माने शिक्षाविद व संस्कृति कर्मी डॉ रामदयाल मुंडा (अब स्वर्गीय) भी उनके साथ थे. ओपेन एयर थियेटर की परिकल्पना स्व मुंडा की ही थी. आठ अक्तूबर 2005 को टैगोर हिल भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री व सरकारी अफसरों की टोली इसके पिछले इलाके में पहुंची, जहां ओपेन एयर थियेटर प्रस्तावित था. डॉ रामदयाल मुंडा ने मुख्यमंत्री को थियेटर के बारे विस्तार से बताया था. सीएम ने ऐन मौके पर इससे संबंधित फाइल बढ़ाने का निर्देश साथ रहे पर्यटन सचिव एसके चौधरी को दिया था. करीब 13 साल पहले दिये गये निर्देश पर आज तक अमल नहीं हो सका है.
राजकीय शोक में भी लहर रहा तिरंगा
मुख्य गुंबद में तिरंगा झंडा लहरा रहा है. राष्ट्रीय शोक में तिरंगा झंडा झुकाने का निर्देश होता है, लेकिन टैगोर हिल में लहरा रहे तिरंगा झंडे पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया है. न ही जिला प्रशासन का ध्यान इस ओर गया है और न ही टैगोर हिल के लिए काम करने वाले संगठनों का.
जर्जर गुंबज बयां कर रहा बदहाली
मुख्य मंडप के पूर्व और उत्तर की ओर से बने गुंबद में लगे लाल पत्थर गिर चुके हैं. इसी गुंबद पर एक पीपल का पेड़ उग आया है, जो अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है.

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