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झारखंड : खाट पर हैं हर जिले के स्वास्थ्य व्यवस्था, 2600 करोड़ रुपये का बजट, पर दवाएं तक नहीं मिलतीं हैं अस्पतालों में

झारखंड की 3.30 करोड़ जनता रांची, जमशेदपुर और धनबाद के अस्पतालों के भरोसे है. जिलों के अस्पताल रेफरल सेंटर बनकर रह गये हैं. राज्य के कई जिलों के अस्पतालों में तो सामान्य सिजेरियन डिलिवरी तक की व्यवस्था नहीं है. गांवों में अस्पताल हैं, तो डॉक्टर गायब हैं. जिलों में अस्पताल हैं, डॉक्टर भी रहते हैं, […]

झारखंड की 3.30 करोड़ जनता रांची, जमशेदपुर और धनबाद के अस्पतालों के भरोसे है. जिलों के अस्पताल रेफरल सेंटर बनकर रह गये हैं. राज्य के कई जिलों के अस्पतालों में तो सामान्य सिजेरियन डिलिवरी तक की व्यवस्था नहीं है. गांवों में अस्पताल हैं, तो डॉक्टर गायब हैं.
जिलों में अस्पताल हैं, डॉक्टर भी रहते हैं, लेकिन सुविधाएं नदारद हैं. न एक्स-रे होता है, न सीटी स्कैन और न ही एमआरअाइ की सुविधा है. हां! टीकाकरण का काम हो, तो जिले से लेकर प्रखंड के अस्पताल यह काम बखूबी करते हैं. दूसरी ओर, जनता जान बचाने के लिए जैसे-तैसे रांची, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो जैसे शहरों की ओर दौड़ती है. पेश है झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की पड़ताल करती प्रभात खबर टोली की रिपोर्ट…
3.30 करोड़ जनता रांची, जमशेदपुर व धनबाद के अस्पतालों के भरोसे
सुनील चौधरी
रांची : राज्य के स्वास्थ्य विभाग का योजना मद का बजट 2600 करोड़ है. इसमें दवाओं पर 90 करोड़ खर्च होते हैं. इसके बावजूद अस्पतालों में दवाएं नहीं मिलती हैं. मरीज खुद दवाएं व सर्जिकल आइटम आदि खरीदते हैं.
‘प्रभात खबर’ ने पूरे राज्य के गांव से लेकर शहर तक के अस्पतालों पर रिपोर्ट तैयार की है. चौंकाने वाली बात यह है कि पूरे राज्य के ग्रामीण इलाकों की व्यवस्था केवल नर्सों के भरोसे है. वहीं, मशीन उपकरण आदि हैं, लेकिन काम नहीं करते. क्योंकि टेक्निशियन नहीं हैं. चतरा, गुमला, गढ़वा, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार, लोहरदगा, सिमडेगा, देवघर, दुमका, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, गिरिडीह जैसे जिलों में मशीन/उपकरण बेकार पड़े हुए हैं. कहीं भवन जर्जर हैं, तो कहीं किराये के भवन में अस्पताल हैं. बिजली, पानी तो समस्या है ही. कई जगह मॉडल अस्पताल बनाने के लिए बेड लाये गये, एसी लगाये गये. पर एसी काम नहीं करता और बेड का लाभ मरीजों को नहीं मिलता. एंबुलेंस की सुविधा जिलों में है, लेकिन ज्यादातर ड्राइवर या तेल के अभाव में खड़ी रहती है.
3000 से ज्यादा अस्पतालों में बिजली-पानी का अभाव
झारखंड में 3000 से अधिक अस्पताल ऐसे हैं, जहां न बिजली है और न ही पानी. वहीं, लगभग 1000 के अस्पताल किराये के भवन में चल रहे हैं. यह हाल झारंखड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और स्वास्थ्य उपकेंद्र (हेल्थ सब सेंटर) का है. राज्य में इस समय में 188 सीएचसी और 3958 हेल्थ सब सेंटर हैं. इनमें से 3000 में बिजली नहीं है. वहीं, 2200 उपकेंद्रों में पानी की सुविधा भी नहीं है. चतरा एक ऐसा जिला है, जहां के किसी सीएचसी या एचएससी में बिजली नहीं है. राज्य के 906 स्वास्थ्य उपकेंद्र अब भी किराये के भवन में चल रहे हैं. वहीं, 557 भवन दूसरे विभागों के भवनों में चल रहे हैं. विभाग के अपने भवन में 2495 अस्पताल चल रहे हैं.
1000 मरीजों के लिए औसतन एक बेड भी नहीं
झारखंड में 1000 की आबादी पर मरीजों के लिए एक बेड भी नहीं है. गिरिडीह जैसे जिले में 1000 की आबादी पर मात्र 0.76 बेड है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार झारखंड के सरकारी अस्पतालों में कुल 10784 बेड हैं. यानी एक बेड पर 3368 की आबादी निर्भर है. वहीं, एक सरकारी अस्पताल पर 65832 की आबादी निर्भर है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति हजार की आबादी पर औसतन 1.5 बेड होना चाहिए. जबकि झारखंड में केवल बोकारो स्टील सिटी में ही डब्ल्यूएचओ मानक के अनुरूप औसत से अधिक बेड है. यहां प्रति हजार की आबादी पर 2.89 बेड उपलब्ध है. बताया गया कि झारखंड में दुनिया के औसत के मुकाबले बेड की संख्या पूरी करने के लिए कम से कम 20 हजार अतिरिक्त बेड की जरूरत है.
राजधानी में बदलने लगी है सरकारी अस्पताल की छवि
राजीव पांडेय
रांची : राजधानी का सदर अस्पताल ‘सरकारी अस्पताल’ की छवि को बदलने में जुटा है. यहां सुबह नौ बजे से तीन बजे तक ओपीडी चलता है. स्त्री व शिशु ओपीडी दोपहर तीन से शाम छह बजे तक चलता है. यहां हर दिन 1200 से ज्यादा मरीज आते हैं. यहां संचालित 200 बेड का मातृ-शिशु अस्पताल बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करा रहा है. बेहतर बुनियादी सुविधाओं के अलावा यहां एक्सरे व अल्ट्रासाउंड जांच की भी सुविधा है.
जबकि, पैथोलॉजिकल जांच मेडॉल करता है. अस्पताल में भर्ती मरीजों को भोजन व फल भी दिया जाता है. नवजात बच्चों के लिए भी वार्ड अौर वार्मर आदि की व्यवस्था है. सदर अस्पताल में आइसीयू और हाइ डिपेंडेंस यूनिट खोलने की तैयारी हो रही है. यहां फिलहाल सीटी स्कैन और एमआरआइ जांच नहीं होती है. उम्मीद है कि जल्द ही ये जांच भी हेल्थ मैप द्वारा शुरू की जा सकती है.
आउटसोर्सिंग पर चल रहा हजारीबाग सदर अस्पताल
शंकर प्रसाद
हजारीबाग : हजारीबाग सदर अस्पताल में मैनपावर की कमी है. अस्पताल में कुल 180 बेड हैं, जबकि जरूरत 280 बेड की है. यहां के मरीजों कहते हैं कि अस्पताल में जरूरी दवा और स्लाइन व ब्लड चढ़ानेवाला आइबी सेट नहीं मिलता है. ये सब बाजार से खरीदते हैं.
यहां डॉक्टरों के 39 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 22 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं. नर्सों और अन्य पारा मेडिकल स्टाफ का भी यही हाल है. अनुबंध पर एएनएम की प्रतिनियुक्ति की गयी है. हृदय रोगियों के लिए यहां क्रिटिकल केयर यूनिट भी नहीं है. अस्पताल में रात को मरीजों का एक्सरे नहीं होता है. पैथोलॉजी भी सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक ही खुला रहता है. सरकार द्वारा विभिन्न कंपनियों के साथ किये गये एमओयू के तहत यहां एसआरएल लैब, इसीजी मशीन, अल्ट्रासाउंड मशीन, डिजिटल एक्सरे मशीन लगायी गयी है, लेकिन ये सभी बंद रहती हैं.
स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिला गढ़वा में भी सेवाएं बदहाल
प्रभाष मिश्रा/अभिमन्यु
गढ़वा : स्वा स्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी का गृह जिला गढ़वा के सदर अस्पताल में पूरेजिले के अलावा यूपी व छतीसगढ़ की सीमा से सटे इलाकों के मरीज भी आते हैं. लेकिन, अब भी इस अस्पताल में 68 बेड ही हैं.
मरीजों का इलाज जमीन पर लेटाकर किया जाता है. यहां 30 की जगह 11 डॉक्टरों की कार्यरत हैं. अस्पताल में एक्सरे, अल्ट्रासाउंड की सुविधा है. पर आइसीयू, सीटी स्कैन, डायलिसिस की सुविधा नहीं है. गंभीर मरीज रांची रेफर किये जाते हैं. गढ़वा के ही खरौंधी प्रखंड कार्यालय के पास ही सीएचसी है, पर यहां डॉक्टर नहीं बैठते हैं. पीएचसी अरंगी में डॉक्टर केवल हाजिरी बनाने आते हैं. सिसरी पंचायत के हेल्थ सब सेंटर में तो झाड़ियां उग अायी हैं.
गुमला की स्वास्थ्य व्यवस्था ही बीमार, मरीज कहां जायें
दुर्जय पासवान
गुमला : गु मला में एक सदर अस्पताल, दो रेफरल अस्पताल व 11 सीएचसी हैं. सदर अस्पताल को छोड़ अन्य सभी स्वास्थ्य केंद्रों की एक्स-रे व इसीजी मशीनें बेकार पड़ी हैं. िबजली न मिलने से सदर अस्पताल में लाखों का इंसुलेटर बेकार पड़ा है.
सदर अस्पताल, बसिया रेफरल और सिसई रेफरल अस्पताल में सर्जन व सुविधाएं हैं, पर सर्जरी नहीं होती. मरीज रांची रेफर किये जाते हैं. पैथोलॉजी जांच की सुविधा हर जगह है, पर मरीज सदर अस्पताल भेजे जाते हैं. कहीं भी सीटी स्कैन व आइसीयू नहीं है. जिले में 127 की जगह 66 डॉक्टर हैं. घाघरा प्रखंड के पुटो गांव में 50 बेड के अस्पताल में न सुविधाएं हैं न ही डॉक्टर. जबकि इस पर सालाना 60 लाख रुपये खर्च होते हैं.
सिमडेगा में नहीं किया जाता गंभीर बीमारियों का इलाज
रविकांत साहू
सिमडेगा : जि ला मुख्यालय में एक मात्र सदर अस्पताल है. हालांकि, यहां किसी अन्य गंभीर बीमारी का इलाज संभवन नहीं है. दरअसल, अस्पताल को 31 डॉक्टरों की जरूरत है. जबकि, 13 डॉक्टर ही तैनात हैं. अस्पताल में डिप्टी सुपरिटेंडेंट का पद भी खाली है. यहां एक्स-रे मशीन है.
इसीजी भी है, लेकिन पेपर रोल न होने के कारण जांच बंद है. सदर अस्पताल में सीटी स्कैन, एमआरआइ जांच, सर्जरी और आइसीयू की कोई व्यवस्था नहीं है. गंभीर मरीज रांची रेफर किये जाते हैं. प्रखंड स्तर पर स्थित रेफरल अस्पतालों में एक्से-रे मशीन तक नहीं हैं. इन अस्पतलों में जांच के नाम पर लैब की व्यवस्था है, जहां किसी प्रकार मलेरिया, यूरिन, शुगर आदि की जांच होती है.
रेफरल सेंटर ही रह गया है लोहरदगा सदर अस्पताल
गोपीकृष्ण
लोहरदगा : लोहरदगा का सदर अस्पताल ‘रेफर अस्पताल’ भर रह गया है. हल्की-फुल्की बिमारी या दुर्घटना में मरीज रिम्स भेज दिये जाते हैं. यहां एक्स-रे व पैथोलॉजी जांच होती है, पर इसकी गुणवत्ता बेहतर नहीं है.
अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन है, पर नियमित जांच नहीं होती है. इसीजी, सीटी स्कैन, एमआरआइ व सर्जरी कि सुविधा यहां है ही नहीं. यहां किसी सरकारी अस्पताल में आइसीयू नहीं है. सदर अस्पताल में सौ बेड का भवन तो बना, पर वह भी बेकार पड़ा है. यहां के मरीज अक्सर कंबल-चादर नहीं मिलने की शिकायत करते हैं. जिले को 82 डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन 35 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों कि स्थिति भी दयनीय है.
कोडरमा में सौ बेड का सदर अस्पताल, सुविधाएं नदारद
गौतम राणा/राजेश सिंह
कोडरमा : कोडरमा में करोड़ों की लागत से सौ बेड का सदर अस्पताल तो बना, पर अब तक यहां बिजली-पानी का इंतजाम नहीं हुआ है. आये दिन होनेवाले सड़क हादसों के बावजूद यहां ट्राॅमा सेंटर नहीं है. सदर अस्पताल में पीपीपी मोड पर एक्सरे, अल्ट्रासाउंड व पैथोलॉजी संचालित है.
पर, सीटी स्कैन, एमआरआइ नहीं होती है. यहां आइसीयू भी नहीं है. अस्पताल में तीन सर्जन हैं, पर बड़ी सर्जरी नहीं होती है. रेफरल अस्पताल डोमचांच के अलावा जिले में चार सीएचसी, छह अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र व 65 हेल्थ सब सेंटर हैं, पर इनमें भी सुविधाएं नहीं हैं. जयनगर में करीब एक करोड़ खर्च कर 30 बेड का अस्पताल बना है, मगर यहां मैनपावर की भारी कमी है.
दुमका सदर अस्पताल में तो अल्ट्रासाउंड तक नहीं होता
आनंद जायसवाल
दुमका : उपराजधानी दुमका की अाबादी 1321096 है, लेकिन यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं अब तक दुरुस्त नहीं हुई हैं. आज भी लोग इलाज के लिए रांची, प बंगाल के सिउड़ी, वर्धमान, दुर्गापुर व कोलकाता और बिहार के पटना या भागलपुर जाते हैं.
दुमका में सरकारी स्तर पर आज तक अल्ट्रासाउंड की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है. सीटी स्कैन और एमआरआइ तो दूर की बात है. हां! 300 बेड वाले सदर अस्पताल में आइसीयू है, लेकिन यहां भी संसाधन नहीं हैं. जिले में 163 डाॅक्टरों की जरूरत है, पर 63 ही कार्यरत हैं. विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी कमी है. यहां दो ही अस्पतालों में एक्स-रे की सुविधा है. सदर अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में कई महत्वपूर्ण संसाधन नहीं हैं.
देवघर के अस्पतालों में धूल खा रही हैं लाखों की मशीनें
देवघर : देवघर जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. सदर अस्पताल में सिटी स्कैन, एमआरआइ की सुविधा नहीं है.
सदर अस्पताल को छोड़कर किसी अस्पताल में सर्जरी नहीं होती है. केवल सारवां सीएचसी में प्रसूति की सर्जरी करायी जाती है. प्रखंड के बगदाहा में 30 बेड का स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य उपकेंद्र दो साल पूर्व बनकर तैयार हुआ है.
लेकिन, आज तक वह नहीं खुल सका है. पालाजोरी सीएचसी में कार्यरत आयुष डॉक्टर मरीजों को एलोपैथी दवा लिखते हैं. वहीं, सीएचसी में ऑपरेटर नहीं होने की वजह से लाखों की एक्स-रे मशीन, ब्लड बैं
नीरज अमिताभ
रामगढ़ : रा मगढ़ जिले में सदर अस्पताल समेत चार सीएचसी हैं. दो वर्षों से समाहरणालय परिसर छत्तरमांडू स्थित नये भवन में सदर अस्पताल चल रहा है.
अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की हालात ठीक है. नये भवन में पानी, बिजली, बेड, साफ-सफाई आदि बेहतर है. सदर अस्पताल रामगढ़ में अल्ट्रा साउंड, पैथोलॉजी, एक्सरे की सुविधाएं हैं. हालांकि, अब तक यहां एमआरआइ और सीटी स्कैन की सुविधा शुरू नहीं हुई है, जिसकी वजह से मरीजों को निजी रेडियोलॉजी सेंटरों में जाना पड़ता है. सिजेरियन प्रसव की सुविधा सदर अस्पताल समेत जिले के चारों सीएचसी में उपलब्ध है. सदर अस्पताल में आधुनिक ओटी कक्ष भी है, लेकिन अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों और आइसीयू की कमी खलती है.
लातेहार सदर अस्पताल में रहती है पानी की किल्लत
सुनील कुमार
लातेहार : ला तेहार में 100 बेड का बहुमंजिला सदर अस्पताल है, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों के नहीं होने से लोगों को इलाज के लिए भी बाहर जाना पड़ता है. यहां मरीजों को पर्याप्त पानी नहीं मिलता है. वहीं, इमरजेंसी में भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं.
जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में आइसीयू और एमआरआइ की सुविधा नहीं है. दुर्घटना में घायल लोगों को तुरंत रिम्स रेफर कर दिया जाता है. सदर अस्पताल में सप्ताह में एक दिन मरीजों की इसीजी जांच की जाती है. सरकारी अस्पतालों में पैथोलोजी जांच का जिम्मा मेडाल को दिया गया है. लेकिन, इसकी सेवाएं भी गुणवत्तापूर्ण नहीं हैं. चंदवा प्रखंड स्थित सीएचसी को छोड़ अन्य प्रखंडों के स्वास्थ्य केंद्रों के भवन जर्जर हैं. जिले को 76 डॉक्टर चाहिए, लेकिन 37 ही पदस्थापित हैं.
बोकारो की स्वास्थ्य सेवाएं दूसरे जिलों से काफी बेहतर
रंजीत कुमार
बोकारो : बो कारो जिले में 144 सरकारी अस्पताल हैं, जहां ओपीडी में प्रतिदिन लगभग 4850 मरीज आते हैं. स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं में भी बोकारो अव्वल है. वहीं, पिंड्राजोरा मॉडल अस्पताल स्टेट में नंबर वन है.
इधर, कैंप-2 सदर अस्पताल, चास अनुमंडल अस्पताल, तेनुघाट अनुमंडल अस्पताल और फुसरो अनुमंडल अस्पताल में सर्जरी की व्यवस्था है. सदर अस्पताल में आइसीयू व एसएनसीयू वेंटीलेटर व डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध है. रेफरल जैनामोड़ अस्पताल व चास अनुमंडल अस्पताल में छह-छह एनसीएसयू यूनिट बनायी गयी है. वहीं, जिले में 17 नये अस्पताल भवन बनाये गये हैं. इसे विभाग ने हैंडओवर ले लिया है, लेकिन डॉक्टर और पारा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई है.
गोड्डा के सदर अस्पताल में ब्लड बैंक तो है, ब्लड नहीं
गोड्डा : गो ड्डा जिले की 14 लाख की आबादी जिस सदर अस्पताल के भरोसे है, वहां सुविधाएं नहीं है. यहां एक्स-रे मशीन है, लेकिन आइसीयू, एमआरआइ, सीटी स्कैन नहीं है. गंभीर मरीज भागलपुर रेफर किये जाते हैं.
अस्पताल परिसर में दो करोड़ से ब्लड बैंक का भवन बना है, जो अब यह तक चालू नहीं हो पाया है. इस अस्पताल को 32 डॉक्टरों की जरूरत है, जबकि तैनात 12 ही हैं. अस्पताल में 100 बेड हैं, जबकि जरूरत इससे ज्यादा की है. वर्ष 2007 में पथरगामा अस्पताल को सीएचसी का दर्जा मिला था. यहां दो लाख की आबादी पर छह बेड और तीन डॉक्टर हैं. बोआरीजोर प्रखंड में 19 हेल्थ सब सेंटर का भवन नहीं है. महागामा रेफरल अस्पताल में पर्याप्त चिकित्सक नहीं हैं. पोड़ैयाहाट में 90 वर्ष पुराने भवन मेंअस्पताल चल रहा है.
गिरिडीह के 24.5 लाख लोग दूसरे शहरों के भरोसे
मुन्ना प्रसाद
गिरिडीह : लगभग 24.5 लाख की आबादी वाले गिरिडीह जिले के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, संसाधनों और तकनीकी सुविधाओं की भारी कमी है. मजबूरन लोग इलाज के लिए धनबाद, बोकारो, रांची या दुर्गापुर जाते हैं. सरकारी अस्पताल तो दूर गिरिडीह के निजी अस्पतालों में भी सीटी स्कैन, एमआरआइ और सर्जरी की सुविधा नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित स्वास्थ्य उपकेंद्र भवन, पानी और बिजली का अभाव झेल रहे हैं. कई ऐसे केंद्र भी हैं, जहां एक भी एएनएम नहीं है. कुछ केंद्रों में भवन तो टूट कर गिर रहे हैं. सदर अस्पताल समेत जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में कुल 151 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, जबकि यहां कार्यरत हैं मात्र 71 ही हैं. अन्य पारा मेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है. जिले में 13 ऐसे स्वास्थ्य उप केंद्र हैं, जहां एएनएम या अन्य कोई स्वास्थ्यकर्मी की नियुक्ति नहीं है. ऐसे में ये केंद्र बंद पड़े हैं.
झारखंड : धनबाद के साथ अन्य जिलों का भार भी पीएमसीएच पर
धनबाद : धनबाद में स्वास्थ्य सेवाओं का दारोमदार पीएमसीएच पर है. यहां हर दिन अौसतन 1600 मरीज आते हैं. सोमवार व मंगलवार को यह संख्या 2000 से पार हो जाती है. इनमें पड़ोसी जिलों के मरीज भी होते हैं. इन दिनों पीएमसीएच में भी शिक्षकों व डॉक्टरों के 40 प्रतिशत पद खाली हैं.
यहां पांच सौ बेड हैं. जिले के निरसा, गोविंदपुर, बलियापुर, बाघमारा, झरिया सह जोड़ापोखर, तोपचांची और टुंडी सीएचसी में बड़ी जांच, तो दूर यहां सामान्य बुखार की भी दवाएं नहीं मिलती है. रेडियोलॉजी व पैथोलॉजी जांच के लिए मरीजों को पीएमसीएच में भेजा जाता है. सीएचसी में रात में चिकित्सक हाजिरी बनाकर नदारद हो जाते हैं. पीएमसीएच के प्रवक्ता डॉ सुरेंद्र प्रसाद कहते हैं कि स्वास्थ्य केंद्र हर मरीज को पीएमसीएच रेफर कर देते हैं. इससे यहां भीड़ बढ़ जाती है. चिकित्सकों की कमी के कारण परेशानी होती है.
रांची : राज्य के स्वास्थ्य विभाग का योजना मद का बजट 2600 करोड़ है. इसमें दवाओं पर 90 करोड़ खर्च होते हैं. इसके बावजूद अस्पतालों में दवाएं नहीं मिलती हैं. मरीज खुद दवाएं व सर्जिकल आइटम आदि खरीदते हैं.
‘प्रभात खबर’ ने पूरे राज्य के गांव से लेकर शहर तक के अस्पतालों पर रिपोर्ट तैयार की है. चौंकाने वाली बात यह है कि पूरे राज्य के ग्रामीण इलाकों की व्यवस्था केवल नर्सों के भरोसे है. वहीं, मशीन उपकरण आदि हैं, लेकिन काम नहीं करते. क्योंकि टेक्निशियन नहीं हैं.
चतरा, गुमला, गढ़वा, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार, लोहरदगा, सिमडेगा, देवघर, दुमका, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, गिरिडीह जैसे जिलों में मशीन/उपकरण बेकार पड़े हुए हैं. कहीं भवन जर्जर हैं, तो कहीं किराये के भवन में अस्पताल हैं. बिजली, पानी तो समस्या है ही. कई जगह मॉडल अस्पताल बनाने के लिए बेड लाये गये, एसी लगाये गये. पर एसी काम नहीं करता और बेड का लाभ मरीजों को नहीं मिलता. एंबुलेंस की सुविधा जिलों में है, लेकिन ज्यादातर ड्राइवर या तेल के अभाव में खड़ी रहती है.
3000 से ज्यादा अस्पतालों में बिजली-पानी का अभाव
झारखंड में 3000 से अधिक अस्पताल ऐसे हैं, जहां न बिजली है और न ही पानी. वहीं, लगभग 1000 के अस्पताल किराये के भवन में चल रहे हैं. यह हाल झारंखड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और स्वास्थ्य उपकेंद्र (हेल्थ सब सेंटर) का है. राज्य में इस समय में 188 सीएचसी और 3958 हेल्थ सब सेंटर हैं. इनमें से 3000 में बिजली नहीं है.
वहीं, 2200 उपकेंद्रों में पानी की सुविधा भी नहीं है. चतरा एक ऐसा जिला है, जहां के किसी सीएचसी या एचएससी में बिजली नहीं है. राज्य के 906 स्वास्थ्य उपकेंद्र अब भी किराये के भवन में चल रहे हैं. वहीं, 557 भवन दूसरे विभागों के भवनों में चल रहे हैं. विभाग के अपने भवन में 2495 अस्पताल चल रहे हैं.
1000 मरीजों के लिए औसतन एक बेड भी नहीं
झारखंड में 1000 की आबादी पर मरीजों के लिए एक बेड भी नहीं है. गिरिडीह जैसे जिले में 1000 की आबादी पर मात्र 0.76 बेड है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार झारखंड के सरकारी अस्पतालों में कुल 10784 बेड हैं. यानी एक बेड पर 3368 की आबादी निर्भर है. वहीं, एक सरकारी अस्पताल पर 65832 की आबादी निर्भर है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति हजार की आबादी पर औसतन 1.5 बेड होना चाहिए. जबकि झारखंड में केवल बोकारो स्टील सिटी में ही डब्ल्यूएचओ मानक के अनुरूप औसत से अधिक बेड है. यहां प्रति हजार की आबादी पर 2.89 बेड उपलब्ध है. बताया गया कि झारखंड में दुनिया के औसत के मुकाबले बेड की संख्या पूरी करने के लिए कम से कम 20 हजार अतिरिक्त बेड की जरूरत है.
यहां तो खाट ही बन जाती है एंबुलेंस : तसवीर साहेबगंज सदर अस्पताल की है. इस जिले की 40 प्रतिशत आबादी पहाड़ों पर रहती है. कई ऐसे गांव हैं जहां एंबुलेंस का पहुंचना मुश्किल है.
ऐसी स्थिति में गांव के लोग मरीजों और गर्भवती महिलाहों को खाट में लादकर अस्पताल तक लाते हैं. हालांकि, सिविल सर्जन द्वारा राज्य स्वास्थ्य विभाग को पठारी क्षेत्र के मरीजों व प्रसूति महिलाओं को गांव से अस्पताल तक लाने के लिये डोली सेवा चालू कराने के लिये पत्र लिखा था. लेकिन यह सेवा चालू नहीं हो पायी.

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