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झारखंड : मरांग गोमके के गांव टकरा में अब स्मृति में ही शेष है हॉकी, हतोत्साहित हैं खिलाड़ी

उदासीनता. हॉकी को बढ़ावा देने की हो रही कोशिश, पर सरकारी सुविधाओं का अभाव रोहित कुमार नामकुम : 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में हॉकी में भारतीय टीम का नेतृत्व करनेवाले जयपाल सिंह मुंडा का गांव टकरा आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव से घिरा है. मरांग गोमके के इस गांव में आज भी उनके परिवारवाले […]

उदासीनता. हॉकी को बढ़ावा देने की हो रही कोशिश, पर सरकारी सुविधाओं का अभाव
रोहित कुमार
नामकुम : 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में हॉकी में भारतीय टीम का नेतृत्व करनेवाले जयपाल सिंह मुंडा का गांव टकरा आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव से घिरा है. मरांग गोमके के इस गांव में आज भी उनके परिवारवाले खेतीबारी पर निर्भर हैं, जबकि हॉकी अब स्मृति में ही शेष रह गया है. गांव के कुछ युवा अपने स्तर पर इसे बढ़ावा देने की कोशिश में तो जुटे हैं, पर सरकारी सुविधाओं के अभाव में सबकुछ फीका सा लगता है. जयपाल सिंह मुंडा के बेटे जयंत जयपाल सिंह मुंडा का परिवार कोलकाता में है, जबकि उनके अन्य परिजन आज भी गांव में मुश्किलों में ही गुजर बसर कर रहे हैं. जयपाल सिंह मुंडा के भाई जगत पाल जयश्री सिंह मुंडा की पुत्रवधू शांति देवी ने बताया कि लोग दूर-दूर से मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के घर व गांव को देखने आते हैं.
हमें अच्छा तो लगता है, पर उनके देखने लायक अब यहां कुछ नहीं बचा है. सरकार अगर ध्यान दे, तो न सिर्फ ग्रामीण, बल्कि हॉकी के दिन भी बहुरेंगे. अपने पति जसवंत सिंह मुंडा की मृत्यु के बाद अपने दो बेटों प्रेम व जयंत की परवरिश कर रही शांति बताती हैं कि कुछ वर्ष पूर्व उनका घर भी बारिश में ढह गया था, पर उन्हें कोई मदद कहीं से नहीं मिली.
जिस घर में कभी जयपाल पले-बढ़े, वह भी ढह कर खंडहर में तब्दील हो गया है. शांति देवी कहती हैं कि जयपाल सिंह मुंडा जिस स्कूल में पढ़ते थे, वह तो पुराना होकर ढह गया. सरकार द्वारा नया स्कूल भी बनाया गया, मगर आज भी यहां बच्चे पांचवीं तक ही शिक्षा पा रहे हैं. आगे पढ़ाई के लिए उनके सामने गांव से बाहर जाने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है.
यही स्थिति गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं की भी है. एक दो मंजिला स्वास्थ्य केंद्र बना है, पर यहां कभी लोगों ने डॉक्टर को नहीं देखा है. सिर्फ एक नर्स व एक एएनएम लोगों के लिए यहां आती हैं. अगर कोई गंभीर समस्या आ जाये, तो 15 किमी दूर उन्हें खूंटी जाना पड़ता है. पहाड़ों व जंगल से घिरे इस गांव में एक ही मैदान है. जहां बच्चे फुटबॉल या हॉकी खेलते हैं. टकरा के ग्राम प्रधान जॉन कच्छप ने बताया कि इस वर्ष मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जयंती पर बच्चों के लिए विशेष रूप से हॉकी प्रतियोगिता आयोजित करायी जा रही है, जिससे हॉकी को नया जीवन मिल सके.
युवाओं ने कहा, अभी बहुत काम है बाकी
खूंटी जिले में स्थित उलिहातू व माहिल के साथ-साथ आदर्श ग्राम के लिए चुने गये टकरा के युवा आज भी विकास की बात को धता बताते हैं. उलिहातू व माहिल गांवों में जहां कई काम दिखायी देता है, वहीं टकरा में सिर्फ सांसद भवन ही बना है, जो आज बदहाली के कगार पर पहुंच गया है.
कोई उपयोग न होने तथा रखरखाव के अभाव में सांसद भवन की स्थिति भी दयनीय हो गयी है.भवन के दरवाजे-खिड़की तक टूट रहे हैं. गांव के दिलीप तिर्की ने बताया कि सड़कें तो बनी हैं, पर दूसरी सुविधाएं आज भी यहां सपना है.
जिस जयपाल सिंह मुंडा ने हमारे गांव व झारखंड का नाम रोशन किया, उनके पैतृृक गांव में हॉकी सहित दूसरे खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी स्तर पर मदद की बहुत आवश्यकता है. अभी गांव के ही युवा एक-दूसरे के साथ खेलते व बच्चों को हॉकी सिखाते हैं. अगर कोई अदद ट्रेनिंग सेंटर या फिर किट व ट्रेनर की सुविधा मिले, तो यहां से कई खिलाड़ी एक बार फिर टकरा का नाम रोशन करेंगे.
जयपाल सिंह मुंडा की कब्र पर नहीं है उनका नाम
जयपाल सिंह मुंडा की जयंती से एक दिन पूर्व तैयारियों में जुटे टकरा गांव के युवा गांव के कुछ दूरी पर आम के पत्तों से बने तोरणद्वार को लगाते देखे गये. वहीं कुछ युवक उनकी क्रब को भी साफ कर रहे थे. जयपाल सिंह मुंडा की कब्र पर उनका नाम तक नहीं देखने को मिला.
पूछने पर युवकों ने बताया कि कुछ समय पूर्व ग्रामीणों के सहयोग से यहां ईंटों को सजाया गया. हमने हर वर्ष नेताओं व यहां आनेवाले अतिथियों से जयपाल सिंह मुंडा की प्रतिमा लगवाने की मांग की, पर न जाने इसे क्यों अनसुना कर दिया जाता है.

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