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वर्जित है जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र व संस्कृति के आधार पर भेदभाव

रांची: अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर फादर कामिल बुल्के सभागार, मनरेसा हाउस में सेमिनार का आयोजन हुआ. इसमें अधिवक्ता एके रशीदी ने कहा कि भारतीय संविधान ने जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र व संस्कृति में भेदभाव किये बिना सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने, धर्म मानने व प्रचारित करने, शिक्षा व संस्कृति का […]

रांची: अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर फादर कामिल बुल्के सभागार, मनरेसा हाउस में सेमिनार का आयोजन हुआ. इसमें अधिवक्ता एके रशीदी ने कहा कि भारतीय संविधान ने जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र व संस्कृति में भेदभाव किये बिना सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने, धर्म मानने व प्रचारित करने, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार दिया है़.

अल्पसंख्यकाें के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है़ द नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज एक्ट 1992 की धारा 2 (सी) में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन व पारसी को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में परिभाषित किया गया है़ अल्पसंख्यक समुदाय के निर्धारण में जनसंख्या व धर्म मुख्य कारक हैं.


उन्होंने कहा कि कानूनी व संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय कॉमन सिविल कोड की चुनौती का सामना कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अधिकारों को भारत में लागू करने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम लागू किया गया है़ सेमिनार को मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग, अधिवक्ता फादर महेंद्र पीटर तिग्गा, अधिवक्ता रजीउल्लाह अंसारी, लुकस मिंज, मिन्हाज अख्तर, प्रो अशरफ हुसैन, नदीम खान, शुचित राम, फादर पीटर मार्टिन व अन्य ने भी संबोधित किया़

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