रांची: हाइकोर्ट ने मंगलवार को सिविल रिव्यू याचिका पर सुनवाई करते हुए ज्यूडिशियल एकेडमी, नेशनल लॉ विवि व झालसा के फंड की प्रधान महालेखाकार से जांच कराने संबंधी अपने पूर्व के आदेश को वापस ले लिया. साथ ही जनहित याचिका को खत्म करने का आदेश दे दिया. जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस अमिताभ कुमार गुप्ता की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई. हाइकोर्ट की अोर से सात जून को पारित उस आदेश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया था, जिसमें फंड के दुरुपयोग संबंधी आरोपों की प्रधान महालेखाकार से अॉडिट कराने की बात कही गयी थी.
सुनवाई के दाैरान हाइकोर्ट की अोर से अधिवक्ता अनुभा रावत चाैधरी ने खंडपीठ को बताया कि शिकायतकर्ता के विषय में पैतृक जानकारी नहीं है आैर न ही उसका कोई पता है. ऐसी स्थिति में पत्र विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता है. इस मामले में प्रतिवादियों का पक्ष भी नहीं सुना गया है. राज्य सरकार की अोर से अधिवक्ता धनंजय कुमार दुबे ने कहा कि उन्हें कोई नोटिस भी नहीं दिया गया. खंडपीठ ने दलील को स्वीकार करते हुए अपने पूर्व में दिये गये आदेश को वापस ले लिया.
क्या था पूर्व के आदेश में : झारखंड हाइकोर्ट को पांच मई 2017 को एक पत्र भेजा गया था. इसमें झालसा, लॉ यूनिवर्सिटी व ज्यूडिशियल एकेडमी में फंड के दुरुपयोग का गंभीर आरोप लगाया था. पत्र मििलने के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती व न्यायाधीश अमिताभ कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने तीनों संस्थानों पर लगाये गये आरोपों की पारदर्शी जांच के लिए अॉडिट करना जरूरी बताया था. खंडपीठ ने प्रधान महालेखाकार से अॉडिट कराने का निर्देश दिया था. पीएजी को चार माह के अंदर अपनी रिपोर्ट अदालत को साैंपने का निर्देश दिया था. कंट्रोलर एंड अॉडिटर जनरल अॉफ इंडिया को पीएजी की तरफ से किये जानेवाले अॉडिट की मॉनिटरिंग करने को कहा था.