सुरेंद्र/सुरेश
गोला प्रखंड के सुदूर में एक गांव है औंराडीह. इस गांव की एक महिला ने कृषि के क्षेत्र में कमाल कर दिया है. पूरे प्रखंड में इनकी चर्चा है. नाम है रोपनी देवी. रोपनी देवी के परिवार की माली हालत इतनी खराब थी कि उनके परिजनों को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती थी.
अपने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने के बारे में रोपनी देवी सदौव सोचती रहती थीं. सिर्फ सोचती ही नहीं, इस संबंध में प्रयास भी कर रही थीं. उनके पति ठाकुर दास बेदिया कुली काम काम करके और रिक्शा चला कर परिवार का भरण-पोषण करने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन माली हालत सुधरने के बजाय दिनोंदिन खराब होती चली गयी.
सारे जतन जब बेकार चले गये, तो रोपनी ने अपने पति को बंजर पड़ी जमीन पर फसल लगाने की सलाह दी. पति ने उनकी बात मानी और दोनों बंजर जमीन को खेती के लायक बनाने की कोशिशों में जुट गये.
खेत को विकसित करने के लिए रोपनी ने ठाकुर दास महतो के नाम पर बैंक से 30 हजार रुपये कृषि ऋण लिया. जमीन खेती के लायक बन गयी, तो उस पर पटल के साथ मिश्रित खेती शुरू की. यहीं प्याज, लौकी, आलू, टमाटर, फूलगोभी, बैंगन आदि फसलों की बुवाई की. मेहनत रंग लायी. फसल अच्छी हुई, तो उसकी बिक्री से आमदनी भी होने लगी. जिंदगी पटरी पर आने लगी और जीवनस्तर भी सुधर गया.
रोपनी कहती हैं कि तीन वर्ष पहले जो पटल की फसल लगायी थी, अब तक उससे पटल निकल रहे हैं. इस से हर महीने 8,000-9,000 रुपये कमा रही हैं. सभी फसल मिला कर साल में एक लाख रुपये से अधिक की कमाई हो जाती है. अब रोपनी के बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं. एक बेटा आइटीआइ करने के बाद रांची में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है. बेटी दसवीं में पढ़ती है.
रोपनी कहती हैं कि 10 वर्ष पूर्व अपने परिवार की गरीबी के बारे में सोचती हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. तब लकड़ी बेच कर कुछ पैसे कमा लेती थी. कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह इतने पैसे कमायेगी. उन्होंने कहा कि मनरेगा से कूप मिला था, लेकिन कूप निर्माण कार्य पूरा होने के बावजूद अब तक उसकी राशि नहीं मिली.