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चना उत्पादन में झारखंड अन्य पूर्वी राज्यों से आगे

बीएयू में रबी अनुसंधान परिषद की बैठक रांची/कांके : कही.वे पूर्वी भारत के सभी राज्यों में चना का उत्पादन घट रहा है, जबकि झारखंड में बढ़ रहा है. राज्य सरकार को बिरसा कृषि विवि के शोध निष्कर्ष का इस्तेमाल करते हुए दलहन उत्पादन को और बढ़ावा देना चाहिए. झारखंड में दलहन उत्पादन में वृद्धि की […]

बीएयू में रबी अनुसंधान परिषद की बैठक
रांची/कांके : कही.वे पूर्वी भारत के सभी राज्यों में चना का उत्पादन घट रहा है, जबकि झारखंड में बढ़ रहा है. राज्य सरकार को बिरसा कृषि विवि के शोध निष्कर्ष का इस्तेमाल करते हुए दलहन उत्पादन को और बढ़ावा देना चाहिए. झारखंड में दलहन उत्पादन में वृद्धि की काफी संभावनाएं हैं. उक्त बातें भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ एनपी सिंह ने बुधवार को बिरसा कृषि विवि के रबी अनुसंधान परिषद की 36 वीं बैठक में कही.
वे झारखंड में ‘दलहन उत्पादन में वृद्धि की रणनीति ‘ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने कहा कि रांची, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग, गुमला, साहेबगंज, देवघर आदि जिलों में 75 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चना की खेती हो रही है. धान की कटाई के बाद खाली पड़े खेत का इस्तेमाल कर रबी दलहनी फसलों का रकबा और बढ़ाया जा सकता है.
सरकार को दलहनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बाजार मूल्य के समकक्ष ही घोषित करनी चाहिए, ताकि किसानों को समुचित लाभ मिल सके. उन्नत प्रभेदों के गुणवत्तायुक्त बीजों के इस्मेमाल, समय पर बुआई, समेकित कीट प्रबंधन और पोषक तत्व प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों के प्रयोग और यंत्रीकृत बुआई व कटाई द्वारा दलहन उत्पादन और उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि लायी जा सकती है. उन्होंने कहा कि अपना देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है, लेकिन पोषण सुरक्षा अब तक प्राप्त नहीं हो सकी है. भारत में पिछले पांच वर्षों में दालों का औसत वार्षिक उत्पादन लगभग 18 मिलियन टन है. प्रतिवर्ष चार-पांच मिलियन टन दालों का आयात करना पड़ता है, ताकि प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 52 ग्राम दाल की आवश्यकता पूरी हो सके.
राइ व सरसों अनुसंधान निदेशालाय, भरतपुर, राजस्थान के निदेशक डॉ धीरज सिंह ने कहा कि अग्रणी सरसों उत्पादक राज्यों गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व हरियाणा में सरसों की उत्पादकता 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि झारखंड में इसका एक तिहाई (आठ क्विंटल) है .
राज्य में सरसों की उत्पादकता लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसका क्षेत्र नहीं बढ़ रहा. शाकाहारी लोगों के लिए सरसों ओमेगा-3 का महत्वपूर्ण स्थान है. इसके साग में पालक की तुलना में तीन गुणा ज्यादा लौह तत्व है. गुणवत्तायुक्त प्रोटीन की उपलब्धता के कारण सरसों की खली का उपयोग बिस्कुट और चॉकलेट बनाने में किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि देश में प्रतिवर्ष 11 मिलियन टन पामोलिव तेल का आयात होता है, जिसमें से एक मिलियन टन जनवितरण प्रणाली द्वारा वितरित किया जाता है, जबकि शेष सरसों तेल में मिलावट के काम में आता है. यही कारण है कि देश में सरसों तेल 70-100 रुपये किलो भी उपलब्ध हो जाते हैं, जबकि शुद्ध सरसों तेल की कीमत लगभग 130 रुपये किलो होती है.
भारतीय गेहूं व बार्ली अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ रवीश छत्ररथ ने झारखंड में गेंहू उत्पादन वृद्वि की रणनीतियों पर प्रकाश डाला. बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ डीके सिंह द्रोण ने कहा कि बागवानी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में झारखंड देश के अन्य पूर्वी राज्यों से काफी आगे है. बीएयू में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, आइसीएआर तथा अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग से 57 शोध परियोजनाएं चल रही हैं.
2013 के बाद से विवि ने धान, गेहूं,चना, मूंगफली, सोयाबीन और तीसी के कुल 10 उन्नत प्रभेद जारी किये हैं. प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ आरपी सिंह रतन ने झारखंड में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन के आलोक में शोध प्रयासों को नयी दिशा देने पर बल दिया. संचालन प्रो डीके रूसिया व धन्यवाद ज्ञापन डॉ सोहन राम ने किया. इस अवसर पर रबी अनुसंधान परिषद की पुस्तिका का लोकार्पण भी किया गया.

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