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नीति व सिद्धांत की कहानी है पलामू किला

बेतला : पलामू प्रमंडल में न सिर्फ कुदरत की खुबसूरती का नजारा है, बल्कि एतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई स्थान भी है. राजा मेदिनी राय की छवि प्रजा प्रिय राजा की थी. जनता की बेहतरी के लिए उन्होंने कई कार्य किये थे. कई लोकोक्ति आज भी चर्चा में है. राजा मेदिनी राय का ऐतिहासिक किला […]

बेतला : पलामू प्रमंडल में न सिर्फ कुदरत की खुबसूरती का नजारा है, बल्कि एतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई स्थान भी है. राजा मेदिनी राय की छवि प्रजा प्रिय राजा की थी. जनता की बेहतरी के लिए उन्होंने कई कार्य किये थे.
कई लोकोक्ति आज भी चर्चा में है. राजा मेदिनी राय का ऐतिहासिक किला भी पलामू प्रमंडल के बेतला में ही स्थित है. पलामू प्रमंडल के पर्यटन स्थलों की श्रृंखला में आज चर्चा पलामू किला के बारे में, ताकि लोग बेहतर तरीके से इसे समझ सकें. निश्चिततौर पर जो लोग पलामू प्रमंडल में है, उन्हें इस किला को अवश्य देखना चाहिए. क्योंकि पलामू प्रमंडल में रहकर इस किला को न देखना और इसके में न जानना उचित नहीं होगा. पर्यटन स्थल के चर्चा की तीसरी कडी में आज जानिए पुराने पलामू किला के बारे में :
पलामू की गौरवशाली इतिहास का साक्षी है पलामू किला. घने जंगलों व पहाड़ियों के बीच कल-कल बहते औरंगा नदी के किनारे स्थित है पलामू किला. वैसे तो पलामू किला दो हिस्से में है, पहला हिस्सा है पुराना किला, इसकी भव्यता देखते ही बनती है. बताया जाता है कि पलामू के प्रसिद्ध चेरो राजा मेदिनी राय ने इस किले का निर्माण कराया था. पलामू किला चारों ओर से पांच से आठ फीट चौड़ी दीवारों से घिरा है.
किले में घुसने के लिए विशाल प्रवेश द्वार है. जिसकी भब्यता देखते ही बनती है. किले के चारों ओर जो ऊंची दीवार है, उसके बारे में बताया जाता है कि घुड़सवार सैनिकों द्वारा किले के परिसर की सुरक्षा दी जाती थी.
जगह-जगह पर वॉच टावर बनाये गये हैं. किले के भीतर घुसने पर सैनिक छावनी है, राज दरबार भी देखने को मिलता है. जनता की फरियाद यही सुनी जाती थी. राज्य चलाने के लिए नीति व सिद्धांत भी यही तय किये जाते थे. पास ही में एक कुआं है, जो काफी गहरी है. कुछ ही दूर चलने पर राजा का शयन कक्ष दिखता है, जो दो मंजिला है.
इसके साथ ही भंडारगृह, गुप्त भवन भी हैं. इसका अधिकांश हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है. जगह-जगह पर झाड़ियां व पेड़ उग आये हैं. कई महत्वपूर्ण हिस्सा पूरी तरह ध्वस्त हो गये हैं. फिर भी यहांं आने पर पलामू की गौरवमयी इतिहास का जीवंत दर्शन होने लगता है. पलामू के इस विरासत को बने करीब 400 वर्ष बीत गये हैं, फिर भी यह आज भी अपनी गौरवगाथा को बयां करता है. किला की बनावट नक्काशीदार व भब्य है.
इसका निर्माण कला बहुत कुछ मुगलकालीन है. बिहार के रोहताशगढ की तरह जगह-जगह गुंबद बनाये गये हैं. शांत वातावरण में बसे इस किले के पास पक्षियों की कलरव व जंगली जानवरों की आवाज भी सुनायी पड़ती है. कभी-कभी जंगली जानवरों से भी यहां सामना होता है. पलामू किला पत्थर व कंक्रिट ईंट से बना है, इसका एक हिस्सा कच्चा है.
बताया जाता है कि राजा मेदिनी राय ने इसे इसलिए बनाया था, ताकि अपातकालीन स्थिति में इसका उपयोग किया जा सके. इस रहस्य को गिने-चुने लोग ही जानते थे. लेकिन राजा मेदिनी राय से बगावत करने वालों ने इसकी सुराग विरोधियों को दे दी थी, जिस कारण इस हिस्से पर हमला करके पलामू किले को कब्जे में कर लिया गया था. इस टूटे हुए हिस्से को आज भी देखा जा सकता है.

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