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लातेहार का इतिहास गौरवशाली
लातेहार : भले ही जिला बनने के 15 साल बाद भी लातेहार को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली. शिक्षा, चिकित्सा, सड़क व सिंचाई के साधनों का बेहतर विकास नहीं हुआ हो, लेकिन लातेहार जिला का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. ब्रिटिश हुकूमत ने वर्ष 1924 में लातेहार को अनुमंडल का दर्जा दिया था. आजादी की प्रथम […]
लातेहार : भले ही जिला बनने के 15 साल बाद भी लातेहार को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली. शिक्षा, चिकित्सा, सड़क व सिंचाई के साधनों का बेहतर विकास नहीं हुआ हो, लेकिन लातेहार जिला का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. ब्रिटिश हुकूमत ने वर्ष 1924 में लातेहार को अनुमंडल का दर्जा दिया था. आजादी की प्रथम लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले खरवार बंधुओं ने लेस्लीगंज के बाद लातेहार जिला के कुरुंद घाटी को अपना कर्मभूमि बनाया था. नीलांबर पीतांबर दोनों भाई गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे और अपनी इसी युद्ध कौशल से अंग्रेजों से लोहा लेते थे. दोनों भाइयों को लेस्लीगंज छावनी में फांसी दी गयी.
इसी प्रकार राजा मेदिनी राय ने भी कभी अंग्रेजों की दास्तां स्वीकार नहीं की. बताया जाता है कि पलामू से बेतला होते हुए लातेहार के नावागढ़ तक राजा मेदिनी राय ने सुरंग का निर्माण कराया था.
जब भी अंग्रेजों से लोहा लेकर छिपना होता था, राजा व उनके सैनिक इसी सुरंग का उपयोग करते थे. मां नगर भगवती का मंदिर एक सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. लताओं से घिरा होने के कारण लातेहार (लताओं का हार) नाम पड़ा था. लातेहार जिला के चारों ओर पहाड़ों की श्रृंखला है और बीच में जिले के सभी प्रखंड अवस्थित हैं.
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