चंदवा प्रखंड की डुमारो पंचायत के नौ टाना भगत ने आजादी के लिए किये थे प्राण न्योछावर
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शहीद के परिजनों को अब तक नहीं मिला कोई लाभ
चंदवा प्रखंड की डुमारो पंचायत के नौ टाना भगत ने आजादी के लिए किये थे प्राण न्योछावर चंदवा : चंदवा प्रखंड को प्रकृति ने बड़ी खूबसूरती से तराशा है. यहां कई ऐसी चीजें हैं जो प्रखंड को अन्य स्थान से अलग करती हैं. लातेहार व रांची जिले के सीमाने स्थित चंदवा प्रखंड की डुमारो पंचायत […]
चंदवा : चंदवा प्रखंड को प्रकृति ने बड़ी खूबसूरती से तराशा है. यहां कई ऐसी चीजें हैं जो प्रखंड को अन्य स्थान से अलग करती हैं. लातेहार व रांची जिले के सीमाने स्थित चंदवा प्रखंड की डुमारो पंचायत देश की आजादी की कई स्मृतियों को संजोये है. डुमारो पंचायत के निंद्रा, कारिटांड़, बैलगड़ा व ढोटी गांव के नौ टाना भगत ने आजादी की लड़ाई में अपने प्राण न्योछावर कर दिये. उनके वंशज अब भी टाना भगत समाज के नियम-कानून का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं.
डुमारो से सटे रांची जिले के लपरा व चट्टी नदी के टाना भगत हर प्रसंग में मिलजुल कर कार्यक्रम करते हैं. समाज के सबसे बुजुर्ग रंका राम, गोइंदा उरागन ठाकुर टाना भगत ने कहा कि हमारे पूर्वजों व हमने सभी जीवों के लिए आजादी मांगी थी. यह कैसी आजादी, लोग अब भी बेबस हैं. शहीद के परिजनों को अब तक कोई लाभ नहीं मिला. उनका कहना है कि हमसे ज्यादा जरूरतमंदों को इसका लाभ मिले. सरकार को कुछ देना ही है, तो समुदाय के सभी लोगों को दे, वरना ना दे.
टाना लिपि का इस्तेमाल
सफेद कपड़े, सिर पर सफेद टोपी, सादा भोजन, मांस-मदिरा व बुरी संगतों से दूर टाना भगतों में आज भी प्रासंगिक है. यह समुदाय सफेद रंग के कपड़े में चरखा अंकित ध्वज की पूजा करते हैं. हर प्रसंग में ध्वज साथ लेकर चलते हैं. इनकी टाना लिपि अद्भुत है. केंदुआदह, निंद्रा, कारीटांड़, बैलगड़ा, काली, ढोटी समेत अन्य गांव में कई जगह उक्त लिपि लिखी मिलेगी. रंका टाना भगत के अलावा अन्य लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. आतिथ्य सत्कार देखना हो, तो टाना भगत समाज में आइये. हर गुरुवार को हलबंदी होती है. इस दिन गौ माता को रोटी खिलाकर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. निंद्रा गांव के कारीटांड़ चौक पर विधायक कोटे से नौ स्वतंत्रता सेनानी की प्रतिमा लगाने का काम शुरू है. सीमाने पर स्वागत द्वार भी बनाया जा रहा है.
पारिवारिक जनगणना कराने की मांग
आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले टाना भगत समाज में कई समस्याएं है. सीएमएम चंदवा-मालहन-मैक्लूस्कीगंज सड़क निर्माण में ढोंटी, काली, बैलगड़ा व निंद्रा गांव के कई टाना भगत की जमीन गयी है. बेलगड़ा व निंद्रा गांव का सर्वे हो गया है. अब तक भुगतान नहीं मिला. शेष दोनों गांव के टाना भगत सरकारी कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं. गांव के भोला टाना भगत, रामचरित्र टाना भगत, शिवशंकर टाना भगत, बिरसा टाना भगत, अनिल टाना भगत, खदिया टाना भगत, गोवर्धन टाना भगत, रामचंद्र टाना भगत, चंद्रमा टाना भगत, दयामंती टाना भगत समेत अन्य लोगों ने कहा कि पारिवारिक जनगणना नहीं होने से उनलोगों को परेशानी हो रही है. लोगों ने उपायुक्त से एक टीम बनाकर पारिवारिक जनगणना कराने की मांग की है, ताकि उनको हक मिल सके.
समस्याओं से घिरे हैं स्वतंत्रता सेनानी के वंशज
नौ स्वतंत्रता सेनानी के वंशज प्रखंड में समस्याओं से घिरे हैं. पूर्व में रांची जिला अंतर्गत डकरा में सीसीएल की देख-रेख में टाना भगत औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र चलाया जाता था. कई वर्षों से यह बंद है. निंद्रा गांव में आदिवासी टाना भगत उच्च विद्यालय संचालित है. डीसी केके सोन के वक्त इसे सरकारी सुविधा मिली. अब यह भी बंद है. यहां पढ़नेवाले बच्चों को छात्रवृत्ति, ड्रेस, एमडीएम, दूध समेत अन्य योजनाओं को लाभ नहीं मिलता. स्थानीय लोगों ने स्वतंत्रता सेनानी टाना भगत स्मृति विकास समिति का गठन किया है. लोगों की मांग है कि स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को उनका हक मिलना चाहिए.
ये है प्रखंड के नौ स्वतंत्रता सेनानी
प्रखंड में स्वतंत्रता आंदोलन के नेतृत्वकर्ता भोला टाना भगत थे. ये स्वतंत्र भारत में निंद्रा के पहले मुखिया भी थे. 1942 के आंदोलन में ये देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ हजारीबाग जेल में रहे थे. इनके बाद बिरसा टाना भगत ने मोरचा संभाला था. पटना फुलवारी शरीफ जेल में छह माह बंद रहे. इनके बाद शनि टाना भगत भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. फुलवारी शरीफ से इन्हें बक्सर जेल भेज दिया गया था. वहीं इनकी मृत्यु हो गयी थी. शव गांव नहीं पहुंचा था. मकु टाना भगत के अलावा साधु टाना भगत, एतवा टाना भगत, ढिबरा टाना भगत, थोलवा टाना भगत, छोटेया टाना भगत भी 1942 के आंदोलन में फलवारी शरीफ जेल गये. प्रखंड कार्यालय के मुख्य द्वार के समीप लगायी गयी स्मृति शिला आज भी इनकी वीर गाथा बयां करती है.
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