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जिले के 500 छात्र- छात्राएं पढ़ाई के लिए जाते हैं बाहर

सुनील कुमार लातेहार : लातेहार में सात साल बाद भी आइटीआइ की स्थापना नहीं की जा सकी है. भवन का निर्माण अधूरा है. करीब तीन करोड़ रुपये की लागत से भवन का निर्माण ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल द्वारा कराया जा रहा था. तीस फीसदी काम होने के बाद यह मामला प्रकाश में आया कि जिस […]

सुनील कुमार
लातेहार : लातेहार में सात साल बाद भी आइटीआइ की स्थापना नहीं की जा सकी है. भवन का निर्माण अधूरा है. करीब तीन करोड़ रुपये की लागत से भवन का निर्माण ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल द्वारा कराया जा रहा था. तीस फीसदी काम होने के बाद यह मामला प्रकाश में आया कि जिस भूमि पर निर्माण किया जा रहा है वह निजी भूमि है. भूमि मालिक के हस्तक्षेप के बाद काम रुक गया, लेकिन तब तक करीब 70 लाख रुपये का निर्माण कार्य किया जा चुका था. मामला अदालत में गया और अदालत ने फैसला सुनाया कि भूमि सरकार की नहीं है और निर्माण कार्य रोका जाये.
ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल को शहर के जालमि ग्राम पथ स्थित लगभग तीन एकड़ भूमि पर तीन करोड़ रुपये की लागत से भवन निर्माण कराने का आदेश जिला प्रशासन ने दिया था. कार्यकारी एजेंसी ने जब उक्त भवन निर्माण योजना का शिलान्यास करने के लिए स्थल पर तामझाम फैलाया तो जमीन के मालिक नरोत्तम पांडेय वगैरह ने विरोध किया था.
इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री से ऑनलाइन शिलान्यास करा दिया और युद्ध स्तर पर निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया. लगभग 70 लाख रुपये के काम के बाद भी जब भूमि मालिक की बात नहीं सुनी गयी तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया. सब जज (प्रथम) की अदालत में मामले की विचारण के उपरांत पाया गया कि उक्त भूमि पर सरकारी भूमि नहीं है, तब तत्क्षण काम बंद करने का आदेश पारित किया गया. लगभग 30 फीसदी काम होने के उपरांत निर्माण कार्य कंद कराना पड़ा.
दोे आइटीआइ की स्थापना की अनुमति 2010-11 में िमली थी
सरकार ने जिले में दो आइटीआइ की स्थापना की अनुमति वर्ष 2010-11 में दी थी. एक महिला एवं एक पुरुष आइटीआइ की स्वीकृति सरकार ने दी थी. महिला आइटीआइ की शुरुआत रेलवे स्टेशन क्षेत्र में खाली पड़े एक भवन में कर दी गयी, लेकिन पुरुष आइटीआइ के लिए भवन निर्माण कराया जाने लगा, तत्पश्चात पढ़ाई शुरू करने की योजना बनी. विभिन्न ट्रेडों में कुल पांच सौ छात्रों के नामांकन की अनुमति तकनीकी निदेशालय झारखंड सरकार द्वारा दी गयी. भवन निर्माण की पेंच में लगभग सात वर्ष बीत जाने के बाद भी पुरुष आइटीआइ प्रारंभ नहीं हो पाया है. नतीजतन जिले के पांच सौ प्रतिभावान छात्रों को आइटीआइ की पढ़ाई के लिए अन्यत्र पलायन करना पड़ रहा है.
भूमि की प्रकृति की जांच अंचल कार्यालय द्वारा की जाती है. अंचल कर्मचारी राजस्व अभिलेखों की जांच करके उसका विवरण पेश करते हैं. तत्पश्चात अंचल अमीन द्वारा उस प्लाट का नक्शा पेश किया जाता है. इसके बाद अंचलाधिकारी अपने मंत्व्य के साथ प्रशासन को भूमि प्रकृति प्रमाण पत्र के आधार पर जिला उपायुक्त द्वारा योजना की स्वीकृति दी जाती है और प्रशासनिक स्वीकृति के उपरांत तकनीकी स्वीकृति मिलती है और एजेंसी तय की जाती है.
इस मामले में कार्यकारी एजेंसी (ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल) का जब योजना स्थल पर पांव रखते ही रैयतों ने विरोध किया तो सवाल उठता है कि प्रशासन को क्यों नहीं सूचित किया गया, बल्कि महीनों काम जारी रहा और ठेकेदार को भुगतान दिया जाता रहा.

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