उन्होंने कहा कि भारत में सालाना सब्जियों उत्पादन कई मिलियन टन होता है. लेकिन संरक्षण की सुविधा न होने से 30 प्रतिशत सब्जी नष्ट हो जाती है. इसलिए किसानों को सब्जी के रख-रखाव, पैकेजिंग, कॉस्ट कटिंग, चैनल मार्केटिंग, वैज्ञानिक खेती, तकनीकी इनपुट भी जानना जरूरी है. ऑरगनाइज्ड वेजिटेबल मार्केटिंग के संबंध में उन्होंने किसानों को कई उदाहरण देकर समझाने का प्रयास किया. साथ ही एकल व ऑरगनाइज्ड वेजिटेबल मार्केटिंग का लाभ-हानि भी बताया. मौके पर किसानों ने अपनी समस्यायें रखीं और उनकी जिज्ञासा दूर की गयीं.
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किसान उपज की मार्केटिंग भी सीखें : कौशलेंद्र
जमशेदपुर : कदमा गणेश पूजा मैदान में टाटा स्टील का किसान-वैज्ञानिक सम्मेलन वार्ता-2017 के दूसरे दिन संगठित सब्जी का विपणन (ऑर्गनाइज्ड वेजिटेबल मार्केटिंग) विषय पर पैनल डिस्कशन किया गया. कौशल्या फाउंडेशन के संस्थापक कौशेलेंद्र कुमार ने बताया कि सब्जी की खेती के साथ उसकी मार्केटिंग भी जरूरी है. उपज को सही दाम मिले तभी मुनाफा […]
जमशेदपुर : कदमा गणेश पूजा मैदान में टाटा स्टील का किसान-वैज्ञानिक सम्मेलन वार्ता-2017 के दूसरे दिन संगठित सब्जी का विपणन (ऑर्गनाइज्ड वेजिटेबल मार्केटिंग) विषय पर पैनल डिस्कशन किया गया. कौशल्या फाउंडेशन के संस्थापक कौशेलेंद्र कुमार ने बताया कि सब्जी की खेती के साथ उसकी मार्केटिंग भी जरूरी है. उपज को सही दाम मिले तभी मुनाफा होगा. गांव के किसान सब्जी उत्पादन तो कर लेते हैं, लेकिन मार्केटिंग से चूक जाते हैं. इसलिए खेतीबाड़ी के साथ-साथ मार्केटिंग का भी ज्ञान होना जरूरी है.
जलवायु अनुरूप कृषि पर हुई परिचर्चा : कृषि वार्ता में जलवायु अनुरूप कृषि विषय पर हैदराबाद से आये कृषि वैज्ञानिक डाॅ. जी राजेश्वरी राव ने जानकारी दी. उन्होंने जलवायु के अनुरूप खेतीबाड़ी करने पर जोर दिया. हजारीबाग से आये कृषि वैज्ञानिक डा. योगेश कुमार ने सीमा प्रौद्योगिकी विषय पर जानकारी दी.
परंपरागत खेती में बदलाव लायें
टरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी–एरिड ट्रॉपिक्स (आइसीआरआइएसएटी) हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ. एस वाणी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए परंपरागत खेती में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है. ‘वार्ता’ के अंतिम दिन वैज्ञानिक लाह और मछली उत्पादन के सत्र में ज्ञान साझा करेंगे. इस कृषि सम्मेलन में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च, सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर, बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और सेंट्रल हॉर्टीकल्चर रिसर्च स्टेशन, भुवनेश्वर के वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं.
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