यह बातें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहीं. श्री मुंडा घोड़ाबांधा स्थित फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह की खबरों को किसी और के माध्यम से लाकर सवाल उठाने और लोगों की आवाज उठाने वालों को ही सवालों में लाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, यह बात सही है, लेकिन यह लोगों को बताने में परहेज किया गया कि हमने उसे मंजूरी नहीं दी और ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल की सबकमेटी बनाकर उसमें चर्चा करने को कहा था, जिसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आ पायी है.
यह पूछे जाने पर कि कौन सी लॉबी थी, इस पर उन्होंने कहा कि जिसको उस संशोधन से लाभ होना था. उन दिनों हाईकोर्ट का फैसला आया था, जिसमें यह कहा गया था कि ट्राइबल ही नहीं बल्कि ओबीसी का जमीन भी ट्रांसफर नहीं की जा सकती है. इसके बाद उस पर कोई संशोधन करने का सवाल ही नहीं है. संवैधानिक प्रावधान ट्राइबल या किसी जाति को बचाने के लिए बनायी गयी है, जिसके साथ छेड़छाड़ से लोगों को ही नुकसान पहुंचेगा. सरकार का विरोधी नहीं. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का मैं विरोधी नहीं हूं. जनहित और आदिवासी समेत तमाम समुदाय के लोगों की जनहित में बात उठा रहा हूं, जो उठाता रहूंगा. जहां तक सीएनटी व एसपीटी एक्ट की बात है तो कभी भी पार्टी की कोर कमेटी या किसी फोरम में इसको लेकर सरकार के स्तर पर चर्चा तक नहीं हुई. कड़िया मुंडा और हमसे या किसी से इस पर कोई चर्चा नहीं हुई, इस कारण पार्टी का विरोध का कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन जनहित की बात है तो वह तो की जाती रहेगी. इसको लेकर इतनी व्यग्रता क्यों दिखायी जा रही है. ट्राइबल होने के नाते यह मेरा दायित्व भी है.
इस संशोधन से एक बड़े तबके को ही लाभ होगा. उद्योग अगर आदिवासी जमीन पर लगता है तो 51 फीसदी हिस्सेदारी जमीन के मालिक के पास रहेगी, 49 फीसदी दूसरे के पास रहेगी. बिना लोन के तो कोई कारोबार नहीं होगा, ऐसे में जो भी बैंकर्स होगा, वह अगर लोन की राशि नहीं वसूल पायेगा तो जमीन के मालिक की जमीन को ही ले लेगा और उसका ऑक्सन कर लेगा, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश में साफ तौर पर लिखा गया है. इसके बाद ट्राइबल की जमीन भी चली जायेगी और उद्योग भी नहीं चलेगा, उसके बाद उसका अस्तित्व ही मिट जायेगा.