जमशेदपुर: महज 14 वर्ष की उम्र में सिल्ली की सिम्पी कुमारी महतो ने वह कारनामा कर दिखाया है सीनियर खिलाड़ी जिसका सपना देखते हैं. अपने नन्ही हाथों से तीर चलानेवाली सिम्पी ने सिर्फ डेढ़-दो वर्ष के कैरियर में करीब 20 पदक अपने नाम किये हैं.
भारत सरकार ने सिम्पी की असाधरण प्रतिभा को देखते हुए बाल दिवस के अवसर पर उसे दिल्ली के शास्त्री भवन में सम्मानित करने का फैसला किया है. सिम्पी की कहानी भी एक परिकथा के समान है. सब जूनियर की उम्र में सीनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी में पदक जीतकर सिम्पी कुमारी महतो ने देश के दिग्गज तीरंदाजों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है.
14 वर्ष में जीता सीनियर तीरंदाजी में पदक
सिम्पी ने जबलपुर में मंगलवार 12 नवंबर को संपन्न राष्ट्रीय तीरंदाजी के इंडियन राउंड में कांस्य पदक जीता है. इससे पूर्व गत वर्ष भी सिम्पी ने सीनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी में रजत पदक जीता था. सिम्पी ने अपने दो वर्ष से कम के कैरियर में ही राष्ट्रीय तीरंदाजी में करीब 20 पदक अपने नाम किये हैं. सब जूनियर व जूनियर में सिम्पी की प्रतिभा को देखते हुए झारखंड आर्चरी एसोसिएशन ने उसे सीनियर वर्ग में उतारने का फैसला किया. सिम्पी ने भी उनके भरोसे को कायम रखा और 14 वर्ष की इस नन्ही सी तीरंदाज ने सीनियर तीरंदाजी (21 वर्ष से ऊपर) में दो पदक झटक लिये.
कम रोचक नहीं है सिम्पी के आर्चरी में आने की कहानी
सिम्पी के आर्चरी में आने की कहानी भी कम रोचक नहीं है. बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र, सिल्ली के प्रशिक्षक प्रकाश राम बताते हैं, सिम्पी कुमारी कस्तुरबा गांधी आवासीय विद्यालय में पढ़ती थी. वहां आर्चरी सेंटर चलता था. तभी मैंने इस बच्ची को देखा था. एक बार रूम शिफ्टिंग में यह बच्ची हाथ बंटा रही थी. एकदम शांत होकर एक-एक समान को करीने से रखना. कोई हड़बड़ी नहीं. कोई उतालवापन नहीं. मुङो लगा कि इस बच्ची का धैर्य तीरंदाजी के लायक है. मैंने उससे कहा, तुम तीरंदाजी करोगी. उसने कहा, ‘नहीं. मुङो तीरंदाजी नहीं आती है. मुङो नहीं करनी.’ हालांकि सिम्पी को बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र में शामिल किया गया. लेकिन सिम्पी ज्यादा दिनों तक तीरंदाजी केंद्र में नहीं रही. वह वापस चली गयी. सिम्पी को फिर से बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र में लाया गया. इस बार उसने तीरंदाजी को गंभीरता से लिया और सिर्फ डेढ साल के भीतर करीब 20 पदक झारखंड को दिलाये हैं.
दीपिका दीदी से भी बड़ा तीरंदाज बनना है
जब इस संवाददाता ने सिम्पी से बात की तब वह ट्रेन में थी. कोच शिशिर महतो द्वारा नींद से जगाये जाने के बाद उसने बात की. आपने इतनी कम उम्र में तीरंदाजी में बेहतर शुरुआत की है. राष्ट्रीय तीरंदाजी में काफी पदक हासिल किये हैं. बड़ा होकर आप क्या बनना चाहती हैं. बिना देर किये सिम्पी ने कहा कि मुङो दीपिका दीदी से भी बड़ा तीरंदाज बनना है. घर में आर्थिक कठिनाई है. क्या मां-पिताजी कभी तीरंदाजी के लिए बाहर जाने को मना नहीं करते. इस पर सिम्पी ने कहा, नहीं. वे खुशी-खुशी भेजते हैं. तीरंदाजी में कैसा लग रहा है, इस पर उसने कहा,‘अब अच्छा लग रहा है. अभ्यास करती हूं. पढ़ाई करती हूं फिर चैंपियनशिप में पदक के लिए तीर मारती हूं.’
सुदेश महतो चला रहे हैं बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र
झारखंड के पूर्व गृह मंत्री सुदेश महतो सिल्ली में बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र का संचालन कर रहे हैं. सुदेश महतो इस केंद्र के संरक्षक हैं. वहीं उनकी पत्नी श्रीमती नेहा महतो तीरंदाजी केंद्र की बाकी जिम्मेवारी संभालती हैं. सुदेश महतो का खेल प्रेम जगजाहिर है. धौनी जब भी रांची आते हैं वे सुदेश महतो से जरूर मिलते हैं. सुदेश महतो ने हाल ही में राज्य के पूर्व खिलाड़ियों के साथ मिलकर फुटबॉल को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है.
गम्हरिया के रहनेवाले हैं केंद्र के प्रशिक्षक प्रकाश राम बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र सिल्ली के प्रशिक्षक प्रकाश राम गम्हरिया, सरायकेला के रहनेवाले हैं. प्रकाश राम शार्ट एनआइएस करने के बाद झारखंड आर्चरी एसोसिएशन में कोच बने. इसके बाद वे विद्या ज्योति स्कूल गम्हरिया में पांच वर्षो तक प्रशिक्षण दिया. इसके बाद वे टाटा स्टील, वेस्ट बोकारो में प्रशिक्षक रहे. वर्तमान में प्रकाश राम शिशिर महतो के साथ बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र में तीरंदाजों को निखारने की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता पूर्णिमा महतो और टाटा आर्चरी एकेडमी के अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षक धर्मेद्र तिवारी सिम्पी के प्रदर्शन से काफी प्रभावित हैं. इनके अनुसार यदि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चलता रहा तो झारखंड और देश को निश्चय ही दूसरी दीपिका मिलेगी.
पिता हैं प्राइवेट गार्ड
सिल्ली के कड़ियाडीह गांव की रहनेवाली सिम्पी के पिता लखीराम महतो अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए रांची में गार्ड का काम करते हैं. लखीराम महतो पहले गांव में भाड़े के मकान में राशन की दुकान चलाते थे. लेकिन इसमें घाटा होने पर उन्होंने दुकान बंद कर दी. जो थोड़ी बहुत जमीन है उस पर पत्नी शारदा देवी के साथ मिलकर खेती करते थे, लेकिन उन्हें लगा कि शायद वे इससे बेटी की तीरंदाजी के सपनों को पूरा नहीं कर पायेंगे. इसलिए उन्होंने रांची में एक प्राइवेट संस्थान में गार्ड की नौकरी शुरू की. अभी उन्हें इस काम से 4800 प्रति महीने मिलते हैं. इतनी कम उम्र में बेटी ने तीरंदाजी में प्रसिद्धि हासिल की है. भारत सरकार ने उसे 14 नवंबर को सम्मानित करने का फैसला किया है. कैसा लग रहा है बेटी की इस सफलता पर, ‘सुनकर दिल गदगद हो गया. बीमार हैं, लेकिन नौकरी कर रहे हैं, जिससे बेटी कुछ बन जाये. बस यही अरमान है.’ सिम्पी खेल के क्षेत्र में आनेवाली अपनी परिवार की पहली सदस्य है. सिम्पी की छोटी बहन चंद्रिका कुमारी आवासीय स्कूल में कक्षा छह की छात्र है.
आज भारत सरकार करेगी सम्मानित
सिम्पी को 14 नवंबर को बाल दिवस पर दिल्ली के दिल्ली हाट एनआइए में भारत सरकार के महिला व बाल विकास विभाग की ओर से सम्मानित किया जायेगा. सिम्पी को वर्ष 2013 में उसके असाधरण प्रदर्शन के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है. उसे 10 हजार रुपये नकद, एक रजत पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जायेगा. सिम्पी राष्ट्रीय तीरंदाजी में भाग लेने जबलपुर गयी थी. वहीं से खबर मिलने पर कोच शिशिर महतो के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुई.