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साध्य सूर्य और समरस छठ

साध्य सूर्य और समरस छठ भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व छठ कई संदेश देता है. दुनिया उगते हुए सूरज को सलाम करती है, लेकिन इस पर्व में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य देने की परंपरा है. यानी, विदायी की स्थिति में भी परस्पर सम्मान व स्नेह बनाये रखने की सीख. इस त्योहार में […]

साध्य सूर्य और समरस छठ भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व छठ कई संदेश देता है. दुनिया उगते हुए सूरज को सलाम करती है, लेकिन इस पर्व में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य देने की परंपरा है. यानी, विदायी की स्थिति में भी परस्पर सम्मान व स्नेह बनाये रखने की सीख. इस त्योहार में पवित्रता व शुद्धता का इतना ख्याल रखा जाता है कि व्रती 60 घंटे तक पानी भी नहीं पीते. यह समूह में किया जाने वाला व्रत-तप है. इसमें समाज के सभी वर्ग का योगदान भी जरूरी है. यानी, तमाम भेद-भाव व विकार को भूला कर यह समरस हो जाने का व्रत है. छठ व्रत-तप के इसी समरस स्वरूप को पेश कर रही है लाइफ @ जमशेदपुर की यह स्टोरी…————–कालिंदी समाज समाज के इस वंचित वर्ग का योगदान महत्वपूर्ण है. पूजन सामग्री व प्रसाद को छठ घाट तक ले जाने के लिए दउरा (टोकरी) की जरूरत होती है. सूप पर प्रसाद चढ़ाया जाता है. इसी सूप से व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं. एक-एक व्रती चार-पांच सूप तक चढ़ाती हैं. इसलिए इस त्योहार में सूप का विशेष महत्व होता है. सूप कालिंदी समाज के लोग तैयार करते हैं. भुइयांडीह स्थित कालिंदी समाज की आभा देवी बताती हैं छठ में सूप की विशेष तैयारी करनी होती है. महीना भर से ज्यादा पहले से काम शुरू हो जाता है. विमला देवी के मुताबिक सूप सुखाने और बनाने की जगह साफ-सुथरा रखी जाती है. यहां तक कि यह विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई उसे जूठा न करे. इस प्रकार कालिंदी समाज के लोग छठ पर्व में योगदान देते हैं. सभी वर्गों का योगदानकुम्हार छठ पर्व में कई तरह के मिट्टी के बर्तन प्रयोग में लाये जाते हैं. काशीडीह कुम्हारपाड़ा निवासी अशोक प्रजापति बताते हैं कि पर्व में मिट्टी के हाथी, कोसी (कलश में दीया), दीया, ढक्कन, हंडी, प्याली आदि प्रयोग में लाये जाते हैं. हाथी, कोसी व दीया आदि पूजा के काम आते हैं. मिट्टी की हंडी में व्रती खीर बनाती हैं और प्याली में भोग ग्रहण करती हैं. लालू प्रजापति के मुताबिक आजकल पेंट वाले बर्तन की मांग अधिक रहती है. अशोक बताते हैं कि छठ के लिए बर्तन तैयार करने में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. यहां तक कि उनकी पकाई में भी किसी अपशिष्ट चीज का प्रयोग नहीं किया जाता. पकने के बाद उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाता है.ग्वाला समाज भगवान सूर्य को अर्घ्य दूध से दिया जाता है. खरना का प्रसाद खीर भी दूध से ही बनता है. यह दूध ग्वाला के घर से ही आता है. सिदगोड़ा के दीनानाथ प्रसाद गाय पालते हैं. वह कहते हैं कि छठ को लेकर दूध की शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है. दूध निकालने वाले बर्तन को मिट्टी से अच्छी तरह से धो लिया जाता है. इसके बाद उसे धुली हुई जगह पर ही रखा जाता है. यह सावधानी बरती जाती है कि दूध किसी प्रकार से अशुद्ध न हो. माली समाज छठ पूजा के लिए फूलों का प्रयोग भी किया जाता है. पारंपरिक रूप से व्रतियों को फूल माली समाज के लोग ही देते हैं. काशीडीह के बाबू माली की साकची में फूलों की दुकान है. वह छठ पर प्रत्येक साल मानगो घाट पर फूल व अगरबत्ती का स्टॉल लगाते हैं. वह व्रतियों के लिए फ्री सेवा देते हैं. किसान व फल-सब्जी उत्पादक छठ पर्व में किसानों की सबसे अधिक भूमिका होती है. उनके घर से ही पकवान बनाने के लिए गेहूं, हल्दी, सुथनी, ईख आदि आते हैं. शहर से छह किलोमीटर दूर बालीगुमा के किसान गेहूं, हल्दी, लौकी आदि की खेती करते हैं. किसान ग्लेडसन बताते हैं कि वे लोग घर के लिए गेहूं उगाते हैं. अधिक उपज होने पर इसकी बिक्री भी करते हैं. उनके मुताबिक छठ पर कई लोग बालीगुमा से गेहूं ले जाते हैं. पर्व वाले गेहूं को वे लोग पूरी पवित्रता के साथ सुखाते हैं. धुले हुए बोरे में उन्हें स्टोर करते हैं और बच्चों की पहुंच से दूर रखते हैं, ताकि उन्हें अशुद्ध नहीं होने दिया जाये. फूलो देवी ने घर के पास ही बाड़ी में हल्दी उगा रखी है. वह छठ व्रत के लिए मुफ्त में हल्दी देती हैं. त्योहार के दौरान होने वाली लौकी भी वह व्रतियों के इस्तेमाल के लिए प्रयुक्त करती हैं. मुस्लिम समाज सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए सूप में अन्य फलों के साथ-साथ नारियल का होना भी जरूरी है. शहर में फलों के कारोबार में मुस्लिम समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है. साकची में शादाब खान 10 वर्षों से नारियल का व्यवसाय कर रहे हैं. उनकी दुकान से हर साल छठ व्रती नारियल ले जाती हैं. वह बताते हैं कि हर तीज-त्योहार सभी को मिलजुल कर मनाना चाहिए. इससे समाज में सौहार्द बढ़ता है. इस प्रकार शहर का मुस्लिम समुदाय भी इस त्योहार में अपनी बड़ी भूमिका अदा करता है. व्यवसायी समाज छठ के लिए नया कपड़ा, टिकुली, सिंदूर, चूड़ी, हवन सामग्री, धूप, अगरबत्ती व लकड़ी आदि की जरूरत होती है. इन सारी चीजों की व्यवस्था व्यवसायी समाज के लोग पर्व से पहले ही कर लेते हैं. उनकी कोशिश रहती है कि व्रतियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो. इस प्रकार हर समुदाय के लोग इस त्योहार में अपना योगदान देते हैं.

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