बताया गया है कि चार सबसे अधिक खपत वाली दवाएं नन स्टैंडर्ड पायी गयी हैं. उनमें वो केमिकल नहीं हैं, जो होनी चाहिए. जानकारी के अनुसार कंपनी के आंतरिक विजिलेंस विभाग ने टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन को इसकी रिपोर्ट सौंपी है. अब एमडी पूरे मामले को खुद देख रहे हैं. हालांकि, इसकी जानकारी मिलने के बाद टाटा स्टील प्रबंधन ने दवाओं की सप्लाइ रोक दी थी. इससे संकट उत्पन्न हुआ है. अब हालात पर पैनी नजर रखी जा रही है. इस संबंध में टाटा स्टील के प्रवक्ता कुलवीन सुरी से बात करने की कोशिश की गयी, लेकिन देर शाम तक उनका मोबाइल बंद पाया गया.
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टीएमएच में करोड़ों का दवा घोटाला
जमशेदपुर: टाटा स्टील की ओर से संचालित टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) में बड़े पैमाने पर दवा घोटाला और नकली दवा आपूर्ति का मामला सामने आया है. कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट और आंतरिक विजिलेंस विभाग की जांच में इसका खुलासा हुआ है. सूत्रों के अनुसार चार अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल चल रहा है. स्वास्थ्य […]
जमशेदपुर: टाटा स्टील की ओर से संचालित टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) में बड़े पैमाने पर दवा घोटाला और नकली दवा आपूर्ति का मामला सामने आया है. कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट और आंतरिक विजिलेंस विभाग की जांच में इसका खुलासा हुआ है. सूत्रों के अनुसार चार अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल चल रहा है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से लिए गये सैंपल की जांच में नकली दवा आपूर्ति की बात सामने आयी है.
कंपनी के सॉफ्टवेयर के समानांतर सॉफ्टवेयर विकसित किया गया
जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि टीएमएच में जिस सिस्टम या सॉफ्टवेयर से दवाओं की खरीद होती थी, उसके समानांतर सॉफ्टवेयर तैयार कर लिया गया. एआरसी के 26 नंबर कोड पर दवाओं के कंपोजिशन और कंपनी के नाम पर रेट लिया जाता था, लेकिन समानांतर सॉफ्टवेयर में एक अलग कोड नंबर आइटीएस के सहयोग से तैयार किया गया था. इमरजेंसी के नाम पर सारा खेल चल रहा था.
ऐसे चल रहा था दवा घोटाला का खेल
टीएमएच में दवा सप्लाइ के लिए टाटा स्टील एक वर्ष का कांट्रैक्ट करती है. इसे एआरसी कहा जाता है. वहीं, टीएमएच के पदाधिकारियों और क्रय समिति को अधिकार था कि अगर दवा संकट होता है, तो तत्काल कांट्रैक्ट रेट पर दवाओं की खरीद की जाती है. वार्षिक कांट्रैक्ट में कंपनियां बिडिंग करती है. ऐसे में चयनित एजेंसी को सालभर उसी रेट में दवा सप्लाइ करनी पड़ी है. वहीं, इमरजेंसी के हालात में बाजार मूल्य पर दवाओं की खरीदारी करनी थी. ऐसे में स्टोर से संबंधित अधिकारी या दवा सप्लाइ से जुड़े अधिकारी कांट्रैक्टर को ऑर्डर नहीं करते थे. कृत्रिम तौर पर इमरजेंसी स्थिति पैदा कर बाजार मूल्य पर दवाओं की खरीद करते थे. इसमें कंपनियों की मिलीभगत थी. ऐसे में मनमर्जी दवाओं की सप्लाइ की जाती थी. यहीं नहीं, कागज पर जितनी दवाओं की सप्लाइ दिखायी जाती थी, उतनी सप्लाइ नहीं की जाती थी. दवाओं का वितरण दिखा दिया जाता था. इसमें टीएमएच के स्टोर से लेकर तमाम अधिकारियों की संलिप्तता सामने आयी है. जांच में यह सामने आया है कि कई दवाओं में रंगीन गोली या सफेद गोली के अलावा अंदर कुछ भी नहीं था.
टीएमएच की दवाओं में गड़बड़ी : ड्रग इंस्पेक्टर
ड्रग इंस्पेक्टर रामकुमार झा ने बताया कि टीएमएच की दवाओं की जांच में दवाएं नन स्टैंडर्ड पायी गयी है. दवाओं में मौजूद कंपोजीशन पर्याप्त नहीं था. वह स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं था. इसकी रिपोर्ट आ चुकी है. अब कार्रवाई की तैयारी चल रही है.
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