गिरिडीह : बुधवार को विश्व पर्यावरण दिवस है. जगह-जगह वनों की सुरक्षा को ले सेमिनार आयोजित होंगे. कहीं एक पेड़ दस पुत्र समान तो कहीं जंगल लगाओ पर्यावरण बचाओ के नारे लगेंगे और कहीं वन सुरक्षा समिति के सदस्य सम्मानित किये जायेंगे. कहीं वनों की रक्षा पर भाषण व घोषणाएं होगी तो कहीं वन अधिकार अधिनियम की बातें होगी.
लेकिन ऐसे कार्यक्रम सिर्फ एक दिन ही क्यों. सच मानें तो यह महज खानापूर्ति लगती है क्योंकि इसका असर न तो गांव में दिखता है और न ही शहर में. आज भी वनों का अस्तित्व खतरे में हैं और लकड़ी माफियाओं की चांदी कट रही है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जिले के गांडेय प्रखंड का धरधरवा जंगल है.
टांड़ में तब्दील हुआ जंगल : जानकारी के अनुसार गांडेय प्रखंड के धरधरवा में करीब 20 एकड़ जमीन में वन रोपन किया गया था. पहले तो जंगल काफी हरा भरा था, लेकिन जैसे ही पेड़ कुछ बड़े व मोटे हुए जलावन के नाम पर इसकी कटाई प्रारंभ हो गयी. पेड़ों की कटाई भी ऐसे हुई है कि यह क्षेत्र अब जंगल के बजाय वीरान टांड़ के रूप में तब्दील हो गया है.
यहां कुछ बची है तो बस पेड़ों की जड़ें, जो खूंटी के रूप में वन होने का दावा कर रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि जंगल के बीच यहां जंतवा पहाड़ी भी है, जिसके पत्थर से एक जाति विशेष के लोगों की रोजी रोटी चलती है. जंगल के उजड़ने से पहाड़ के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है.
ग्रामीण जलावन के लिए जंगल से पेड़ की टहनी-पत्ती आदि तोड़ कर ले जाते हैं, लेकिन जंगल से पेड़ काटने का काम कतिपय लकड़ी माफिया करते हैं. लकड़ी माफिया जंगल ही नहीं वरन सड़क किनारे लगे मोटे-मोटे पेड़ को भी काट कर मालामाल हो रहे हैं. जंगल की लकड़ी को माफिया आरा मिलों में ले जाकर तुरंत कटाई चिराई करा लेते हैं और बेच देते हैं.
बिना लाइसेंस के चल रहे कई आरा मिल : जिले में संचालित अधिकांश आरा मिल बगैर लाइसेंस के हैं. केवल गांडेय की ही बात करें तो यहां आधा दर्जन आरा मिल संचालित हैं. लकड़ी के सप्लाई के एवज में माफिया संबंधित विभाग व थाना को एक बंधी बंधायी रकम देते हैं.
– समशुल अंसारी –