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खतरे में 2000 लोगों की जान
फ्लोरिसिस का प्रकोप. प्रतापपुर के बाद बौराहा भी आक्रांत, एक मरा, दर्जनों पीड़ित प्रतापपुर में फ्लोराइड के प्रकोप के बाद अब मेराल प्रखंड का बौराहा गांव भी इसकी जद में आ गया है. गांव के कई लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने से बीमार हो रहे हैं. कुछ दिन पहले ही एक वृद्ध की मौत भी […]
फ्लोरिसिस का प्रकोप. प्रतापपुर के बाद बौराहा भी आक्रांत, एक मरा, दर्जनों पीड़ित
प्रतापपुर में फ्लोराइड के प्रकोप के बाद अब मेराल प्रखंड का बौराहा गांव भी इसकी जद में आ गया है. गांव के कई लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने से बीमार हो रहे हैं. कुछ दिन पहले ही एक वृद्ध की मौत भी इस कारण हो चुकी है. हालांकि इस दिशा में अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की गयी है.
विनोद पाठक
गढ़वा : गढ़वा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी सरकार लोगों को शुद्ध पानी देने में सक्षम नहीं हो पा रही है. इसके कारण यहां के फ्लोराइड प्रभावित गांवों के लोग समय से पूर्व जहां काल के गाल में समा जा रहे हैं, वही जो लोग जीवित हैं, वह जीते जी विकलांगता का जीवन बसर करने को मजबूर हैं. मेराल प्रखंड का बौराहा गांव भी इसी तरह का एक गांव है, जहां के फ्लोराइड प्रभावित पानी पीने से यह गांव धीरे-धीरे पूरी तरह विकलांगता का शिकार होता जा रहा है.
अबतक इस गांव की एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है और एक व्यक्ति विकलांग होकर सदा के लिए बिस्तर पर जा चुका है, जबकि दर्जनों विकलांगता का शिकार हो चुके हैं. यदि स्थिति यही बनी रही, तो बौराहा गांव भी प्रतापपुर के मौनाहा टोला वाली स्थिति में पहुंच जायेगा, जहां फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से अब तक 50 से ऊपर मौत हो चुकी है और वह पूरा टोला ही विकलांगता का जीवन बसर करने के लिए मजबूर हो गया है.
पहाड़ी के तलहटी में बसा यह बौराहा गांव कभी सब्जी के लिए मशहूर हुआ करता था. सब्जी उगाना ही यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय था. लेकिन शुद्ध पानी नहीं पीने के कारण इन मेहनतकश लोगों का जीवन अब बोझ बनता जा रहा है. शुद्ध पानी उपलब्ध करने के लिए यहां के लोग स्थानीय पेयजल व स्वच्छता विभाग से लेकर सरकार तक पिछले पांच साल से गुहार लगा रहे हैं. उन्हें इसके लिए आश्वासन भी मिल रहा है, लेकिन आजतक इसके लिए उपाय कुछ नहीं किया गया. परिणाम हुआ कि फ्लोराइडयुक्त पानी पीते रहने से इस गांव के कुश मेहता 60 साल नामक व्यक्ति की फ्लोराइडजनित रोग से मौत हो गयी, वहीं दर्जनों ग्रामीण विकलांगता का शिकार हो गये हैं. विनायक मेहता शरीर से अपंग होकर बिस्तर पर पड़ चुके हैं. उनके शरीर में अब खड़ा होने की शक्ति क्षीण हो चुकी है. इसी तरह गांव के यदु मेहता, लौ मेहता, वीरेंद्र एक्का, मनोज कुशवाहा, अर्जुन महतो आदि ग्रामीण भी जोड़ों की दर्द से परेशान हैं.
सात साल पहले हो चुका है इसका खुलासा
बौराहा गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक होने का खुलासा साल 2010 में ही हो चुका है. गांव के यदु मेहता (60साल) गढ़वा कचहरी में दस्तावेज नवीस का काम करते थे. जब वे जोड़ों के दर्द से परेशान हो गये, तो उन्होंने पहले स्थानीय स्तर पर इलाज कराया.
दवा खाने के बाद भी ठीक नहीं होने पर उन्होंने अपोलो रांची में दिखाया. वहां उन्हें बताया गया कि उनकी यह स्थिति फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से हुआ है. इसके बाद से यदु मेहता दस्तावेज नवीस का काम छोड़ कर घर बैठने को मजबूर हो गये हैं. यदु कहते हैं कि उनकी जिंदगी तो खराब हो ही गयी, कम से कम सरकार उनके बच्चों को इस बीमारी से बचाने का काम करे, ताकि आनेवाली पीढ़ी को इस तरह विकलांगता का जीवन न जीना पड़े. इसी तरह गांव के विनायक महतो (50 साल) को रांची से यह कह कर लौटा दिया कि अब वह कभी भी अपने पैर पर खड़ा नहीं हो सकता है. सिलाई-कटाई करके अपने परिवार का भरण-पोषण करनेवाला वीरेंद्र एक्का (38 साल) कहता है कि अब उसके शरीर में इस प्रकार का जकड़न पैदा हो गया है कि वह जीवन में कभी भी सिलाई नहीं कर सकता है. कुछ इसी यही स्थिति गांव के गांव के कई लोगों की बन गयी है, जिनमें सभी उम्र के लोग शामिल हैं.
जल्द लगेगा पांच सिलिंडरयुक्त चापानल : इइ
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कार्यपालक अभियंता राधेश्याम रवि से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में है. एक सप्ताह के भीतर बौराहा गांव में पांच सिलिंडरयुक्त चापानल लगाये जायेंगे. यह त्वरित व्यवस्था है. साथ ही भविष्य के लिए ग्रामीणों को फिल्टरयुक्त पानी के लिए योजना बनायी गयी है. आनेवाले दिनों में ग्रामीणों को सोलर सिस्टम से शुद्ध पेयजल(फिल्टर कर) उपलब्ध कराया जायेगा.
सात साल से ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था का मिल रहा है िसर्फ आश्वासन
गांव के बुजुर्ग सह गढ़वा जिला कुशवाहा महासभा के अध्यक्ष रामसागर मेहता कहते हैं कि उन्होंने गांव में शुद्ध पानी की व्यवस्था करने के लिए सात साल से लगातार दौड़-धूप कर रहे हैं, लेकिन सरकार से अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है. छह माह पूर्व किसी तरह एक सिलिंडर वाला चापानल लगाया गया है. लेकिन एक तो करीब 2000 की आबादीवाले इस गांव में एक सिलिंडरयुक्त चापानल लगाने से सबको पानी नहीं मिल सकता, दूसरे सिलिंडरयुक्त चापानल इसका समाधान नहीं हो सकता है. इसके लिए उन्होंने सरकार एवं प्रशासन के प्रति काफी आक्रोश व्यक्त किया.
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