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1989 से धनबाद में बढ़ा भाजपा का कद

धनबाद: कट्टर हिंदुत्व, अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे कोयलांचल में भाजपा के लिए रामबाण साबित हुआ. वर्ष 1989 से भाजपा के वोट में अचानक काफी बढ़ोतरी हुई. पिछले सात चुनावों से पार्टी यहां लोकसभा के हर चुनाव में मुख्य मुकाबले में रही है. वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में धनबाद से भाजपा प्रत्याशी […]

धनबाद: कट्टर हिंदुत्व, अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे कोयलांचल में भाजपा के लिए रामबाण साबित हुआ. वर्ष 1989 से भाजपा के वोट में अचानक काफी बढ़ोतरी हुई. पिछले सात चुनावों से पार्टी यहां लोकसभा के हर चुनाव में मुख्य मुकाबले में रही है.

वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में धनबाद से भाजपा प्रत्याशी रहे समरेश सिंह को सिर्फ 77038 वोट मिले. इसके बाद वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जब देश में अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर कट्टर हिंदुत्व का माहौल चरम पर था, तब भाजपा के प्रत्याशी समरेश सिंह के वोट में काफी बढ़ोतरी हुई.

भाजपा प्रत्याशी को 2,33,441 मत मिले और वह दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद 1991 के चुनाव में पहले भाजपा ने पार्टी के दिग्गज नेता रहे सत्य नारायण दुदानी को टिकट दिया. नामांकन से एक दिन पहले धनबाद के शहीद पुलिस अधीक्षक रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी रीता वर्मा को भाजपा ने टिकट थमा दिया.

श्रीमती वर्मा ने 2,57,066 मत ला कर पहली बार यहां भगवा का परचम लहराया. इसके बाद वर्ष 1996,1998 एवं 1999 के चुनाव में भी श्रीमती वर्मा ने जीत हासिल कर धनबाद को भगवा गढ़ के रूप में स्थापित किया. वर्ष 1998 के चुनाव में रीता वर्मा ने सबसे ज्यादा 4,52,590 वोट प्राप्त किया. इतना वोट अब तक धनबाद में किसी भाजपा प्रत्याशी को नहीं मिला है.

पीएन ने वापस दिलायी सीट
वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस के चंद्रशेखर उर्फ ददई दुबे ने भाजपा की रीता वर्मा को एक लाख से भी अधिक वोट से हरा कर भाजपा से यह सीट छीन ली. हालांकि 2004 के चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी को यहां 2,36,121 वोट मिले. पांच वर्ष बाद 2009 के चुनाव में भाजपा के पशुपति नाथ सिंह ने कांग्रेस के चंद्रशेखर उर्फ ददई दुबे को पचास हजार से अधिक वोट से हरा कर फिर से धनबाद सीट भाजपा के नाम कर दिया. वर्ष 1989 से 2009 तक हुए हर चुनाव में भाजपा को दो बार जरूर पराजय का सामना करना पड़ा. लेकिन मुकाबले में हर बार भाजपा ही रही.

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