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रुपयों भरा बैग देख कर भी नहीं डोला ईमान

धनबाद : वह ट्रेनों में खाली बोतल चुनता है. गरीबी में डूबा है. लेकिन ईमानदार ऐसा कि रुपयों भरा बैग देख भी उसका इमान नहीं डोला. उसने रुपयों भरा बैग (एक लाख 13 हजार) रेल पुलिस के हवाले कर दिया. रकम जिस आदमी की थी, उसको मिल गयी. जबकि वह चाहता तो बैग लेकर खिसक […]

धनबाद : वह ट्रेनों में खाली बोतल चुनता है. गरीबी में डूबा है. लेकिन ईमानदार ऐसा कि रुपयों भरा बैग देख भी उसका इमान नहीं डोला. उसने रुपयों भरा बैग (एक लाख 13 हजार) रेल पुलिस के हवाले कर दिया. रकम जिस आदमी की थी, उसको मिल गयी. जबकि वह चाहता तो बैग लेकर खिसक सकता था. लेकिन शंकर तुरी नाम के इस युवक ने ऐसा नहीं किया. आज इस बोतल चुनने वाले की कद्र बढ़ गयी है. शंकर के पिता पच्चु तुरी भी स्टेशन में बोतल चुनते हैं. घर में पत्नी सारो देवी व दो बेटियां है

चोर कहलाना सबसे बुरी बात : गंदा कपड़ा, टूटी चप्पल, कंधे पर खाली बोतलों से भरा हुआ बोरा. शंकर की यह पहचान है. शंकर बताता है कि वह डाउन में आने वाली गंगा दामोदर, लुधियाना व पटना धनबाद इंटरसिटी ट्रेन में बोतल चुनने का काम करता है. प्रतिदिन 60 से 100 रुपया कमा लेता है. सभी खाली बोतल झरिया पुल के पास बेचता है और उसी से घर का खर्च किसी तरह चल जाता है. दो छोटी बेटी है. उसे आंगनबाड़ी में पढ़ाता है. पत्नी घर पर रहती है. वह कहता है-गरीब होना ठीक है, आधा पेट खाना भी ठीक है. लेकिन पुलिस वाले घर पर जाकर मारपीट करें,
या पूरे मुहल्ला के लोग मुझे चोर कहें, यह ठीक नहीं. यदि एक बार स्टेशन में चोरी की या जेल गया तो दोबारा पुलिस वाले स्टेशन के अंदर घुसने नहीं देंगे और उसके बाद बच्चे और पत्नी को क्या खिलायेंगे. कम से कम इतना तो है कि हम लोग बोतल चुनने के लिए स्टेशन आते है और उससे परिवार चलता है.
सबको भगवान देते हैं मौका : तुम रुपये लेकर जा भी सकते थे? शंकर कहता है कि दूूसरे के रुपयों से कोई अमीर नहीं हो सकता. भगवान सभी को मौका देता है. पहले मैं हॉकर था. आरपीएफ ने दो बार जेल भेजा. जुर्माना देकर छूटा. उसके बाद हॉकर का काम छोड़ दिया. अब भगवान जब मुझे मौका देंगे तो मेरे पास भी पैसा होगा. दूसरों के रुपयों से किसी का भला नहीं हो सकता है. मैं पहले भी कई बार ट्रेन से इस तरह के बैग व अटैची पुलिस को देता रहा हूं. मेरे साथ बोतल व कचरा चुनने वाले कई लोग स्टेशन पर हैं. कुछ तो चोर हैं और कई जेल भी आते-जाते हैं. जब उन्हें पता चला तो सभी लोग मुझे बुद्धू बोल रहे थे और कह रहे थे कि इतने रुपये लेकर भाग जाना चाहिए था. लेकिन आज मुझे अच्छा लग रहा है. थाना में सभी लोग अच्छे से व्यवहार कर रहे हैं.
सिपाही को दे दिया बैग
शंकर बताता है कि 25 जुुलाई को पटना-धनबाद इंटरसिटी एक्सप्रेस दो नंबर प्लेटफॉर्म पर लगी. सभी बोतल चुनने वालों की ट्रेन बंटी है. मैं अपनी ट्रेन में बोतल चुनने के लिए घुसा. इंटरसिटी की एस सिक्स बोगी में एक औरत किसी के आने का इंतजार कर रही थी. मैं गया तो देखा कि एक काला रंग का बैग पड़ा हुआ है. सब यात्री उतर चुके थे. मैंने बैग खोला तो देखा कि इसमें बहुत सारा रुपया पड़ा हुआ है. मैं सोचा किसी यात्री का रुपया होगा.
उसके बाद बैग लेकर नीचे उतरा और पुलिस वालों को ढूंढ़ने लगा. एक सिपाही मिला तो उसे बैग की जानकारी दी. सिपाही पहले डर गया और मुझे कहा कि तुम फिर से बैग खोल कर दिखाओ. मैंने पूरा बैग खोला और उसे रुपया भी दिखाया. उसके बाद सिपाही ने बैग ले लिया. सिपाही बैग लेकर जाने लगा तो मैंने उससे कहा कि मैं भी थाना चलूंगा और बैग के साथ थाना पहुंचा. मुंशीजी को पूरी घटना बतायी और बैग देकर वहां से चला आया.

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