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कॉरपोरेट के चहेता नहीं बन सके आडवाणी : दीपंकर

धनबाद: अपने शुरुआती दौर में ‘90 के दशक में भाजपा राम मंदिर व रथयात्र के साथ उभरी थी. कांग्रेस ने आर्थिक एजेंडे के साथ भाजपा के उभार को रोकने की कोशिश की. इसकी काट में उसने आर्थिक सुधार के जो कदम उठाये, उसके नतीजे में महंगाई, भ्रष्टाचार तथा संसाधनों की कॉरपोरेटी लूट को बढ़ावा मिला. […]

धनबाद: अपने शुरुआती दौर में ‘90 के दशक में भाजपा राम मंदिर व रथयात्र के साथ उभरी थी. कांग्रेस ने आर्थिक एजेंडे के साथ भाजपा के उभार को रोकने की कोशिश की. इसकी काट में उसने आर्थिक सुधार के जो कदम उठाये, उसके नतीजे में महंगाई, भ्रष्टाचार तथा संसाधनों की कॉरपोरेटी लूट को बढ़ावा मिला.

भाजपा की इस सरकार ने उसी नीति को अपनी नीति बना ली है. उभार तो लालकृष्ण आडवाणी का भी हुआ था, पर वे कॉरपोरेट के चहेते नहीं बन सके थे. भाजपा की जीत में कॉरपोरेट रुझान की भूमिका पर ये विचार भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के हैं. प्रभात खबर से विशेष बातचीत में उन्होंने यह बातें कहीं.

भाजपा का उभार आवेग के कारण : भाजपा के उभार को रोकने में वामपंथी पार्टियों की अक्षमता संबंधी एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह वाम की विफलता नहीं है. गत यूपीए सरकार के घोटाले, भ्रष्टाचार तथा महंगाई से जनता ऊब गयी थी. इससे उत्पन्न वैचारिक तथा राजनीतिक संकट के सामने सरकार का रुख बड़ा ही अप्रभावी था. लोगों के बीच एक विकल्प के लिए व्याकुलता थी. इस स्थिति को भाजपा चतुराई से भुना सकी. उसने जो आवेग पैदा किया, वह उसके पक्ष में गया. मोदी की सांप्रदायिकतावादी कॉरपोरेटपरस्ती बहुत ही काम आयी. इसलिए यह उभार किसी स्थायी बदलाव का संकेत नहीं. यही कारण है कि चुनाव प्रचार में उनके चर्चित जुमले 15 अगस्त के भाषण से सिरे से गायब थे.

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