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फेस्टिव मूड में शहर, सर्द शाम में भी बाजार गुलजार, लास्ट मंथ का पहला संडे, गरम पकौड़े…उबले अंडे…
धनबाद: एक तो नागिन की तरह बलखाती सर्द हवा और उस पर साल के अंतिम महीने का पहला रविवार, ऐसे में मूड का फेस्टिव हो जाना तो बनता है. …और जब पास में रंग-बिरंगे गर्म कपड़े हों और पर्स में गुलाबी नोट तो कौन ऐसा होगा जो घर में बैठना चाहेगा. …तो आज की सर्द […]
धनबाद: एक तो नागिन की तरह बलखाती सर्द हवा और उस पर साल के अंतिम महीने का पहला रविवार, ऐसे में मूड का फेस्टिव हो जाना तो बनता है. …और जब पास में रंग-बिरंगे गर्म कपड़े हों और पर्स में गुलाबी नोट तो कौन ऐसा होगा जो घर में बैठना चाहेगा. …तो आज की सर्द शाम में बाजार में गहमा-गहमी और खरीद-फरोख्त की गर्मी थी. इस वजह से चहल-पहल और रौनक. कुछ लोगों ने बिरसा मुंडा पार्क का रुख किया, जबकि कुछ लोग छोटे-छोटे कामों को लेकर बाजार में टहलते रहे. सड़कों पर समां रोज से कुछ अलग था. दरअसल दशहरा, दिवाली और छठ के बाद शहर पर जो सुस्ती तारी थी वह आज टूटती दिखी.
विदाई और स्वागत को आतुर लोग : हमारे यहां विदाई और स्वागत, मिलन और जुदाई को सेलिब्रेट करने की पुरानी रवायत रही है. यह हमारे अवचेतन में है. इसलिए जब साल का अंतिम महीना आता है तो लोग इसकी विदाई के बहाने अपने दिल की सुनते और करते हैं. और जब संडे हो तो बात ही कुछ और है. शहर के पुराना बाजार, हीरापुर और बैंक मोड़ में संडे का सन्नाटा नहीं, बल्कि बहार आयी हुई थी. हर उम्र के लोग गर्म कपड़ों में अपने-अपने काम में मशगूल थे. कुछ जोड़ों ने रेस्टोरेंट जाना बेहतर समझा. क्योंकि ठंड में गरमा-गरम पकौड़े, चिकेन-मटन और उबले अंडे वगैरह खाने का आनंद ही और है. इधर जिला परिषद मैदान में लगे शिल्प मेले में भी आज अच्छी-खासी भीड़ थी.
पांचवा संडे को अलविदा होगा 17 : दिसंबर से शुरू सेलिब्रेशन का यह सिलसिला पूरी जनवरी तक चलता है. खासकर संडे को. दिसंबर के सेकेंड, थर्ड, फोर्थ संडे यह और परवान चढ़ेगा. फिफ्थ संडे तो 31 दिसंबर है और उस दिन की बात ही अलग है. उसकी तैयारी अभी से चल रही है. क्लबों के मेंबरों को तो नो टेंशन, लेकिन बाकी कई लोग बाहर का भी प्लान बना रहे हैं. युवाओं में इसे लेकर खासा उत्साह है.
सीमित विकल्प में भी जिंदगी के मजे
शहर में ले-देकर बिरसा मुंडा पार्क है. थोड़ी दूर जाना चाहें तो मैथन डैम, तोपचांची झील, भटिंडा फॉल वगैरह. इसलिए यहां जिंदगी की एकरसता को तोड़ने के विकल्प सीमित हैं. जिला प्रशासन और हमारे जमप्रतिनिधि इस बारे में नहीं सोचते. कई योजनाएं बनीं और ठंडे बस्ते में चली गयी. शहर के कई पार्क को बेहतर बनाने की घोषणा नगर निगम ने की थी, लेकिन उसे भी अमली जामा नहीं पहनाया जा रहा है. शायद यही कारण है कि हमारे शहर में बहार बाजरों और सड़कों पर आती है. लोग जो है उसी में आनंद लेते हैं और कोई शिकवा-शिकायत नहीं करते. लेकिन धनबाद में और बहुत कुछ होना चाहिए जहां बीच-बीच में जाकर आदमी सुकून का कुछ पल बिता सके.
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