देवघर: जिले का एकमात्र हरिजन थाना कुंडा, जिसकी अधिसूचना छह जुलाई 2004 को हुआ है. उक्त थाने की अधिसूचना हुए नौ साल बीत गया. अधिकांश मामले पीसीआर के आधार पर ही दर्ज कराया गया है. सर्वाधिक मामला वर्ष 2013 में दर्ज हुआ है. नवंबर तक कुल 108 दलित प्रताड़ना की प्राथमिकी हरिजन थाना कुंडा में दर्ज कराया गया है. पिछले नौ साल के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2005 में कुल 23, वर्ष 2006 में 12, वर्ष 2007 में आठ, वर्ष 2008 में 18, वर्ष 2009 में 11, वर्ष 2010 में नौ, वर्ष 2011 में सात और वर्ष 2012 में 34 दलित प्रताड़ना के केस दर्ज हैं. अधिकांश मामलों में आरोपित के खिलाफ चाजर्सीट हुआ है. वहीं कुछ मामले फॉल्स भी निकले. इसी प्रकार वर्ष 2013 के माहवार रिपोर्टिग केस के आंकड़े इस प्रकार हैं. जनवरी में तीन, फरवरी में दो, मार्च में 12, अप्रैल में तीन, मई में 28, जून में 15, जुलाई, अगस्त व अक्तूबर में 10-10, सितंबर में नौ और नवंबर में छह दलित प्रताड़ना का केस दर्ज है. सबसे अधिक मई माह में 28 केस दर्ज कराये गये हैं.
आखिर क्यों नहीं दर्ज होता है सीधे प्राथमिकी
हरिजन थाना से जानकारी मिली कि अधिकांश दलित प्रताड़ना के मामले पीसीआर के आधार पर ही दर्ज कराया गया है. सीधे थाने में मामला दर्ज नहीं होने के बाद ही वादी कोर्ट की शरण में जाते हैं और पीसीआर दर्ज कराते हैं.
कई इंजीनियर व पुलिस पर भी दलित प्रताड़ना
थाने से मिले आंकड़ों के अनुसार दलित प्रताड़ना का मामला कई इंजीनीयर व पुलिस वालों पर भी दर्ज है. इन केस की स्थिति जस की तस है. अनुसंधान ही ठहर गया है.
क्या कहते हैं एसडीपीओ
सीधे प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए. दलित प्रताड़ना के कुछ मामले दूसरे थाने में भी चला जाता है. पीसीआर को एक जगह कर दिया गया है इसलिए हरिजन थाना कुंडा में दर्ज दलित प्रताड़ना के अधिकांश मामले पीसीआर के हैं. डिस्पोजल का रेसियो अच्छा है. रिपोर्टिग से अधिक डिस्पोजल हो रहा है.
अनिमेष नैथानी, एसडीपीओ सह एसपी के दैनिक कार्य प्रभारी
क्या कहते हैं दलित नेता
लोगों की पीड़ा थाने में सीधे नहीं सुनी जाती है. जांच के बाद मामला दर्ज करने की ङिाड़की देते हैं. मजबूरन लोग पीसीआर कराने कोर्ट की शरण में जाते हैं. नियम विरुद्ध है, सीधे थाने में प्राथमिकी होनी चाहिए. 6 को होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में मामले को उठायेंगे.
शंकर दास, स्टेट कनवेंनर, नेकडोर