आत्मानुशासन तथा सजगता के विकास एवं शरीर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने का यह आश्चर्यजनक तरीका है. बचपन से ही प्रत्येक जैनी को ऐसे छोटे-मोटे संकल्प लेने की आदत डाली जाती है, जिसका परिणाम यह होता है कि आगामी जीवन में वह कभी भी विचारहीनता तथा सजगता का अभाव अनुभव नहीं करता. ऐसे वातावरण में शिक्षा-दीक्षा तथा पालन-पोषण होने से जैनी हमेशा कुछ बोलने अथवा करने के पूर्व उसके सभी संभव परिणामों पर विचार कर लेता है. इससे उसका शरीर मन का अनुसरण करने लगता है न कि नेतृत्व. जैन धर्म के ध्यानाभ्यास बैठकर अथवा खड़े होकर किये जा सकते हैं. इनका ध्यान करने का स्थान अक्सर आरुचिकर तथा सुविधाजनक होता है. वे आराम तथा आनंददायक स्थान के हिमायती नहीं होते. उनकी एक अन्य महत्वपूर्ण साधना में मन की हरकतों तथा दशाओं को साक्षी भाव से देखा जाता है.
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प्रवचन::: आश्चर्यजनक तरीके से शरीर पर नियंत्रण किया जाता है
आत्मानुशासन तथा सजगता के विकास एवं शरीर पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने का यह आश्चर्यजनक तरीका है. बचपन से ही प्रत्येक जैनी को ऐसे छोटे-मोटे संकल्प लेने की आदत डाली जाती है, जिसका परिणाम यह होता है कि आगामी जीवन में वह कभी भी विचारहीनता तथा सजगता का अभाव अनुभव नहीं करता. ऐसे वातावरण में […]
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