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प्रवचन:::: आत्मविश्लेषण व आत्मनिरीक्षण जैन साधना के प्रमुख अंग

साधना: आत्मविश्लेषण तथा आत्मनिरीक्षण जैन साधना के प्रमुख अंग थे. प्रत्येक जैन साधक के लिए प्रतिदिन कम से कम 48 मिनट ध्यान करना अनिवार्य था. तंत्र से मिलती-जुलती ध्यान की अनेक तकनीकें प्रचलित थीं तथा साधक अपने लिए उपयुक्त तथा सर्वश्रेष्ठ किसी भी तकनीक का चुनाव करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र था. प्रत्येक […]

साधना: आत्मविश्लेषण तथा आत्मनिरीक्षण जैन साधना के प्रमुख अंग थे. प्रत्येक जैन साधक के लिए प्रतिदिन कम से कम 48 मिनट ध्यान करना अनिवार्य था. तंत्र से मिलती-जुलती ध्यान की अनेक तकनीकें प्रचलित थीं तथा साधक अपने लिए उपयुक्त तथा सर्वश्रेष्ठ किसी भी तकनीक का चुनाव करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र था. प्रत्येक जैनी को अपनी साधना के अनिवार्य अंग के रूप में प्रात: काल उठकर अपने मंत्र का जप करना होता है. मंत्रों की गणना उंगली अथवा माला से की जाती है. इसके पश्चात वह स्वयं से पूछता है ‘मैं क्या कहूं? मेरा इष्ट देवता कौन है? मेरे गुरुदेव कौन है? मुझे क्या करना चाहिये तथा मुझे क्या नहीं करना चाहिये आदि. फिर वह एक संकल्प लेता है. प्रतिदिन वह एक छोटा-सा संकल्प लेता है जैसे- ‘एक सप्ताह तक मैं चाय या काफी नहीं लूंगा.’ अथवा उसका संकल्प यह हो सकता है कि एक माह तक मैं प्रतिदिन एक घंटा मौन धारण करूंगा.

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