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विश्व दिव्यांग दिवस आज : नि:शक्तता के बाद भी नहीं मानी हार, नि:शक्तता को मात देकर संघर्ष से गढ़ी सफलता की कहनी
देवघर : देवघर के रहने वाले अंकित अनुराग ने आइआइटी की परीक्षा में ऑल इंडिया पीएच कैटेगरी में 39वां रैंक हासिल कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है. टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में करियर का सपना संजोने वाले अंकित प्रतिभा के धनी हैं. इनकी प्रतिभा के सभी कायल हैं. सड़क दुर्घटना में अपना एक हाथ गंवाने के […]
देवघर : देवघर के रहने वाले अंकित अनुराग ने आइआइटी की परीक्षा में ऑल इंडिया पीएच कैटेगरी में 39वां रैंक हासिल कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है. टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में करियर का सपना संजोने वाले अंकित प्रतिभा के धनी हैं. इनकी प्रतिभा के सभी कायल हैं. सड़क दुर्घटना में अपना एक हाथ गंवाने के बाद भी चुनौतियों का सामना करते हुए मंजिल की ओर लगातार बढ़ रहे हैं.
आज ये युवाओं के आइकॉन भी हैं. अंकित ने गीता देवी डीएवी पब्लिक स्कूल सातर से दसवीं की परीक्षा 9 सीजीपीए एवं 12वीं की परीक्षा 78 फीसदी अंक से उत्तीर्ण की है. पिता मनोज कुमार नौकरीपेशा व मां मधु शर्मा गृहिणी हैं.
सड़क हादसे में अंकित के हाथ गंवाने के बाद माता-पिता ने उनका हौसला बढ़ाया व आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. करियर एक्सपर्ट मणिकांत पाठक ने बताया कि विपरीत परिस्थिति में अंकित अनुराग ने उपलब्धि हासिल कर युवाओं व समाज को बेहतर संदेश दिया है.
देवघर के अनम ने पाकिस्तान को दी थी शिकस्त
देवघर : देवघर के अनम हैदर वैसे लोगों के लिए रोल मॉडल हैं, जो दिव्यांगता की वजह से खुद को लाचार व बेबस महसूस करते हैं. निजामत हुसैन रोड निवासी जाने-माने अधिवक्ता हैदर अली के बेटे अनम ने हौसलों से सफलता की उड़ान भरी. भारतीय दिव्यांग टीम के साथ वर्ष 2013 में आस्ट्रेलिया पहुंचे. वहां क्रिकेट के सिंगल इवेंट में पाकिस्तान को हराकर देश के लिए ब्रांज मेडल हासिल किया.
अनम कहते हैं, मेडल प्राप्त करते वक्त जो राष्ट्रगान की धुन बजी व दूसरे देश के झंडे के साथ तिरंगा ऊपर देखते ही वे गौरवान्वित महसूस कर रहे थे. अनम को बस इसी बात का मलाल है कि डबल्स इवेंट में थाइलैंड से हारकर चौथे स्थान पर रह गये. इसके बाद दोबारा कोई मौका नहीं मिला.जो सुविधाएं व सम्मान के अनम हकदार थे, पांच साल बाद भी उन्हें नहीं मिल सकी.
अनम आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं, पर सिस्टम की उपेक्षा के कारण पूरी नहीं कर सके. उन्हें उम्मीद थी भारत लौटने पर सरकार भी उनकी सफलता पर अपेक्षित इनाम देगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. अनम पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी की उम्मीद संजाेये हुए हैं, ताकि आगे की जिंदगी स्वावलंबी होकर जी सके.
आंख खोकर भी दूसरों की नजर में आइकॉन बनी खुशबू
देवघर : परम प्रकाशानंद झा पथ स्थित खुशबू कुमारी भी उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण हैं, जिनकी नजर के सामने लक्ष्य होते हुए भी लक्ष्य से भटक जाते हैं. धर्मशंकर बलियासे की पुत्री खुशबू ने नेत्रहीनता के बावजूद बीएड प्रथम श्रेणी से पास की है. खुशबू शिक्षक बनकर समाज में शिक्षा का अंधकार दूर कर एक नयी रोशनी देना चाहती है.
उसके पति नर्मदेश्वर नाथ झा भी उसका साथ दे रहे हैं. सात साल की एक छोटी बच्ची आन्या झा भी है. पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए वह समाज के लिए आइकॉन बनी हुई है. उसे आगे बढ़ाने में मां कल्पना देवी, दादी नुनु रानी देवी व शिक्षक गिरीश गुप्ता भी सहयोग कर रहे हैं.
मिलिए मास्टर टेलर अब्दुल रशीद से इनसे लें प्रेरणा
देवघर : अब्दुल रशीद भी उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने कभी भी नि:शक्तता को अपनी लाचारी का कारण नहीं बनने दिया. बिहार के भागलपुर जिला अंतर्गत हुसैनाबाद के रहने वाले अब्दुल रशीद एक पैर से नि:शक्त हैं. नि:शक्तता के बाद भी अब्दुल ने कभी भी अपनी इस परेशानी को अपनों व समाज के लिए बोझ नहीं बनने दिया.
42 साल पहले अपनी पहचान बनाने के उद्देश्य से अब्दुल भागलपुर से देवघर आकर बस गये. यहां आकर पांडेय गली में टेलरिंग का काम शुरू किया. समय के साथ उनका हुनर निखरता गया, फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके तैयार हुए कपड़े लोगों को पसंद आने लगे. इसके बाद उन्होंने किराये की जगह लेकर अपनी टेलरिंग दुकान खोल ली. काफी दिनों तक वहीं काम किया.
करीब 20 साल पहले कृष्णा टॉकीज कंपाउंड में अपनी टेलर की दुकान शिफ्ट कर दी. काफी दिनों तक अपने साथ-साथ पांच लोगों को भी रोजगार देता रहा. आज भी अब्दुल उसी शिद्दत के साथ अपने पेशे से जुड़े हैं. अब्दुल ने बताया कि हाल के वर्षों से जब से शहर में बड़े-बड़े मॉल खुले तभी से टेलरिंग के धंधे में मंदी छा गयी है.
स्थिति ऐसी हो गयी है कि नियमित कारीगर को हाजिरी देना भी मुश्किल हो गया है. ऐसे में उत्सव के दिनों में ही सिर्फ कारीगर रख पाते हैं. बाकी के महीने एक ही कारीगर के साथ धंधे करते हैं. इसके बाद भी वे हारे नहीं हैं. अब्दुल ने बताया कि इस रोजगार से ही परिवार की परवरिश कर बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं.
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