Bokaro News Update : जलस्रोतों में फैली जलकुंभी को हमेशा परेशानी का सबब माना जाता है. लेकिन यही जलकुंभी आय का साधन बन जाये तो किसी सपने का पूरा होने से कम नहीं है. जी हां, ऐसा अब संभव होने वाला है. यह होगा बोकारो जिले के जलस्रोतों से. जलकुंभी आय का साधन बने इसे लेकर बोकारो स्टील प्रबंधन ने कवायद शुरू कर दी है. इस दिशा में काम की शुरुआत भी हो चुकी है. बोकारो स्टील प्रबंधन का यह प्रयास लोगों के रोजगार का राह भी खोलेगा.
हस्तशिल्प बनाने के लिए जलकुंभी के रेशे का उपयोग जलकुंभी के सबसे महत्वपूर्ण उपयोगों में से एक है. जलकुंभी का उपयोग हस्तशिल्प में बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसका उपयोग कई सामग्री बनाने के लिए किया जाता है. बांस और जलकुंभी का सूखा तना कई वस्तुओं को बनाने के लिए एक बेहतरीन संयोजन है. बोकारो स्टील प्रबंधन की ओर से स्थानीय ग्रामीणों को इस सेक्टर में उपलब्ध संभावनाओं से अवगत कराने की सार्थक पहल की गयी है. इसमें बीएसएल जिस एनजीओ के सहयोग से ले रहा है. वह झारखंड में ही संथाल परगना क्षेत्र में यह कार्य कर रही है और उसे काफी सफलता भी मिल रही है. इस व्यवसाय में पहले से हीं बना-बनाया बाजार है. सप्लाई देश-विदेश में जाता है. इसकी बाजार में अच्छी-खासी डिमांड है.
ग्रामीणों को इसकी चिंता नहीं करना है कि बनाया हुआ हैंडिक्राफ्ट कहां और कैसे बिकेगा ? शुरुआत में कुछ महीने इसमें सीखने और जानने में लगेगा. उसके बाद इसका फायदा लोगों को मिलने लगेगा. इसका बोकारो से सालाना जरूरत एक लाख टन जलकुंभी की है. ऐसा देखा गया है कि बोकारो में पाया जाने वाला जलकुंभी बहुत उच्च क्वालिटी का है. जो आमतौर पर असम में मिलता है. यह प्रचुर मात्रा में भी बोकारो में उपलब्ध है. इसमें दो प्रकार का काम है – पहला, जलकुंभी को पानी से निकालकर सुखाना और बनायी के योग्य तैयार करना. यह काम आमतौर पर पुरूष हीं करते हैं. दूसरा काम सुखाए और तैयार जलकुंभी से भिन्न भिन्न प्रकार के हैंडीक्राफ्ट बनाना. यह काम आमतौर पर महिलाओं द्वारा की जाती है.
जलकुंभी से हैंडीक्राफ्ट बनाने की पूरी प्रक्रिया में कामगारों को उचित आमदनी मिलने की संभावना है. यदि यह प्रयास सफल रहा और स्थानीय ग्रामीण इसमें रुचि लें, तो बोकारो में एक प्रशिक्षण संस्थान भी खोलने पर बोकारो स्टील प्रबंधन विचार कर सकता है. फिलहाल, ज़्यादा से ज़्यादा ग्रामीणों को इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है. बीएसएल के सीएसआर के तहत जलकुंभी की खेती और इससे हस्तशिल्प वस्तुओं के निर्माण पर मानव संसाधन विकास केंद्र में बोकारो के आस-पास के परिक्षेत्रीय गांव (महुआर, चिताही व रितुडीह) के ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. कार्यक्रम में लगभग 80 स्थानीय पुरुष व महिला भाग ले रहे है. जलकुंभी की खेती और उसके बाद हस्तशिल्प वस्तुओं के रूप में बुनाई की जानकारी ले रहे हैं.
बीएसएल के सीएसआर विभाग का जलकुंभी की खेती से हस्तशिल्प और अन्य उपयोगी वस्तुओं को बनाने की दिशा में प्रशिक्षण देने का प्रयास इस दिशा में पहला कदम है. बोकारो व इसके आस-पास के गांवों में जलकुंभी की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए बोकारो इसके लिए उपयुक्त माना जा रहा है. बोकारो कुलिंग पौंड, टू-टैंक गार्डेन, सूर्य सरोवर, सूर्य मंदिर, जगन्राथ मंदिर, सिटी पार्क सहित चास नगर-निगम के 18 व ग्रामीण क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक रैयती तालाब में जलकुंभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. प्रशिक्षण कार्यक्रम बीएसएल के सीएसआर विभाग व झारखंड में बहु-कौशल के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संगठन ईएसएएफ-एलआईएमएस के सहयोग से दिया जा रहा है. इससे गांवों में आजीविका का अवसर पैदा होगा.
– जलकुंभी की टोकरी
– जल जलकुंभी बैग
– जलकुंभी से बने कागज
– जलकुंभी से बने जूते
– जलकुंभी फर्नीचर
– जल जलकुंभी डाइनिंग मैट और क्रॉसेस्ट
– रस्सियों
– जल जलकुंभी योग मैट
रिपोर्ट : सुनील तिवारी
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