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चिथड़ों का कंप्यूटराइजेशन!

बोकारो: बोकारो समेत राज्य के सभी जिलों के खतियानों की डाटा इंट्री कंप्यूटर में की जा रही है. हर जिले में प्राइवेट एजेंसी यह काम कर रही है. पर सवाल है कि क्या वाकई कंप्यूटराइजेशन के बाद लोगों को कुछ फायदा होगा? या फिर मुसीबात और बढ़ने वाली है. जिस तरीके से बोकारो और आस-पास […]

बोकारो: बोकारो समेत राज्य के सभी जिलों के खतियानों की डाटा इंट्री कंप्यूटर में की जा रही है. हर जिले में प्राइवेट एजेंसी यह काम कर रही है. पर सवाल है कि क्या वाकई कंप्यूटराइजेशन के बाद लोगों को कुछ फायदा होगा? या फिर मुसीबात और बढ़ने वाली है. जिस तरीके से बोकारो और आस-पास के जिले का सारा रिकॉर्ड कंप्यूटर में कैद हो रहा है, उससे आने वाले समय में जमीन संबंधी और विवाद बढ़ने वाले हैं. कहने को जिले के हर प्रखंड में ऑन लाइन म्यूटेशन दिसंबर तक करने की योजना है. पर यह योजना बिना फिर से एक बार सर्वे किये कितना कारगर होगा सबसे बड़ा सवाल यही है.

अंगरेजों का सर्वे ही मान्य
बोकारो समेत तमाम जिलों के रैयतों की जमीन आज भी उनके परदादाओं के नाम पर है. झारखंड में आज तक सिर्फ दो बार ही जमीन का सर्वे किया गया है. पहला सर्वे 1908 में और दूसरी बार 1964 में. 1964 में सिर्फ तीन जिलों का ही सर्वे हो पाया. इसमें सरायकेला-खरसांवा, पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम शामिल है. बाकी सभी जिलों में 1908 का ही सर्वे है. इस हिसाब से अंगरेजों के जमाने में जो खतियान सरकार के पास था, आज तक वहीं खतियान है. जबकि 1908 के बाद कई रैयत ऐसे हैं जिन्हें राजाओं और जमीनदारों से जमीन मिली. जो सरकारी रिकॉर्ड में गैरमजरुआ जमीन है, पर उस पर कब्जा रैयतों का है.

निबंधन कार्यालय से उनका निबंधन भी करवा लिया गया है. और जमीन की रसीद भी काटी जा रही है. 1908 के सर्वे के मुताबिक अब एक खतियान में 20 से ज्यादा मालिक हैं. यह कह पाना नामुमकिन हो गया है कि असली मालिक कौन है. ऐसे में अगर सर्वे किये रिकॉर्ड को कंप्यूटराजेशन कराया जाता है, तो प्रशासन और रैयतों के बीच समस्या सुधरने के बजाय और विवाद गहरा होगा. जबकि इस काम के लिए सरकार राज्य भर में करोड़ों खर्च कर रही है.

दूसरी समस्या भाषा और राजस्व कर्मचारी
बोकारो आस-पास की जमीन के कागजात या तो बंगला में है या फिर कैथी में. अगर 1908 के बाद सर्वे करा लिया जाता तो कम-से-कम खतियानों की भाषा हिंदी हो जाती. पर अभी कैथी और बंगला में होने की वजह से इसे पढ़ना और समझना दोनों काफी मुश्किल है. कंप्यूटराइजेशन कराने वाली एजेंसी इस काम के लिए एक या दो भाषा के जानकारों की मदद तो ले रही है. पर कागज के पुराने और फटे-चिटे होने से उसे पढ़ना काफी मुश्किल हो रहा है. ऐसे में जिले के राजस्व कर्मचारी को इस काम में लगाया है. इस काम में प्रखंड कार्यालय के राजस्व कर्मियों को हफ्ते में दो-तीन की डय़ूटी बांध दी गयी है. पर आने-जाने के लिए अलग से कोई रकम मुहैया नहीं कराय गयी है.

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