घनश्याम ने इसे अपनी किस्मत मान ली. घनश्याम दंपति की बेटी की चाहत आगे चलकर पोती की चाहत में बदली. छह बेटों में पांच की शादी हुई और इन पांचों के भी 10 बेटे हुए. फिर एक बहू को बेटी हुई, तो घनश्याम दंपति की वर्षों पुरानी मन्नत पूरी हुई. और दीवानगंज गांव में घनश्याम दंपति इकलौता नहीं है, जहां बेटी का पैदा होना किसी मन्नत के पूरा होने से कम नहीं माना जाता.
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झारखंड में एक गांव ऐसा भी जहां लोग चाहते हैं बेटी, लेकिन पैदा हो रहे हैं बेटे
बोकारो : बोकारो जिले के चास प्रखंड के दीवानगंज गांव निवासी घनश्याम रजवार की पत्नी को पहला बेटा हुआ. इसके बाद घनश्याम दंपति की चाहत थी कि एक बेटी हो. लेकिन एक के बाद एक छह बेटे हो गये. घर-आंगन बेटी की किलकारियों से गुलजार हो जाये, घनश्याम दंपति की यह चाहत पूरी नहीं हो […]
बोकारो : बोकारो जिले के चास प्रखंड के दीवानगंज गांव निवासी घनश्याम रजवार की पत्नी को पहला बेटा हुआ. इसके बाद घनश्याम दंपति की चाहत थी कि एक बेटी हो. लेकिन एक के बाद एक छह बेटे हो गये. घर-आंगन बेटी की किलकारियों से गुलजार हो जाये, घनश्याम दंपति की यह चाहत पूरी नहीं हो सकी. एक बेटी की चाहत में बेटों की संख्या बढ़ती गयी.
दीवानगंज के ग्रामीणों में ‘बेटियों’ की चाहत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेटी होने पर इस गांव के लोग खुशी से झूम उठते हैं. बेटा होने पर जिस तरह से जश्न मनाने की परंपरा है, उसी तरह का जश्न दीवानगंज के लोग बेटी होने पर मनाते हैं. कारण इस गांव में बेटियां बहुत संयोग या भाग्य से पैदा होती हैं. गांव में 90 फीसदी ऐसे परिवार मिले, जिसमें बेटों की संख्या अधिक है. कई परिवार वाले तो बेटी के लिए तरस कर रह गये. बेटी के लिए ईश्वर से मन्नतें भी मांगी, मगर हर बार कोख से बेटा ही निकला. पूरे गांव में बेटियों की अधिक संख्या वाले गिने-चुने परिवार ही मिलेंगे़ दीवानगंज के ग्रामीण बताते हैं-यहां बेटियों का जन्म अपेक्षाकृत कम हो रहा है़ बेटियों की चाह में ही बेटों की संख्या बढ़ गयी है़ घनश्याम की मंझली बहू उमा देवी इस बात को स्वीकारती है कि एक बेटी की चाह में ही उनके तीन बेटे हो गये और बाकी गोतनी की स्थिति भी यही है़ उमा देवी बताती हैं कि दो बेटा पैदा होने के बाद जब तीसरी संतान गर्भ में थी, तब ईश्वर से बेटी के लिए काफी मन्नत मांगी, लेकिन तीसरी संतान के रूप में भी बेटा ही मिला. उमा देवी कहती हैं-काश! एक बेटी हो जाती़ बेटी बहुत जरूरी है. मां-बाप का दुख-दर्द बेटी ही ज्यादा समझ सकती है.
पूरे देश में जहां कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ी सामाजिक समस्या व चुनौती बनी हुई है. बेटों की चाह में बेटियों को जन्म से पहले कोख में ही मारने की घटनाएं केंद्र व राज्य सरकारों के लिए गंभीर चिंता का विषय है. वहीं दीवानगंज ऐसा गांव है, जहां बेटियों की चाह में बेटों की संख्या बढ़ती गयी है. इस कारण गांव में लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है़ लगभग पौने दो सौ घरों वाले इस गांव में लिंग औसत 1000 पुरुष पर मात्र 753 महिलाएं हैं. बाल अनुपात की स्थिति इससे भी चौंकाने वाली है़ औसत 1000 बच्चों पर मात्र 553 बच्चियां हैं. चास-पुरुलिया मुख्य पथ में चास महाविद्यालय के पास यह गांव बसा है. दीवानगंज में लिंगानुपात की इस असामनता का कारण भी हैरान करने वाला है़ दीवानगंज में बेटी की चाह में बेटों की संख्या बढ़ गयी है़ सुनने में अटपटा लगता है़ लेकिन, गांव वालों की माने तो हकीकत यही है.
देश स्तर पर है बाल लिंगानुपात 914
देश की कुल आबादी में महिलाओं का अनुपात आज भी कम है़ खासकर बच्चों के लिंगानुपात में अधिक असमानता है. कुल लिंगानुपात 933 से बढ़कर 940 अवश्य हुआ है, मगर बच्चों का लिंगानुपात 927 से घटकर 914 हो गया है़ घटते लिंगानुपात की इस चिंता में बोकारो जिला भी शामिल है़ बोकारो जिले में पिछले 10 वर्षों में बाल लिंगानुपात की स्थिति अधिक खराब हुई है़ वर्ष 2001 में 0 से 6 आयु वर्ग में 1000 पर 950 बच्चियां थीं. वर्ष 2011 में यह घटकर 923 हो गया है़
काश! एक बेटी हो जाती
दीवानगंज निवासी सर्वेश्वर रजवार के परिवार की स्थिति भी यही है. सर्वेश्वर और उनकी पत्नी गीता देवी कहती हैं-एक बेटी की चाहत में उनके तीन बेटे हो गये़ गांव के अन्य दर्जनों परिवार में भी यही देखने-सुनने को मिला़ बीएसएल से सेवानिवृत्त महावीर रजवार के परिवार में भी बेटों की संख्या अधिक है़ महावीर के पांच बेटे हैं. इन पांचों के 10 बेटे और मात्र तीन बेटी है. श्री रजवार कहते हैं-“गांव में लिंगानुपात में इतना बड़ा अंतर चिंता का विषय है, मगर इसके पीछे बड़ा कारण है कि बहुत से परिवारों में बेटियों की चाह में बेटों की संख्या अधिक हो गयी और लिंगानुपात गड़बड़ा गया है़ ” दीवानगंज में बेटियों की चाह में केवल लिंगानुपात ही नहीं गड़बड़ाया, बल्कि आबादी में भी वृद्धि हुई है.
गांव के सामाजिक कार्यकर्ता तीरू रजवार गांव में भ्रूण हत्या जैसी कोई बात को सिरे से नकारते हैं. तीरू कहते हैं-“यह गरीब गांव है. खाना-जीना मुश्किल से होता है़ बीमार पड़ने पर लोग इलाज बमुश्किल से करा पाते हैं. ऐसे में कोई भ्रूण जांच या गर्भपात कराने का काम नहीं कर सकते और न ऐसा होता है़ यह तो ईश्वरीय देन है कि गांव में पुरुषों-बेटों की संख्या अधिक हो गयी है.” झारखंड मुक्ति मोरचा के केंद्रीय महासचिव सह चंदनकियारी से पार्टी के प्रत्याशी रहे संतोष रजवार इसी गांव के निवासी हैं. इनके पुत्र विजय रजवार जिला परिषद के सदस्य हैं. श्री रजवार कहते हैं-गांव के प्राय: घरों में बेटियों की अपेक्षा बेटों की संख्या अधिक है़ खुद मेरे परिवार में ही देख लें कि हम लोग तीन भाई हैं और कोई बहन नहीं है़ हम तीनों भाइयों के छह बेटा और मात्र एक बेटी है़
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