बोकारो: छठी कक्षा में था. उस वक्त फुटबॉल खेलने में काफी मजा आता था. हर रोज स्कूल में ही, मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ शाम को फुटबॉल खेलने की प्लानिंग कर लेता था. एक दिन आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के साथ फुटबॉल मैच था.
स्कूल से जब मैं घर लौटा, जल्दी से अपनी तैयारी में मशगूल हो गया. जल्दी से चार बजने का इंतजार कर रहा था.
उसी वक्त मां को मेरे मैच खेलने जाने की भनक लग गयी. फिर क्या था. जब मैं अपने जूते पहनने की तैयारी कर रहा था, उन्होंने चुपके से घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया. मां भाभी के घर पर जाकर बैठ गयी थी. मेरे लाख शोर करने पर भी मां ने दरवाजा नहीं खोला. मेरा फुटबॉल खेलना उनको पसंद नहीं था. बचपन में ही पिताजी के गुजरने की वजह से मां की उम्मीदें मुझसे कहीं ज्यादा थी. मैंने भी अपना शरारती दिमाग लगाया और भाभी को आवाज लगायी.
भाभी से मैंने कहा : अगर बाजार से अगली बार कुछ मंगवाना हो, तो मुङो बाहर निकालो, वरना तुम्हारी बात कभी नहीं सुनूंगा. भाभी ने मां से छुपकर मुङो कमरे से निकालने के लिए खिड़की पर सीढ़ी लगा दिया. मैं चुपके से सीढ़ियों से उतरकर मैददान की ओर भागा. हमारी टोली ने आठवीं क्लास कक्षा के लोगों को पटखनी दे दी थी. जीत के नशे में में डूबा हुआ मैं यह भी भूल गया था कि चुपके से मैच खेलने निकला हूं. घर पहुंचने पर मां की नजर अचानक से मुझ पर पड़ी. इसके बाद मेरी जमकर पिटाई भी हुई.