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बदले झारखंड

-हरिवंश- नौ साल हुए झारखंड बने (15 नवंबर 2000 को झारखंड बना, 15 नंवबर 2010 को दसवें वर्ष में प्रवेश करेगा). इस बीच छह सरकारें आयीं-गयीं. पांच मुख्यमंत्री बने. लगभग एक साल तक राष्ट्रपति शासन भी रहेगा. दसवें मुख्य सचिव कार्यरत हैं. विकास आयुक्त पद पर भी 10वें व्यक्ति हैं. राज्य की सुरक्षा का कमान […]

-हरिवंश-

नौ साल हुए झारखंड बने (15 नवंबर 2000 को झारखंड बना, 15 नंवबर 2010 को दसवें वर्ष में प्रवेश करेगा). इस बीच छह सरकारें आयीं-गयीं. पांच मुख्यमंत्री बने. लगभग एक साल तक राष्ट्रपति शासन भी रहेगा. दसवें मुख्य सचिव कार्यरत हैं. विकास आयुक्त पद पर भी 10वें व्यक्ति हैं. राज्य की सुरक्षा का कमान छठे डीजीपी के हाथ में है. चौथे महाअधिवक्ता कुरसी पर हैं.

औसतन 10-12 महीने में हर सचिव का तबादला हो गया. डीसी, एसपी, इंजीनियर, एसडीओ वगैरह की बात ही छोड़ दें. ये तबादला उद्योग के शिकार हुए. पिछले एक साल में झारखंड में 47 लोगों ने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या की. पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सुविधाएं मिलेंगी. पूर्व मुख्यमंत्रियों और पूर्व विधायकों पर लगभग ढाई करोड़ का सालाना खर्च. झारखंड के मुख्यमंत्री आवास की साजसज्जा पर छह करोड़ का खर्च.

मंत्रियों, विधायकों, विधानसभा अध्यक्ष के आवासों की मरम्मत में 12 करोड़ खर्च. इस राज्य का अपना सचिवालय नहीं है, न विधानसभा भवन. सात साल में इस पर 150 करोड़ रूपये खर्च हुए. राष्ट्रीय खेल समय पर नहीं करा पाने पर एक करोड़ का जुरमाना लगा. जयपाल सिंह, महेंद्र सिंह धौनी, सुमराय टेटे, अरूणा मिश्रा, डोला बनर्जी जैसे खिलाड़ियों का यह राज्य, पर एक राष्ट्रीय खेल कराने में अक्षम. ओलंपियन डोला बनर्जी को यहां नौकरी नहीं मिली. वे बंगाल गयीं. नौरी मुंडू हाकी की जादूगरनी बनती, पर वह खूंटी में एकांतवास झेलती रहीं.

उधर विधानसभा में नियुक्ति घोटाले की खबरें गूंजती रहीं. छत्तीसगढ़ में 91 एमएलए हैं. कर्मचारियों की संख्या है, 255. विधानसभा का वार्षिक खर्च बजट है, 5.60 करोड़. उत्तराखंड में 70 विधायक हैं. पर स्टाफ हैं कुल 190. विधानसभा का वार्षिक खर्च बजट है 4.25 करोड़. बिहार में कुल 243 विधायक हैं. कर्मचारियों की संख्या है 630. विधानसभा का वार्षिक खर्च बजट है 7.25 करोड़.

पर झारखंड में विधायक हैं 81. कर्मचारियों की संख्या 960 से अधिक. वार्षिक खर्च बजट 16.81 करोड़. लोकतंत्र के मंदिर को किस हाल में पहुंचाया, माननीय लोगों ने? खुद छह बार अपने ही वेतन भत्ते में सुधार कर लिया. आज झारखंड के विधायक देश में सबसे अधिक वेतन पानेवाले विधायक हैं. प्रतिमाह इनकी कुल मासिक परिलब्धियां हैं, 46000. गुजरात में विधायकों का वेतन है कुल 21000. मध्यप्रदेश के विधायक 9000 पाते हैं, प्रतिमाह. छत्तीसगढ़ में 1500 रूपये. पश्चिम बंगाल में 3000 रूपये. इसी तरह अन्य राज्यों के विधायक बहुत कम वेतन पाते हैं . प्रतिवर्ष झारखंड के विधायकों का डेवलपमेंट फंड तीन करोड़ है. जबकि सांसदों को भी प्रतिवर्ष महज दो करोड़ विकास मद में आवंटित है.

यह सब तो नेताओं, अफसरों ने किया. और झारखंड देश का सबसे भ्रष्ट राज्य बन गया, पर यहां एक मेडिकल कॉलेज नहीं खुला, न एक आइआइएम या एक आइआइटी या लॉ कालेज या कोई शिक्षण संस्थान. आइआइएम का केंद्र का प्रस्ताव लंबित है. लॉ कॉलेज खोलने की बात 2000 में शुरू हुई, पर अब तक लॅा कॉलेज नहीं खुला. एक भी बेहतर शिक्षण संस्थान नहीं खुले. इस साल तक मेडिकल कॉलेजों में प्रबंधन का कोटा होता था जिसमें विधायकों, मंत्रियों के वार्ड बिना परीक्षा दिये डाक्टर बन रहे थे. एक तरह यह सब हो रहा था, दूसरी तरफ झारखंड देश का सबसे गरीब राज्य बन रहा था. यहां 15 फीसदी सबसे गरीब बेघर हैं.

क्या आप ऐसा ही झारखंड चाहते हैं? अगर नहीं तो जाति, धर्म, और निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर प्रभात खबर के इस अभियान में शरीक होइए. झारखंड को जगाइए. झारखंड को बदलिए. संकल्प लीजिए कि इन चुनावों में भ्रष्टाचार के सौदागर चुनकर नहीं भेजेंगे. राजनीतिक अस्थिरता दूर करेंगे. एक बेहतर राज्य, समाज के लिए जागिए.

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