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भविष्य के संकेत

-हरिवंश- 25 अगस्त 2004. डुमरी प्रखंड के चेगड़ो हाल्ट (धनबाद-कोडरमा रेलखंड) पर एक मालगाड़ी खड़ी थी. लोगों ने 60 बोरा गेहूं लूट लिया.10 सितंबर 2004. केदला चौक, घाटोटांड़ से 13 अनाज गोदाम लूटे गये. पांच हजार लोगों ने लूटा. रात भर लूट चलती रही. 29 सितंबर 2004. गिरिडीह के पीरटांड़ स्थित राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) […]

-हरिवंश-

25 अगस्त 2004. डुमरी प्रखंड के चेगड़ो हाल्ट (धनबाद-कोडरमा रेलखंड) पर एक मालगाड़ी खड़ी थी. लोगों ने 60 बोरा गेहूं लूट लिया.10 सितंबर 2004. केदला चौक, घाटोटांड़ से 13 अनाज गोदाम लूटे गये. पांच हजार लोगों ने लूटा. रात भर लूट चलती रही.

29 सितंबर 2004. गिरिडीह के पीरटांड़ स्थित राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) से लोगों की भीड़ ने 35 बोरा अनाज लूट लिया.

15 सितंबर 2004, रामगढ़ के एक सामान्य उद्योग चलानेवाले के भांजे का अपहरण. दिन में ही. अपहरण किये बच्चे की उम्र 12 वर्ष. उसी दिन रात में हत्या.

झारखंड में घटी ये चारों घटनाएं कैसे भविष्य का संकेत देती हैं?

बीमारी मामूली हो या गंभीर, इससे स्वास्थ्य पता चलता है. रोग के मामूली लक्षण देख कर डॉक्टर दवा देते हैं, ताकि वह भविष्य में गंभीर न बने.इसी तरह समाज के डॉक्टरों का फर्ज है कि वे सामाजिक बीमारियों को पहचानें. लक्षण से भविष्य की आहट लें और सामाजिक चिकित्सा की पहल करें, ताकि समाज-राज-व्यवस्था लाइलाज स्थिति में न पहुंचें.

समाज के डॉक्टर कौन हैं? सरकार, राजनीतिक दल, नेता, नौकरशाह, बुद्धिजीवी, प्राध्यापक वगैरह, मूलत: समाज विज्ञानी हैं. अपने समय की चुनौतियों को पहचानना और उसके अनुरूप आचरण, यही भूमिका है, समाज विज्ञानियों की. झारखंड के समाज विज्ञानियों के लिए हाल की चारों घटनाएं (उपरोक्त) गंभीर बीमारी के तात्कालिक संकेत हैं.

भीड़, माल गोदाम या दुकान क्यों लूटती है? आप आरोप लगा सकते हैं कि उग्रवादियों की शह पर ऐसा हो रहा है. लेकिन सच यह नहीं है. ऐसी घटनाएं बार-बार हों, तो गहराई से जांच होनी चाहिए. क्या हुआ हमारी जनवितरण प्रणाली का? सरकार मानती है कि यह प्रणाली ध्वस्त हो गयी है. लोगों के पास रोजगार नहीं है. सूखा अलग है. लगातार तीन-चार वर्षों से मानसून धोखा दे रहा है. सरकारी कामों में भारी विलंब होता है. भ्रष्टाचार के कारण सरकारी कामों के लाभ नीचे नहीं पहुंच रहे. पिछले एक वर्ष में 1518 तालाब खोदे गये. यह जांच का विषय है कि इनमें से कितने तालाब उपयोगी हैं? जहां ऐसी स्थिति हो, आर्थिक आय के स्रोत बंद हों, खेती पर संकट हो, रोजगार न हो, वहां भूखे हाथ, मौन नहीं रहते. अनाज लूट की तीनों घटनाएं, विवश लोगों के आक्रोश का प्रस्फुटन हैं.

सच्चाई यह है कि इस मामूली सच को मानने-समझने के लिए कोई तैयार नहीं है. इन घटनाओं के महत्व-संकेत को पहचानने से हम इनकार कर रहे हैं. ऐसी घटनाओं को मामूली घटना मान कर चल रहे हैं. ये घटनाएं, ‘भविष्य की दस्तक’ हैं. सरकार-समाज दोनों को यह समझना चाहिए. व्यवस्था में मौजूद गंभीर भ्रष्टाचार इसकी जड़ में है. इस भ्रष्टाचार के लिए महज सरकार ही दोषी नहीं है, राजनेता या नौकरशाह ही जवाबदेह नहीं हैं, समाज भी है.

विकास के लिए चले 100 पैसे, गांव पहुंचते-पहुंचते छह पैसे रह जायें, तो क्या विकास होगा? कितनी सिंचाई क्षमता बढ़ेगी? कितने रोजगार बढ़ेंगे? झारखंड के संदर्भ में एक विशेषज्ञ की टिप्पणी है कि 100 में से छह पैसे ही गांव पहुंच रहे हैं. वृद्धावस्था पेंशन की राशि कई जगहों पर सरकारी खजाने में जमा है. वर्षों तक महत्वपूर्ण फैसले सरकार की फाइलों में उलझे रहते हैं. इस अराजक स्थिति पर नियंत्रण से ही सार्वजनिक लूट की ये घटनाएं रुक सकती हैं. पर नियंत्रण करेगा कौन? सरकार? विपक्ष? अफसर? या राजनीतिक दल? ये तो इस संकट-बीमारी को पहचानने के लिए ही तैयार नहीं हैं. सच यह है कि इस गंभीर बीमारी को पहचानते हुए भी पहचानने के लिए तैयार नहीं हैं? फिर रास्ता क्या है? समाज पहचाने, क्योंकि इसकी आरंभिक कीमत समाज चुका रहा है

इसका प्रमाण है, रामगढ़ की घटना.एक औसत कारोबारी के भांजे का अपहरण होता है, फिर हत्या. अपहरणकर्ता पुलिस को बताते हैं. आल्टो (औसत कार) गाड़ी से यह बच्चा आता-जाता था. देख कर लगा कि पैसेवाला होगा. अपहरण किया, ताकि पैसे मिल जायें.

यह घटना घर में बैठे समाज की चिंता करनेवाले लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए, उद्योग-धंधा करनेवालों के लिए, प्रोफेशनल डाक्टरों, प्राध्यापकों के लिए गंभीर भविष्य का संकेत है. किसी भी संवदेनशील मन को बेचैन करनेवाली. समाज विज्ञानी के लिए गंभीर खतरों से भरे भविष्य की आहट देनेवाली घटना. यह घटना संकेत है कि समाज में कुछ लोग खुशहाली के टापू में सुरक्षित नहीं रह सकते. अभाव, पीड़ा, बेरोजगारी के समुद्र में मध्यवर्ग का सुरक्षित नखलिस्तान तबाह हो जायेगा.

इसलिए मध्यवर्ग जगे, क्योंकि कीमत वह चुका रहा है. सरकार, विपक्ष, पुलिस प्रशासन वगैरह तो सुरक्षा के घेरे में हैं. इस सुरक्षा की कीमत कौन चुकाता है? यही मध्यवर्ग, जो अराजक व्यवस्था की मार भी सह रहा है. यानी मध्यवर्ग दोहरी मार झेल रहा है. एक तरफ शासकों की सुरक्षा की कीमत कर देकर चुकाता है. दूसरी ओर लूटपाट, हत्या, अपहरण का शिकार भी वही है. आखिरकार बिहार में डॉक्टरों, अध्यापकों, मामूली व्यवसायियों का ही अपहरण हो रहा है न! अपराधी तो सांसद, मंत्री, राजनेता बने घूम रहे हैं. पुलिस भी उनकी सुरक्षा में है. वे अपहरण भी कराते हैं. सरकारी खजाने की कीमत पर सुरक्षा भी पाते हैं.

जो सबसे नीचे का वर्ग है, उसके पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं. इसलिए मध्यवर्ग की भूमिका है कि वह समाज के सबसे कमजोर वर्ग के साथ जुड़े. उसकी आवाज-पीड़ा को स्वर दे. उन्हें बताये कि एक गरीब भी दो रुपये की चाय पीता है, तो वह लगभग डेढ़ रुपये (एक कर विशेषज्ञ का आकलन) सरकार को कर (अप्रत्यक्ष कर) के रूप में देता है. मध्यवर्ग और गरीब, इन सरकारी अप्रत्यक्ष करों की मार से तबाह हैं, पर इसका आनंद किसे मिल रहा है? राजनेताओं को, अफसरों को और पैसेवालों को. कीमत चुकाये, मध्यवर्ग व गरीब, भोग करे, शासकवर्ग. मध्यवर्ग और कमजोरवर्ग के एका से ही इस स्थिति में बदलाव संभव है.

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