रांची/मांडर: केंद्रीय विवि के कुलपति प्रो डीटी खटिंग ने कहा कि जनजातियों को पहचानने के लिए यह बेहतर मौका है. इस कार्यक्रम में जनजातीय संस्कृति, उनके जीवन, परंपरा, और समस्या को जानने का एक सुनहरा अवसर भी प्रदान किया गया है.
प्रो खटिंग 30 अक्तूबर को केंद्रीय विश्वविद्यालय व केंद्रीय भाषा संस्थान मैसूर के संयुक्त तत्वावधान में 21वीं सदी में लोककथा व आदिवासी समुदाय विषय पर आयोजित शैक्षणिक सत्र का उद्घाटन कर रहे थे. इस सत्र में जनजातियों की जुबानी कहानी, भाषा संबंधी पहचान और अन्य विषयों पर चर्चा की गयी. इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मदन बी लोकुर द्वारा लिखित पुस्तक कस्टमरी लॉ एंड गुड गवर्नेस का विमोचन किया गया.
पुस्तक का लोकार्पण राजीव गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति आइजी टीसी डेमोर ने किया. गुवाहाटी विश्वविद्यालय के डॉ अनिल बोरो, पंजाब से आये प्रो रंजीत सिंह बाजवा, सर्बिया के प्रो जोजा कार्नानोविक, प्रो ज्योति बरुआ सहित सात वक्ताओं ने वक्तव्य रखे. राजीव गांधी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ अशोक यादव, रांची के प्रो जीआर गंझू, अगरतला के चंद्रकांत मौरा सिंह ने भी अपने विचार रखे. इस अवसर पर 40 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये.
असम की बोरात लोंगकोंग पूजा
असम के ही तीवा ग्रुप के युवाओं ने बोरात लोंगोकोंग पूजा एवं कोडल पोरिया नृत्य पेश किया. इस नृत्य में जीवन का संगीत पेश किया गया. सुरीले संगीत में युवाओं की टोली ने लयबद्ध होकर कदम मिलाया. तीवा समूह इस नृत्य को भगवान रामसा की आराधना से जोड़कर देखते हैं. इस नृत्य के जरिये ईश्वर से प्राकृतिक आपदा एवं बीमारी से सुरक्षा तथा सुख समृद्धि की कामना की जाती है.
ट्राइबल पेटिंग व आर्ट की प्रदर्शनी
केंद्रीय विश्वविद्यालय की आर्ट गैलरी में ट्राइबल पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी है. पेंटिंग्स के बारे में देवाशीष ने जानकारी दी. उन्होंने बताया कि गोंड समुदाय की पेंटिंग सैकड़ों वर्ष पूर्व भित्ति चित्र के रूप में विकसित हुई. गोंड समुदाय इसे आज भी अपने घर सजाने के लिए बनाता है. दीवारों पर बनने वाली पेंटिंग में जानवर व प्रकृति चटक रंग दिखते हैं. यहां चित्रकार दिलीप श्याम की पेंटिंग लगी थी. महाराष्ट्र की वली आर्ट को चित्रकार गणोश महादेव वांगड़ की पेंटिंग्स में देखा जा सकता है. इसमें भी दीवार की तरह के बेस परचावल की गुंडी से सफेद आकृतियां बनायी जाती है.ओड़िशा के चित्रकार साउरा की पेंटिंग सिल्क के कपड़े पर बनी है.
फेस्टिवल में लगे हैं कई स्टॉल
फेस्टिवल में लगे टाटा के स्टॉल में सोहराई आर्ट की पेंटिंग्स लगी है. यहां पर आदिवासी घड़ी भी प्रदर्शित की गयी थी. इस घड़ी की सुइयां एंटी क्लॉक वाइज चलती है पर बिलकुल सही समय बताती है. इसके अलावा खाने पीने के स्टॉल भी लगे हैं. एसबीआइ पंडरा ब्रांच के स्टॉल पर विद्यार्थियों को बैंक के विभिन्न लोन स्कीम की जानकारी दी जा रही है. ट्राइब्स इंडिया के स्टॉल पर पीतल से बनी कलाकृतियां नजर आ रही थी.
देहाती गहने भी प्रदर्शित
झारखंड के ग्रामीण महिलाओं के गहने घुंघरू, खंबिया व माला की भी प्रदर्शनी लगी है. मनपूरन मलार व उनके साथी मिट्टी व अन्य चीजों से बने ढिबरी, एल्युमिनियम के पाइला को बनाकर दिखा रहे थे. इसके अलावा बांस व लकड़ी की सगरी (खिलौना गाड़ी), ढेकी, पटया (चटाई), तीर, धनुष भी प्रदर्शित किये गये हैं.