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दर्शक सरकार, झगड़ते अफसर

– हरिवंश – झारखंड तो गिनीज बुक में रिकार्ड बनानेवाला राज्य है. सो, झगड़ते अफसर भी देश में नयी लकीर खींच देना चाहते हैं. कार्यपालिका के प्रमुख यानी सरकार का दायित्व है, नौकरशाही को उसकी सीमा में रखना. संवैधानिक व्यवस्था के तहत नौकरशाही का ढांचा है. यह राजनीतिक दल नहीं है, जहां ‘फ्री फार ऑल’ […]

– हरिवंश –
झारखंड तो गिनीज बुक में रिकार्ड बनानेवाला राज्य है. सो, झगड़ते अफसर भी देश में नयी लकीर खींच देना चाहते हैं. कार्यपालिका के प्रमुख यानी सरकार का दायित्व है, नौकरशाही को उसकी सीमा में रखना. संवैधानिक व्यवस्था के तहत नौकरशाही का ढांचा है. यह राजनीतिक दल नहीं है, जहां ‘फ्री फार ऑल’ है.
अगर झारखंड में नौकरशाही की यह स्थिति है, तो इसकी सीधी और स्पष्ट जिम्मेवारी सरकार की है. कमजोर सरकार, बेलगाम नौकरशाही.
राज्य की दो ताजा घटनाएं गौर करने लायक हैं.
(1) राज्य के मुख्य सचिव और आइजी के बीच आरोप-प्रत्यारोप.
(2) राज्य के एक वरिष्ठ आइएफएस (वनसेवा) ने पीसीसीएफ से राज्य के वन पर्यावरण सचिव के खिलाफ एफआइआर की अनुमति मांगी है.
ऐसे विवादों की फेहरिस्त लंबी है. पर अन्य मामलों को छोड़ दें, तो ये दो प्रकरण यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि नौकरशाही को ‘स्टेट पावर’ (राज्य) का भय नहीं है.
सरकार का इकबाल अगर नौकरशाहों पर नहीं रहा, तो जनता राज्य को ‘लॉ लेस’ (कानूनविहीन) बनायेगी ही? क्या सरकार के सौजन्य से नौकरशाही असेंबली में तब्दील हो गयी है? ऐसे मामलों में ‘स्टेट मस्ट एक्ट’ (सरकार का हस्तक्षेप होना ही चाहिए). वरना संविधान, संघीय ढांचा सब तहस-नहस हो जायेगा.
सरकार कैसे हस्तक्षेप करे?
जो गंभीर विवाद के विषय हैं, या तो उन्हें ‘समयबद्ध’ सीबीआइ जांच के लिए भेजा जाये या बाहर के राज्य के किसी हाइकोर्ट जज को 15 दिनों के अंदर जांच करा कर रिपोर्ट सरकार मांगे.
रिपोर्ट मिलने तक संबंधित लोगों को सरकार अवकाश पर भेज दे. चर्चा हो रही है कि इन विवादों को ‘लीक’ किसने किया, उस पर कार्रवाई हो? क्या ‘लीक होना’ इतना महत्वपूर्ण प्रसंग है? हां, यह ठीक है कि अफसरों के ‘कोड ऑफ कंडक्ट या सर्विस रुल्स’ वगैरह के अनुसार यह गंभीर बात है, पर इससे भी गंभीर है, दोनों पक्षों के दस्तावेजी आरोप या खंडन के कंटेंट (विषय वस्तु). राष्ट्र, संविधान, समाज और व्यवस्था की दृष्टि से. एक का कहना है कि दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप हैं. दूसरे का प्रतिवाद है कि मेरे खिलाफ कोई मामला ही नहीं है.
स्पष्ट है कि कोई एक गलत है. सार्वजनिक और महत्वपूर्ण सरकारी ओहदों पर बैठे लोग नियमत: ऐसे आचरण नहीं कर सकते. कौन गलत है, इसकी जांच और दोषी पर कार्रवाई सरकार का फर्ज है. जिन्होंने भी नियम भंग किया है, उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए और यह सजा देना सरकार की ड्यूटी है. सरकार रेफरी नहीं है, न ही मूकदर्शक पात्र. किसी अन्य राज्य में यह हाल नहीं है.
दिनांक : 22-02-08

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