रांची: झारखंड हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवी प्रसाद का निधन मंगलवार की रात 12.45 बजे हो गया. 95 वर्षीय स्वर्गीय प्रसाद पिछले 15 दिनों से बीमार चल रहे थे. उनका इलाज सेंटेविटा अस्पताल में चल रहा था.
वे अपने पीछे पत्नी समेत पांच पुत्र और दो पुत्रियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं. स्व प्रसाद का अंतिम संस्कार बुधवार को हरमू मुक्तिधाम में किया गया. ज्येष्ठ पुत्र लोकायुक्त न्यायमूर्ति अम्रेश्वर सहाय ने मुखाग्नि दी. अंतिम यात्रा में हाइकोर्ट के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों के अलावा काफी संख्या में वकील शामिल हुए. स्वर्गीय प्रसाद 95 वर्ष की आयु में भी झारखंड हाइकोर्ट में वकालत करते थे.
चीफ जस्टिस समेत हाइकोर्ट के जजों ने दी श्रद्धांजलि
चीफ जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस डीएन पटेल, जस्टिस आरआर प्रसाद, जस्टिस प्रशांत कुमार, जस्टिस पीपी भट्ट, जस्टिस एससी मिश्र, जस्टिस डीएन उपाध्याय, जस्टिस अपरेश सिंह, जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस अमिताभ गुप्ता के साथ शहर के कई गणमान्य लोगों ने स्वर्गीय प्रसाद के थड़पखना स्थित आवास जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. हाइकोर्ट में मामलों की सुनवाई शुरू होते ही एडवोकेट एसोसिएशन और सीनियर एडवोकेट क्लब के सदस्यों ने चीफ जस्टिस से मिल कर देवी प्रसाद के निधन की सूचना दी. बताया गया कि स्वर्गीय प्रसाद एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. इस वजह से दुख की इस घड़ी में सभी वकील बुधवार को अपने आप को न्यायिक कार्यो से अलग रखना चाहते हैं.
देवी प्रसाद का जन्म 12 फरवरी 1919 को लोहरदगा में हुआ था. इनकी प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा लोहरदगा में हुई. इन्होंने जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की. बीएन कॉलेज पटना से स्नातक करने के बाद विधि की पढ़ाई पटना यूनिवर्सिटी से की. इन्होंने वर्ष 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया, उस वक्त वे इंटर के छात्र थे. इन्होंने 1948 में रांची जिला बार में प्रैक्टिस शुरू की. वर्ष 1979 में हाइकोर्ट ने इन्हें वरीय अधिवक्ता नियुक्त किया. वर्ष 1981 से 1994 तक केंद्र सरकार के सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल रहे. इन्होंने यूके, यूएसए, जर्मनी, इटली में लॉ विषय पर आयोजित कई इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी हिस्सा लिया था. लोहरदगा व रांची में म्यूनिसिपल कमिश्नर रहते हुए देवी बाबू ने कई सामाजिक काम किये. रांची यूनिवर्सिटी में सीनेट और सिंडिकेट के सदस्य रहे.
अनुशासन प्रिय थे न्यायमूर्ति अम्रेश्वर सहाय
मैंने बचपन से ही पिता को एक जिम्मेवार अभिभावक के रूप में देखा है. मेरे पिता (देवी प्रसाद) तीन भाईयों में सबसे छोटे थे. उनके बड़े भाई शंभू प्रसाद हाइकोर्ट में सीनियर एडवोकेट थे. मंझले भाई बजरंग सहाय एजी बिहार में डीएजी थे. सात भाई बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते उनका मुझ पर विशेष ध्यान रहता था. मुङो बचपन से ही अनुशासन में रहने की सीख दिया करते थे. कहते थे कि तुम्हें देख कर ही छोटे भाई-बहन सीखेंगे. वे अनुशासनहीनता को बरदाश्त नहीं करते थे. पिता के मार्गदर्शन का ही प्रभाव है कि हम सभी भाईयों ने अच्छा मुकाम हासिल किया है. वे कभी किसी के काम में हस्तक्षेप नहीं करते. हमेशा कहा करते थे ऊंचा पद पाने के बाद लोगों से विनम्रता से पेश आओ. वे सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे. हमेशा गरीबों की मदद के लिए तत्पर रहते थे. डॉक्टर और टीचर से कभी फीस नहीं लेते थे. उनका मानना था कि दोनों ही सामाजिक कार्यकर्ता हैं. पिता के आदर्शो पर चलते हुए मैंने यह मुकाम हासिल किया है.
(लेखक झारखंड के लोकायुक्त और वरीय अधिवक्ता देवी प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र हैं)