-मनोज प्रसाद-
रांचीः रांची में 500 बेड के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (सदर अस्पताल) को संचालित करने के लिए डॉ नरेश त्रेहान का मेदांता (ग्लोबल हेल्थ केयर), कोलकाता की टेकAो इंडिया और केपीसी में से एक का चयन अंतिम रूप से किया जाना था. निविदा भरनेवाला तीसरा निवेशक रांची के रिंची अस्पताल निविदा की अर्हता पूरी नहीं करने के कारण बाहर हो चुका था.
अब इससे संबंधित निविदा रद्द करने से झारखंड में काम करनेवाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को झटका लगा है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की पीड़ा को चिकित्सक सुनील मांझी की बात दरसाती है. वह कहते हैं : निविदा का स्थगित होना बताता है कि सार्वजनिक हित के कार्यो को निजी स्वार्थ किस हद तक प्रभावित कर देता है. निवेशक वैसे ही झारखंड में रुचि नहीं दिखाते हैं. अब स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी कोई विश्वसनीय संगठन निवेश नहीं करना चाहेगा. 2011 में ही सदर अस्पताल परिसर में बहुमंजिली इमारत का निर्माण कर लिया गया था.
अस्पताल को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर चलाना है, यह तय करने में स्वास्थ्य विभाग को लगभग एक साल का समय लग गया. 2012 में राज्य सरकार ने निवेशक फर्म इंटरनेशनल फाइनांस कॉरपोरेशन (आइएफसी) को 131 करोड़ रुपये खर्च कर बनाये गये 500 बेड के अस्पताल को संचालित करने को लेकर विश्वसनीय निवेशक लाने के लिए नियुक्त किया. आइएफसी का मुख्य काम निविदा की प्रक्रिया पूरी होने तक निवेश की पूरी प्रक्रिया में राज्य सरकार को सहायता करना था. मार्केटिंग, प्रमोशन, समीक्षा, टेंडर व बिड से संबंधित तैयारियों, लेन-देन की संचरना जैसे तमाम कार्यो में आइएफसी को राज्य सरकार का सहयोग करना था.
आइएफसी ने अपना काम किया. निविदा आमंत्रित किये गये. स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश के प्रसिद्ध तीन निवेशकों को शार्ट-लिस्ट किया गया. डॉ नरेश त्रेहान का मेदांता (ग्लोबल हेल्थ केयर), कोलकाता की टेकAो इंडिया और केपीसी में से एक का चयन अंतिम रूप से किया जाना था.
22 जनवरी 2014 को किये गये मंत्रिमंडल के फैसले के मुताबिक, निविदा का मूल्यांकन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की सलाह से होना चाहिए था. लेकिन, स्वास्थ्य विभाग ने मंत्रिमंडल के फैसले की अनदेखी करते हुए स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने पूरी निविदा ही रद्द कर दी. रद्द करने का कारण निविदा की अर्हता केवल दो निवेशकों द्वारा ही पूरा करना बताया गया. स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ कर्मचारी कहते हैं : यह सब केवल पैसे का खेल है. यह तीसरी बार है, जब अस्पताल चलाने के लिए निविदा निकाल कर उसे स्थगित कर दी गयी. पहले दो बार निकाली गयी निविदा किसी निवेशक के नहीं आने के कारण स्थगित करनी पड़ी थी.
रांची के बीच में लगभग 10 एकड़ जमीन पर फैले सदर अस्पताल परिसर में निर्मित यह अस्पताल तीन हिस्सों में है. 11 मंजिला भवन, 10 मंजिला डॉक्टर्स होस्टल और सात मंजिला वार्ड भवन. पीपीपी मोड में चलाने से पहले अस्पताल की आधारभूत संरचना में एक 600 केबी का पॉवर सब स्टेशन, 1,250 केवी का जेनरेटर रूम और छह लाख लीटर पानी की क्षमता वाले अंडरग्राउंड टैंक का निर्माण कर निवेशक को सौंपा जाना था.
राज्य सरकार द्वारा निर्धारित शर्तो के अनुसार, निविदा की अर्हता पूरी करनेवाले तीन निवेशकों को अस्पताल के 85 फीसदी बेड को केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा द्वारा निर्धारित दरों पर चलाना था. सभी बीपीएल परिवारों का नि:शुल्क इलाज करना था. इसके अलावा वहां की जानेवाली सभी प्रकार की जांच सेवा को सीजीएचएस द्वारा निर्धारित दरों पर उपलब्ध करना था.राज्य सरकार द्वारा निविदा रद्द करने के साथ ही झारखंड के गरीबों की सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में इलाज कराने की उम्मीद धराशायी हो गयी. मेगा अस्पताल परिसर को अब एक बार फिर से निविदा निकलने का इंतजार करना होगा. हालांकि, यह तय हो चुका है कि अब डॉ नरेश त्रेहान की मेदांता (ग्लोबल हेल्थ केयर) जैसे निवेशक उसमें हिस्सा नहीं लेंगे. यह इस राज्य के लिए बहुत दुख की बात है. पर, इसके लिए राज्य की सत्ता को धन्यवाद.