अफसोस. खुद प्रावधानों का पता नहीं, जारी कर रहे फरमान
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नहीं हुआ निगरानी समिति का गठन
अफसोस. खुद प्रावधानों का पता नहीं, जारी कर रहे फरमान कोचिंग संचालकों को 25 अप्रैल तक पंजीयन सुनिश्चित कराने का आदेश निर्गत हुआ है. लेकिन पंजीयन कैसे हो, इसके क्या प्रारूप हो और एक्ट के प्रावधानों के तहत संचालकों को कोचिंग में क्या सुविधाएं मुहैया करानी होंगी, इसका जिक्र कहीं नहीं किया गया है. सुपौल […]
कोचिंग संचालकों को 25 अप्रैल तक पंजीयन सुनिश्चित कराने का आदेश निर्गत हुआ है. लेकिन पंजीयन कैसे हो, इसके क्या प्रारूप हो और एक्ट के प्रावधानों के तहत संचालकों को कोचिंग में क्या सुविधाएं मुहैया करानी होंगी, इसका जिक्र कहीं नहीं किया गया है.
सुपौल : बिहार कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट 2010 अपने सात वर्ष पूरे कर चुका है और हालात ये हैं कि एक्ट का अनुपालन सुनिश्चित कराने की दिशा में प्रशासन सात कदम भी नहीं बढ़ पाया है. यही कारण है कि विवादों से चोली-दामन का साथ रखने वाले जिला शिक्षा विभाग के साथ इस एक्ट के अनुपालन को लेकर भी विवाद जुड़ गया है. विवाद की वजह यह है कि कोचिंग संचालकों को 25 अप्रैल तक पंजीयन सुनिश्चित कराने का आदेश निर्गत हुआ है. लेकिन पंजीयन कैसे हो,
इसके क्या प्रारूप हो और एक्ट के प्रावधानों के तहत संचालकों को कोचिंग में क्या सुविधाएं मुहैया करानी होंगी, इसका जिक्र कहीं नहीं किया गया है. इसके अलावा न तो कोई विज्ञापन प्रकाशित किया गया है और न ही सूचना संबंधी नोटिस कोचिंग संचालकों को भेजी गयी है. वही जिले के आलाधिकारी 25 अप्रैल तक पंजीयन नहीं कराने वाले कोचिंग संस्थानों के विरुद्ध कार्रवाई की बात कर रहे हैं. दिगर बात है कि विभागीय अधिकारियों की यह भभकी पुरानी हो चुकी है और कोचिंग संचालक भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि कार्रवाई कुछ नहीं, केवल समय विस्तार होगा.
बिहार कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट 2010 के प्रावधानों के अनुसार जिले में एक्ट का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए निगरानी समिति का गठन होना है. जिसमें स्वयं जिलाधिकारी पदेन अध्यक्ष, पुलिस अधीक्षक उपाध्यक्ष तथा जिला शिक्षा पदाधिकारी पदेन सचिव होते हैं. वही एक अंगीभूत कॉलेज के प्राचार्य इस समिति के सदस्य होते हैं.
जिला मुख्यालय में एक से अधिक अंगीभूत कॉलेज होने की स्थिति में रोटेशन पॉलीसी के तहत यह सदस्य हर वर्ष बदल जाते हैं. सुपौल में बीएसएस कॉलेज ही शहर में एकमात्र अंगीभूत कॉलेज है. लेकिन इसे प्रशासनिक बदइंतजामी कहें या कुछ और, बीते सात वर्षों में कई डीएम व डीइओ को देख चुका सुपौल बीएसएस कॉलेज के प्राचार्य को इस बाबत एक पत्र भी उपलब्ध नहीं करवा सका. जबकि समिति की पहली बैठक में ही एक्ट के प्रावधान अनुपालन पर विमर्श का निर्देश भी सरकार से पूर्व में ही प्राप्त है. जाहिर है, जब समिति ही नहीं बनी, बैठक और कार्ययोजना तैयार करने की चर्चा बेमानी होगी.
बच्चों का रोना रो कर अपनी करनी पर डालते हैं परदा : बिहार कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट 2010 में स्पष्ट किया है कि कानून बच्चों व अभिभावकों के हितों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि उन्हीं बच्चों का रोना रो कर अधिकारी अपनी करनी पर परदा डालने का भरसक प्रयास करते हैं. दरअसल अधिकारियों का तर्क होता है कि एक साथ अगर सभी कोचिंग संस्थानों को बंद कर दिया जाये तो बच्चों के लिए शिक्षा व्यवस्था का पूरा सिस्टम बर्बाद हो जायेगा. हालांकि तब वे यह नहीं बताते हैं कि इस एक्ट के तहत अगर संस्थानों का पंजीयन हो गया तो बच्चे संबंधित शिक्षक के विरुद्ध पुलिस और न्यायालय की शरण में भी जा सकते हैं और यही अधिकार शिक्षकों को भी मिल जायेगा. क्योंकि संस्थानों को इसके बाद बच्चों का पूरा डाटाबेस तैयार करना होगा. फीस केसाथ ही कोर्स और उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी देनी होगी. साथ ही शिक्षक की शैक्षणिक योग्यता भी बताना अनिवार्य हो जायेगा.
साहेब हैं नहीं, बतायेगा कौन ! : बिहार कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट 2010 के तहत निगरानी समिति का गठन तो नहीं ही हुआ है, प्रावधानों को लेकर भी लोगों में जानकारी का अभाव है. यही कारण है कि बीते दो दिनों में जब अचानक 25 अप्रैल की समयसीमा वाली बात ने जोड़ पकड़ा, एक बार फिर कुछ कोचिंग संचालक एकजुट हो कर जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय पहुंचे. लेकिन हैरत की बात यह रही कि यहां उन्हें जानकारी देने वाला तक कोई नहीं था.
प्रधान लिपिक नरेश प्रसाद ने बताया कि जिला शिक्षा पदाधिकारी मो मंसूर आलम किसी सरकारी कार्य से पटना गये हुए हैं. जबकि स्थापना डीपीओ अमर भूषण डीएम के कार्यालय में आयोजित किसी बैठक में भाग लेने समाहरणालय गये हुए थे. बताया गया कि सोमवार को उनका अधिकतर समय वहीं बीत गया. जबकि लिपिक श्री प्रसाद ने एक्ट के प्रावधानों की जानकारी से इनकार किया. बताया कि एक नोटिस कार्यालय के सूचना बोर्ड पर चिपका दिया गया है.
एक्ट के प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं अधिकारी व कर्मी
बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट को लागू किये यूं तो सात वर्ष से अधिक समय हो चुका है. लेकिन बीते नवंबर माह से राज्य सरकार ने इसके अनुपालन को लेकर सबसे अधिक गंभीरता दिखायी है. अधिकारियों को लगातार कई आदेश जारी हुए हैं और उन्हें एक्ट के तहत कोचिंग संस्थानों का निबंधन सुनिश्चित करने के लिए प्रचार-प्रसार का जिम्मा भी सौंपा गया है. लेकिन स्थिति लंगूर के हाथ अंगूर वाली है. क्योंकि बिहार कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट के जिन प्रावधानों का अनुपालन सरकार की कोशिश है,
उसकी पहली सीढ़ी से भी विभागीय अधिकारी और कर्मी ही अनभिज्ञ हैं. प्रभात खबर ने अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए इससे पूर्व भी तीन बार अलग-अलग तिथियों में एक्ट के प्रावधानों की जानकारी खबर के माध्यम से आमजन तक को दी है. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि एक्ट का अनुपालन कराने का तरीका तो दूर, प्रावधानों की जानकारी भी विभागीय अधिकारियों व कर्मियों को नहीं है.
कोचिंग रेगुलेशन एंड कंट्रोल एक्ट की निगरानी समिति में सदस्य होने के बाबत मुझे अब तक कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. पत्र प्राप्ति के उपरांत ही इस संबंध में कुछ भी बोलना उचित होगा.
डाॅ संजीव कुमार, प्राचार्य, बीएसएस कॉलेज, सुपौल
26 अप्रैल को सभी डीएम व डीइओ से पंजीकृत कोचिंग संस्थानों के बाबत प्रतिवेदन मांगा गया है. समिति गठन संबंधी जिम्मेवारी जिला शिक्षा पदाधिकारी की है. उन्हें चाहिए कि वह कॉलेज प्रधान को पत्र जारी कर अधिसूचना की जानकारी दें. 26 अप्रैल के उपरांत इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जायेगी.
मो एमएच मंसूरी, प्रतिनियुक्त पदाधिकारी, कोचिंग रेगुलेशल, माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, पटना
बच्चे यहां पढ़ने नहीं, खेलने आते हैं!
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