हो रहा करोड़ों खर्च, नहीं मिल रहा किसानों को लाभ फोटो -9,10,11कैप्सन – सूखा पड़ा रानीपट्टी वितरणी नहर, निर्माण के साथ ही ध्वस्त हुआ भीसी व पटवन के अभाव मे बरबाद फसल दिखाते किसानप्रतिनिधि, छातापुर सरकार के लाख कवायद के बावजूद किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है. जिस कारण इस इलाके के कृषकों की स्थिति जल बिन मछली की कहावत को चरितार्थ कर रहा है . किसानों ने पटवन के नाम पर हजारों रुपये खर्च कर इस बार खरीफ फसल की खेती तो कर ली. लेकिन उन्हें अब रबी फसल को लेकर चिंता सताने लगी है. तेलहन व मक्का के फसल को पटवन के अभाव में भारी नुकसान पहुंची है. सिंचाई प्रबंधन में बरती गयी लापरवाही के कारण किसानों को एक वर्ष में छह माह बाढ़ तो छह माह सुखाड़ की स्थिति झेलते हैं. जिस कारण किसानों में विपन्नता की स्थिति पनप रही है. खासकर आर्थिक रूप से कमजोर छोटे और मझोले किसानों की स्थिति और भी विकराल है. बाढ़ और सुखाड़ कि स्थिति में फसल क्षति व अनुदान किसानों के लिए ऊंट के मूंह में जीरा समान माना जा रहा है. हजारों करोड़ रुपये हुए बेकार सरकार किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए गंभीर है. लेकिन सिंचाई विभाग सरकार के चिंताओं को अनदेखी कर खाओ पकाओ और आराम करो कि शैली पर काम कर रही है. नतीजतन है कि विगत वर्षों में रानी पट्टी वितरणी सहित प्रखंड क्षेत्र स्थित अन्य नहरों कि साफ सफाई और नहर से खेतों तक पानी पहुंचने के लिए ग्रामीण केनाल निर्माण के नाम पर हजारों करोड़ रुपये का आवंटन किया गया. लेकिन इस राशि से निर्माण के नाम पर महज खाना पूर्ति की गयी. करोड़ों रुपये संवेदक और विभागीय अधिकारी की गठजोड़ का भेंट चढ़ गया. विभागीय स्तर से निगरानी नहीं होने की वजह से संबंघित संवेदक द्वारा नहर की समुचित सफाई नहीं कर तलहटी से मिट्टी निकाल ली गई. तलहटी ज्यादा गहरा हो जाने के कारण पानी का स्तर भीसी के स्तर से नीचे हो गया. ग्रामीण केनाल में बेहद कमजोर भीसी का निर्माण कराया गया. जो निर्माण के कुछ माह बाद ही कई जगहों पर ध्वस्त हो चुका है. कहते हैं किसानकिसान नारायण मुखिया बताते है कि गरीबी के बीच उन्होंने 13 कट्ठा खेत में तेलहन का फसल लगाया था. जो पटवन के अभाव में नष्ट हो गया. बताया कि समय और लागत दोनों बेकार चला गया. सैमूल साफी ने बताया कि बाढ़ और सुखाड़ झेलते झेलते अब तो कमर ही टूट चुकी है. खाद बीज महंगा हो गया ऊपर से पटवन की चिंता है. संजय वहरखेर बताते हैं कि कोसी इलाके के किसानों कि जिंदगी अन बूझ पहेली बनती जा रही है. भगवान भरोसे खेती कर किसान कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ में अपना जमा पूंजी भी गवां देते है.फसल क्षति अनुदान के लिए सरकारी घोषणाएं भी छलावा ही साबित होती हैं. विर्तानन्द ठाकुर बतातें है कि खाद बीज सस्ती करने, खेतों तक पानी पहूंचाये जाने को लेकर सरकार के सभी वायदे झूठे निकले हैं. योजनाएं तो चलायी जाती है लेकिन उसकी निगरानी नहीं हो पाने के कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता. बिचौलिया व दलाल मालामाल हो जाते हैं. मालिक पासवान ने बताया कि कृषि प्रधान इस देश में किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. केंद्र से लेकर राज्य भर के चुनाव से पूर्व किसानों को खुशहाल करने का वादा तो कर जाते हैं. लेकिन सरकार बनते ही सब कुछ भूल जाते हैं.
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हो रहा करोड़ों खर्च, नहीं मिल रहा किसानों को लाभ
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