‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ से गूंजा पपौर
मुख्यालय से करीब पांच किलो मीटर पूर्व स्थित पचरुखी प्रखंड का प्राचीन बौद्धकालीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा (पपौर) में बुद्ध पूर्णिमा धूमधाम से मनायी गयी. श्रद्धालु ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ के जयघोष के साथ शामिल हुए. पावा गांव के 32 वर्षों से विकास में जूटे कुशेश्वर नाथ तिवारी व बौद्धाचार्य राजदेव बौद्ध के नेतृत्व में ग्रामीणों ने भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष पूजा अर्चना करने के बाद पुष्प अर्पित किया.
सीवान. मुख्यालय से करीब पांच किलो मीटर पूर्व स्थित पचरुखी प्रखंड का प्राचीन बौद्धकालीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा (पपौर) में बुद्ध पूर्णिमा धूमधाम से मनायी गयी. श्रद्धालु ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ के जयघोष के साथ शामिल हुए. पावा गांव के 32 वर्षों से विकास में जूटे कुशेश्वर नाथ तिवारी व बौद्धाचार्य राजदेव बौद्ध के नेतृत्व में ग्रामीणों ने भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष पूजा अर्चना करने के बाद पुष्प अर्पित किया. कुशेश्वर नाथ तिवारी ने बताया यह पर्व हमारे गांव की परंपरा का हिस्सा है.हमें गर्व है कि भगवान बुद्ध का पावा से रहा है. यह ऐतिहासिक स्थल विश्व पर्यटन मानचित्र पर आए.इसके लिए हर साल हम बुद्ध पूर्णिमा को विशेष रूप से मनाते हैं.इस आयोजन ने न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया, बल्कि यह आयोजन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है.इस अवसर पर सोनेलाल बौद्ध, बंटी कुशवाह, सुष्मिता कुशवाहा, राहुल,राकेश,रघुनाथ, रूपा कुमारी, सुलेहरा देवी कुमार एवं हजारों ग्रामीण पुरुष एवं महिलाएं उपस्थित थे. निर्वाण प्राप्ति के पूर्वाद्ध में भगवान बुद्ध ने काफी समय व्यतीत किए थे पावा में ऐतिहासिक तथ्यों,किदवंतियों व समय-समय पर मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने अपने निर्वाण प्राप्ति के पूर्वाद्ध में यहां पर काफी समय व्यतीत किया था.सर्व प्रथम डॉ. होय नामक अंग्रेज विद्धान ने पावा की खोज की थी. उन्होंने यहां पर तांबे के कुछ इंडों बैक्ट्रियन सिक्कों को भी खोजा था. भगवान गौतम बुद्ध अपनी अंतिम यात्रा के क्रम में भोग नगर से चलकर पावा पहुंचे थे और चुंद नामक सोनार के आम्रवन में ठहरे थे. ग्रामीण कुशेश्वर नाथ तिवारी के अथक प्रयासों के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पावा गांव की खुदाई की गई. खुदाई के दौरान कई प्राचीन बौद्ध कालीन अवशेषों के मिलने के बाद बौद्ध धर्मावलंबियों ने पावा गांव का भ्रमण किया. ह्वेनसांग एवं फाहियान के द्वारा खोज की गई 12 स्तूपों का कुशेश्वर नाथ तिवारी द्वारा पता लगाया गया तथा 2008 में इन्होंने फुट प्रिंट ऑफ द बुद्धा सेंड ऑफ द टाइम्स नामक पुस्तक में संकलित भी किया.
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