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न भवन, न मालखाना, नाम जीबी नगर थाना

– परवेज अख्तर – तरवारा : जीबी नगर थाना अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है. हो भी क्यों न, दो दशक से अधिक हो गये यह आज तक किराये के भवन में चल रहा है. भवन व मालखाने के अभाव में पकड़े गये वाहन खुले आसमान तले सड़ रहे हैं. सबसे खास बात तो […]

– परवेज अख्तर

तरवारा : जीबी नगर थाना अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है. हो भी क्यों , दो दशक से अधिक हो गये यह आज तक किराये के भवन में चल रहा है. भवन मालखाने के अभाव में पकड़े गये वाहन खुले आसमान तले सड़ रहे हैं.

सबसे खास बात तो यह है कि इसे आज तक थाने का दर्जा भी नहीं मिला. मजबूरन चार थानों में कांड अंकित होता है. बता दें कि जीबीनगर थाने की स्थापना सन 1982 में हुई थी. स्थापना के एकाध वर्ष तक यह थाना बसंतपुर रोड स्थित एक मकान में किराये पर चला.

इसके बाद यह राम जानकी मंदिर परिसर में बने भवन में गया. वर्तमान एक बल्डिंग करकटनुमा भवन में थाना किराये पर चल रहा है. सबसे खास बात अगर इन भवनों को छोड़ दें, तो पुलिस कर्मियों को सिर छुपाने के लिए जगह नहीं है. मजबूरन पुलिस कर्मी तरवारा बाजार में किराये के कमरे लेकर रहते है. सर्दीगरमी या फिर बरसात में एक सेक्सन फोर्स करकटनुमा कमरे में गुजरबसर करती है, जो काफी जजर्र हो चुका है.

वहीं दूसरी सेक्सन मंदिर परिसर, जहां हवन होता है, वहां डेरा डाले हुए है. इनको सबसे अधिक दिक्कत बरसात में होती है. क्योंकि हमेशा बंदूकों गोलियों के भीगने का डर बना रहता है. गौर करने वाली बात तो यह है कि 20 पंचायतों 86 गांवों की सुरक्षा का जिम्मे उठानेवाला यह थाना खुद ही बदहाल है.

दो दशक से अधिक का समय गुजर गया, लेकिन आज तक अपना भवन नहीं बन सका. वाहन चेकिंग के दौरान पकड़ी गयी गाड़ियां खुले आसमान तले रखी जाती है. वहीं इसे आज तक थाने का भी दर्जा नहीं मिला है. नतीजन चार थानों में इस क्षेत्र के कांड अंकित होते हैं.

जबकि कांडों का अनुसंधान इसी थाने में होता है. थाने में थानाध्यक्ष सरोज कुमार के अलावा दारोगा एमपी सिंह, राजपत कुमार सहायक अवर निरीक्षक ब्रह्मदेव पासवान, सुशील पासवान, राम सागर सिंह, बबन सिंह सिंह तैनात हैं.

इनमें तीन अवर निरीक्षक एक सहायक अवर निरीक्षक को छोड़ शेष सभी पुलिस कर्मी किराये के मकान में रहते हैं. थाने में महिला हाजत नहीं होने से कांडों में गिरफ्तार महिला अभियुक्तों को ले पुलिस कर्मी काफी परेशान रहते हैं. क्योंकि उन्हें पुरुषों से अलग रखना पड़ता है.

हाजत नहीं रहने के चलते उन्हें थाना परिसर में बने खुला करकटनुमा कमरे में रखा जाता है. लेकिन इसके बाद पुलिस कर्मियों की चिंता बरकरार रहती है कि कहीं वह चकमा देकर फरार हो जायें.

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