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दोहरे हत्याकांड में पांच को आजीवन कारावास

डुमरा कोर्ट (सीतामढ़ी) : दोहरे हत्याकांड के एक मामले में कोर्ट ने बेलसंड के खोट्टा सुरपट्टी गांव के पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनायी है. फैसला तदर्थ अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम मो इरशाद अली ने मंगलवार को सुनाया. पांचों अभियुक्तों पर 75-75 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया है. राशि चुकता नहीं करने पर उन्हें […]

डुमरा कोर्ट (सीतामढ़ी) : दोहरे हत्याकांड के एक मामले में कोर्ट ने बेलसंड के खोट्टा सुरपट्टी गांव के पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनायी है. फैसला तदर्थ अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम मो इरशाद अली ने मंगलवार को सुनाया. पांचों अभियुक्तों पर 75-75 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया है.
राशि चुकता नहीं करने पर उन्हें क्रमश: छह व तीन माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी. इतना ही नहीं, मारपीट में सभी को तीन-तीन वर्ष कारावास की भी सजा सुनायी गयी है. सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी. अर्थदंड की राशि का भुगतान पीड़ित पक्ष को करना होगा. जिन्हें सजा सुनायी गयी है, उनमें खोट्टा सुरपट्टी के मो ताहिर, मो रिजवान, मो इजराबुल, मो साजिद व मो वाजिद उर्फ वाजित शामिल हैं.
इस मामले में न्यायालय ने चार अप्रैल को पांचों को दोषी करार दिया था. मामले में सरकार के पक्ष से अपर लोक अभियोजक कामेश्वर प्रसाद ने पक्ष रखा. वहीं बचाव पक्ष की ओर से वरीय अधिवक्ता केएन शर्मा ने पक्ष रखा.
बैल काटने से मुखिया ने किया था मना
19 अगस्त 2012 को खोट्ठा सुरपट्टी निवासी मुखिया मो हाफिज राइन के पुत्र मो ताजुद्दीन ने बेलसंड थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी. इसमें बताया था कि घटना ईद चांद रात की थी. अभियुक्तों ने अपने दरवाजे पर बैल काट रखा था. इसकी खबर उसके अब्बा को लगी.
मुखिया की हैसियत से वह उन लोगों को समझाने गये. कहा कि इस गांव में हिंदू व मुसलमान दोनों रहते हैं. तुम लोग यह क्या कर रहे हो? यह बंद करो, नहीं तो दंगा फैल जायेगा. इतने पर ही उन लोगों ने पिता पर तलवार, फरसा, दबिया, चाकू आदि से हमला कर दिया. इससे गंभीर रूप से जख्मी हो गये. उन्हें बचाने उसके भाई हेलाल व नेहाल गये. उक्त लोगों ने उसे भी बुरी तरह जख्मी कर दिया. इलाज के दौरान मुखिया मो हाफिज व पुत्र हेलाल की मौत हो गयी. वहीं नेहाल की काफी समय इलाज के दौरान जान बची.
थानाध्यक्ष से लेकर एसपी व आइओ पर कड़ी टिप्पणी
मामले में कोर्ट ने एसपी, थानाध्यक्ष व आइओ की लापरवाही को लेकर कड़ी टिप्पणी की है. कहा है कि ऐसे गंभीर मामले की जांच में ऐसी घोर लापरवाही की जाती है, तो क्या एसपी स्तर के अधिकारी अनुसंधानकर्ता के इस खेल को देखते नहीं है, या फिर इन्हें ऐसा करने की खुली छूट दे रखी है. निश्चित रूप से ऐसे गंभीर प्रकृति के मामले में नकारात्मक प्रकृति का अनुसंधान किया गया है. इसके लिए कांड के अनुसंधानकर्ता से लेकर एसपी तक अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं. इन्हें इस बाबत स्थिति साफ करनी होगी. न्यायाधीश ने फैसले की एक प्रति कार्रवाई के लिए आइजी को भेजी है.

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