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हरि व हर के एक साथ दर्शन होते हैं हरिहरनाथ में
हरिहरक्षेत्र सोनपुर पौराणिक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का स्थान है. भारत वर्ष के ऐतिहासिक वर्णनों और साहित्यिक रचनाओं में इस क्षेत्र का उल्लेख बड़े ही महत्वपूर्ण ढंग से किया गया है. इसी पवित्र भूमि पर बाबा हरिहरनाथ जी का मंदिर है. इस मंदिर में हरि और हर का संयुक्त दर्शन एक साथ होता है. इसके […]
हरिहरक्षेत्र सोनपुर पौराणिक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का स्थान है. भारत वर्ष के ऐतिहासिक वर्णनों और साहित्यिक रचनाओं में इस क्षेत्र का उल्लेख बड़े ही महत्वपूर्ण ढंग से किया गया है.
इसी पवित्र भूमि पर बाबा हरिहरनाथ जी का मंदिर है. इस मंदिर में हरि और हर का संयुक्त दर्शन एक साथ होता है. इसके ठीक पीछे मंदिर के अंदर ही भगवान विष्णु की एक अलग प्रतिमा है, जिसके एक पांव के नीचे का भाग खंडित है. लेकिन खंडित भाग को बहुमूल्य धातु से पूरा कर दिया गया है. जैसे बीज में छिपा वृक्ष दिखायी नहीं देता, दूध में घी मौजूद होते हुए भी दिखायी नहीं देता, तिल में तेल दिखाई नहीं देता, फूल में खुशबू दिखाई नहीं देती वैसी ही बाबा हरिहरनाथ की प्राण प्रतिष्ठा किसने किया और इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया यह आज तक पहली बनी हुई है. इसका कहीं कोई लिखित दस्तावेज नहीं है.
थोड़ी बहुत सुलभ सामग्री एवं पटकथाओं के आधार पर इस मंदिर की स्थापना के संबंध में यह कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र के साथ धनुष यज्ञ में भाग लेने के लिए जनकपुर जा रहे थे. उसी समय मार्ग में सोनपुर के गंगा-गंडक के संगम तट पर कुछ दिन विश्राम किये थे. उसी समय भगवान श्रीराम ने यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी और मंदिर का भी निर्माण किया था. दंत कथाओं में यह भी प्रचलित है कि वाणासुर की राजधानी जो शोणितपुर था वह स्थान आज का यही सोनपुर है.
उषाहरण के समय वाणासुर और द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण का युद्ध यहीं हुआ था. भगवान शिव वाणासुर के पक्ष में थे. यह बड़ा विकट और ऐतिहासिक युद्ध था. जब कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था, तो अंत में सुलह हुई. मालूम हो कि श्रीकृष्ण को हरि भी कहा जाता है और हर शिव कहे जाते है. हरिहरनाथ का यह मंदिर असुरों के बीच श्रीकृष्ण की मान्यता का प्रतीक भी बताया गया है. ऐसे वर्तमान मंदिर के भवन के निर्माण के संबंध से यह लोककथा प्रचलित है कि 17 वीं सदी में काली मंदिर की एक पुजारिन ने चढौना की राशि को एकत्रित करके इसे बनवाया था. भगवान बुद्ध भी वैशाली आने-जाने के क्रम में सोनपुर आये थे. ऐसे यह क्षेत्र प्राचीनकाल से ही ऋषि मुनियों, साधु-संतों की भूमि रही है.
एक से बढ़कर एक पवित्र आत्माओं वाले ज्ञानी सन्यासियों ने यहां आकर शरण ली और बाबा हरिहरनाथ की पूजा अर्चना कर धन्य हुए. यहीं सब कारण है कि प्रारंभ से ही हरिहरनाथ का पौराणिक और धार्मिक कथा का साहित्य बड़ा ही समृद्धशाली रहा है. हरिहरनाथ मंदिर एक ऐसा बन गया है, जहां आध्यात्मिक और धार्मिक वातावरण की गूंज हमेशा सुनायी और दिखायी पड़ता है.
यहां आप अकेले या अन्य भक्तां की उपस्थिति में भी बैठ कर शांत मन से जाप, पूजा-पाठ, आरती, भजन, मंत्रपाठ ध्यान आदि कर सकते है. इस मंदिर के उपर एक सुंदर और आकर्षक गुंबद बना हुआ है. यह गुंबद ध्वनि सिद्धांत तथा वास्तु कला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. साधक हरिहरनाथ की प्रतिमा के सामने बैठकर पूजा-अर्चन में जो मंत्र जाप करते है, उनकी ध्वनि मंदिर के गुंबद से टकराकर घुमती है और उपर की ओर गुंबद के संकरे होते जाने के कारण केंद्रीभूत हो जाती है.
संकरे के सबसे उपर का मध्य भाग जहां कलश त्रिशूल आदि लगा वह अत्यंत संकरा तथा बिंदू रूप है. जानकारों का कहना है कि मंत्र शाश्वत शब्द है और उनमें सभी प्रकार की ईश्वरीय शक्ति समन्वित है. अत: गुंबद से टकराकर जब मंत्र ध्वनि हरिहरनाथ के सहस्त्र से टकराती है, तो देव प्रतिमाएं यानी हरिहरनाथ जागृत हो जाते है और साधक को उसकी भावना के अनुसार फल प्रदान करते है.
हरिहरनाथ मंदिर का विकास यहां के महंत स्वर्गीय अवध किशोर गिरि के समय से शुरू है. वर्तमान मुख्य अर्चक आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री है, जिसके समय में महाआरती सहित कई प्रकार के पूजन परंपरा प्रारंभ किया गया है.
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