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भिखारी ठाकुर की 128वीं जयंती के अवसर पर विशेष छपरा : लोक कलाकार भिखारी ठाकुर न सिर्फ एक कवि, लेखक, गीतकार एवं नाटककार थे, बल्कि वे भविष्यद्रष्टा भी थे. 20वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने उत्तर बिहार के विशाल भोजपुरी समाज में व्याप्त नशापान की समस्या पर भी अपने नाटकों के माध्यम से लोगों का […]

भिखारी ठाकुर की 128वीं जयंती के अवसर पर विशेष
छपरा : लोक कलाकार भिखारी ठाकुर न सिर्फ एक कवि, लेखक, गीतकार एवं नाटककार थे, बल्कि वे भविष्यद्रष्टा भी थे. 20वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने उत्तर बिहार के विशाल भोजपुरी समाज में व्याप्त नशापान की समस्या पर भी अपने नाटकों के माध्यम से लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था. अपने प्रसिद्ध नाटक बिदेशिया में जहां उन्होंने स्त्री की वेदना एवं पलायन की समस्या को उकेड़ा, वहीं अपने प्रसिद्ध नाटक पियउ निशइल में उन्होंने गरीब एवं पिछड़े समुदाय के लोगों के बीच नशापान के कारण हो रहे सामाजिक विद्वेष, अंतर्विरोध एवं सामाजिक विघटन की समस्या को उठा कर भोजपुरी समाज को इसके प्रति आगाह किया था.
पियउ निशइल की नायिका जब यह कहती है कि नशा खाके पिया मोरा, दिहले कपाड़ फोड़, पड़ल बानी निशइल के पलवा हो राम. यानी भिखारी ठाकुर ने मद्यपान से सर्वाधिक प्रभावित स्त्री समुदाय को इससे बचाने के लिए आगे आने की अपील की थी. आज जबकि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनावी वादे के तहत आगामी एक अप्रैल से पूर्ण शराब बंदी लागू करने का निर्णय किया जा चुका है, वैसी परिस्थिति में लोक कलाकार भिखारी ठाकुर आज से सर्वाधिक प्रासंगिक होते हुए दिखाई पड़ रहे हैं.
भिखारी ठाकुुर ने अपने नाटकों में समाज में बुजुर्गों की दयनीय हालत पर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था. लगभग इसी दौर से भारतीय समाज आजकल गुजर रहा है. संयुक्त परिवारों के टूटने के बाद एवं न्यूक्लियर फैमिली बनने के बाद सबसे ज्यादा उपेक्षा बुजुर्ग माता-पिता को हो रही है. अपने नाटक ‘बूढ़साला’ में भिखारी ठाकुर ने बुजुर्गों की दुर्गति की चर्चा उस वक्त की थी, जब आज के हालात की परिकल्पना भी नहीं की गयी थी.
अपने नाटक ‘दामाद वध’ में भिखारी ठाकुर ने गरीबी एवं अभाव से गुजर रहे बिहारी समाज में व्याप्त लूट पाट एवं चोरी डकैती की समस्या को उजागर किया है. ऐसी परिस्थति में भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता 21वीं शताब्दी में भी देखने को मिल रही है. यही कारण है कि आज उनकी कृतियों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों में रिसर्च हो रहे हैं.
इस तरह इस महान लोक कलाकार की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है. उन्होंने खुद ही कहा था कि ‘अबही नाम भईल बा थोड़ा, जब तन ई छूट जइहे मोरा, तेकरा बाद नाम हो जइहन ज्ञानी पंडित सब लोग गइहन, नइखी पाठ पर पढ़ले भाई, गलती सभी लउकते जाई’
डॉ लालबाबू यादव
(लेखक जेपीविवि के प्राध्यापक है)

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