ठाकुर संग्राम सिंह/मृत्युंजय त्रिपाठी
डोरीगंज (छपरा): जिले में उफनायी नदियां कहर ढा रही हैं. पिछले एक पखवारे में बाढ़ के पानी में बह जाने के कारण क्षेत्र के आधा दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन, बाढ़ से कहीं अधिक बौरायी व्यवस्था है. और इसलिए मात्र दो दिनों में ही इलाज के अभाव में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के विभिन्न इलाकों से ताल्लुक रखनेवाले तीन लोगों की मौत हो गयी. ऐसे मामलों में इन मरीजों को पीएमसीएच रेफर किया गया, जिनका इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में किये जाने का दावा किया जाता है. ऐसे मरीजों की पुर्जियों पर रेफर टू पीएमसीएच लिखा गया, जिनके पास सदर अस्पताल पहुंचने तक का भाड़ा नहीं. लिहाजा, ऐसा एक भी मरीज नहीं बचा और चिकित्सकों के रेफर के शौक ने सदर अस्पताल पहुंचनेवाले उन मरीजों की जान ले ली, जो कि बौरायी गंगा-सरयू की लहरों को नाव से पार कर सदर अस्पताल इस आस में पहुंचे थे कि उनका जीवन धरती के ये कथित भगवान बचा लेंगे. लोगों का आरोप है कि सांप कटी, सूअर काटने व साधारण मामलों में भी चिकित्सक कर रहे हैं रेफर. बुधवार को नंदू की मौत के साथ ही सरकारी चिकित्सा व्यवस्था के साथ-साथ बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बंटनेवाली राहत, कथित मेडिकल कैंप व तमाम योजनाओं की सच्चाई सामने आ गयी.
बता दें कि सोन लगातार इंद्रपुरी बराज से तबाही की किवाड़ खोल लाखों क्यूसेक पानी गंगा व सरयू नदियों में डिसचार्ज किया जा रहा है. इस कारण पहले से ही उफनाई नदियां तबाही की नयी गाथा लिख रही हैं. उधर, जिला प्रशासन के दावों में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में मेडिकल कैंप संचालित हैं, नावें चल रही हैं, राहत सामग्रियां बांटी जा रही है. जबकि सच्चाई वह है जो कि नंदू की मौत कह गयी है. नंदू के जीवन के लिए संघर्ष और मौत तक के अंजाम की कहानी सुनिए, आप खुद ही बोल उठेंगे कि यहां तो बाढ़ से अधिक भयावह व्यवस्था है. जिले का सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्र दियारा अवस्थित सदर प्रखंड की कोटवापट्टी रामपुर पंचायत के सूरतपुर गांव निवासी स्व. खकू राम के पुत्र 55 वर्षीय नंदू राम का घर बुधवार को बाढ़ के पानी के दबाव व कटाव के कारण गिर गया. इसकी दीवार के नीचे दबने से नंदू की हड्डियां चटक गयीं और वह गंभीर रूप से जख्मी हो गया. तत्काल उसे परिजनों द्वारा गंगा की लहराती लहरों के बीच नाव के माध्यम से पार कर किसी तरह छपरा स्थित सदर अस्पताल पहुंचाया गया. यहां चिकित्सकों ने परंपरा के मुताबिक प्राथमिक उपचार किया और पूर्जी पर लिख दिया- रेफर टू पीएमसीएच. यही नहीं, परिजनों के मुताबिक, चिकित्सकों ने यह भी कह दिया कि अब यह बच नहीं सकता, लेकिन इसे पीएमसीएच ले जाओ. नंदू के परिजन, जो कहीं से 400 रुपये का जुगाड़ कर नंदू को सदर अस्पताल लेकर पहुंचे थे, अब उसे पीएमसीएच तक ले जाने का किराया कहां से लाते? अव्वल तो यह कि उनके पास घर वापस जाने तक का किराया नहीं था. एक टेंपोवाले को उन्होंने अपनी पंचायत के पूर्व मुखिया सत्येंद्र सिंह से बात करायी और श्री सिंह द्वारा किराया देना स्वीकार किये जाने पर टेंपोवाला नंदू व उनके परिजनों को छोड़ने गया. रास्ते में नंदू ने दम तोड़ दिया. किसी तरह परिजन घर पहुंचे, उनके पास नंदू के दाह-संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे. इसके लिए पूर्व मुखिया ने अपने पास से तीन हजार रुपये की मदद दी. नंदू की चिकित्सकीय व्यवस्था से लेकर उसके मरने तक उसे कोई सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं हो सकी. अभी बुधवार को ही, चकिया निवासी श्यामसुंदर महतो के 12 वर्षीय पुत्र धनेश को जंगली सूअर ने काट लिया. जब उसे परिजन सदर अस्पताल ले गये, तो उसे भी वही पुर्जी थमा दी गयी- रेफर टू पीएमसीएच और फिर अंजाम भी वही- जीवन की उम्मीद में अस्पताल गया था, घर लाश आयी. मंगलवार को, विशुनपुरा पंचायत के शिवरहिया निवासी शिववचन सिंह को सांप ने डस लिया. परिजन सदर अस्पताल ले गये और फिर रेफर और मौत.