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सुलेशन की महक में खो रहा मासूमों का बचपन

िचंता. गरीब बच्चों में लग रही मादक पदार्थों के सेवन की लत छपरा(नगर) : नशामुक्ति और दहेज प्रथा को लेकर भले ही सरकार इन दिनों सजग है सार्वजनिक मंच से इन कुरीतियों को समाप्त कर विकास का एक नया अध्याय लिखने की कोशिश की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ जिले में सुलेशन और अन्य […]

िचंता. गरीब बच्चों में लग रही मादक पदार्थों के सेवन की लत

छपरा(नगर) : नशामुक्ति और दहेज प्रथा को लेकर भले ही सरकार इन दिनों सजग है सार्वजनिक मंच से इन कुरीतियों को समाप्त कर विकास का एक नया अध्याय लिखने की कोशिश की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ जिले में सुलेशन और अन्य मादक पदार्थ का सेवन कर अपने बचपन को बर्बाद करने वाले मासूम बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है. गरीब बस्ती में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चे अज्ञानतावश नशे का शिकार हो रहे हैं. छपरा रेलवे जंक्शन, बस स्टैंड, समाहरणालय पथ, राजेंद्र स्टेडियम,
बाजार समिति, शिशु पार्क आदि स्थानों पर दोपहर और शाम के समय किसी कोने में चुपचाप सुलेशन या ऐसे ही किसी नशीली पदार्थ को सूंघते और उसका सेवन करते दर्जनों की संख्या में बच्चे मिल जायेंगे. सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन मासूम बच्चों को नशा करते समाज के हर तपके के लोग आये दिन देखते हैं, उसके बावजूद भी कोई इन्हें समझाने की कोशिश तक नहीं करता और न ही प्रशासनिक अधिकारियों को इन बच्चों की कोई चिंता होती है.
छह से पंद्रह वर्ष तक के बच्चे हो रहे शिकार : सुलेशन जैसी चीजों से नशा करने वाले अधिकतर बच्चों की उम्र छह से पंद्रह वर्ष के बीच होती है. वैसे बच्चे जो गरीबी के कारण सुबह घर से एक बोरे को लेकर सड़कों पर कचरा बीनने निकलते हैं, उन्हें इस नशे की लत लगती जा रही है. लगभग एक सप्ताह पहले शहर के समाहरणालय पथ के पास लगभग पांच वर्ष का एक मासूम बच्चा फटे कपड़ों में पॉलीथिन में सुलेशन रखकर सूंघते पाया गया था. शहर के एक सामाजिक कार्यकर्ता की निगाह जब उस लड़के पर गयी तो वह डर से भागने लगा. हालांकि बाद में उस बच्चे से पूछताछ की गयी तो उसने कबूला कि वह सुलेशन सूंघ रहा था. उसके जेब से सुलेशन का एक ट्यूब भी मिला था. शाम छह से आठ के बीच छपरा रेलवे जंक्शन कर आसपास रहने वाले गरीब बस्ती के मासूम भी एक समूह में नशा करते दिख जाते हैं.
बच्चों में हो रहा अपराध प्रवृत्ति का जन्म : नशे की लत से इन मासूमों का बचपन तो बर्बाद हो ही रहा है, साथ ही इनके अंदर अपराध की प्रवृत्ति का भी जन्म हो रहा है. नशे की चंगुल में बच्चों का मानसिक विकास रुक गया है. पैसे की जरूरत के लिए बच्चे छोटी-मोटी चोरी करने लगे हैं. कई बार लोग इन बच्चों को चोरी करते पकड़ते हैं और डांट डपट कर चले जाते हैं लेकिन जमीनी तौर पर इन्हें उचित मार्गदर्शन देने का प्रयास कहीं नहीं दिखता. वैसे ऐसे बच्चों को चिह्नित कर उन्हें सुधारने और शिक्षित करने के लिए बाल संरक्षण के तहत कई योजनाएं चलायी जा रही हैं, लेकिन इन योजनाओं पर एनजीओ के हावी हो जाने के कारण इन मासूमों का विकास महज कागजों में ही सिमट कर रह गया है. जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा कुछ एनजीओ के साथ मिलकर ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करने की बात कही जाती है पर नशे का शिकार हो रहे बच्चों की बढ़ती संख्या सरकारी दावों को धत्ता बता रही है.
क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता
सरकार के साथ मिलकर कार्य करने वाले एनजीओ को आगे आना होगा. कागजी आंकड़ों से निकलकर धरातल पर कार्य करना होगा. तभी इन बच्चों को इस लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है.
रामदयाल शर्मा, शिक्षाविद सह सामाजिक कार्यकर्ता
मेरे जैसी कुछ छात्राओं के प्रयास से गरीब बस्ती के बच्चों में जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. शिक्षा के प्रसार से ही नशा की लत छुड़ाने में मदद मिलेगी.
प्रीति कुमारी, राष्ट्रपति से सम्मानित समाजसेविका

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