पानी की कमी से आम जन जीवन हुआ अस्त व्यस्त
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पानी की तलाश में इनसान संग भटक रहे पशु
पानी की कमी से आम जन जीवन हुआ अस्त व्यस्त सरायरंजन प्रखंड की खेमैठ झील अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा सरायरंजन : कभी हरियाली से भरी खेमैठ झील गरमी के मौसम में राहत देने के लिए प्रसिद्ध थी. आज सरकार की उपेक्षा के कारण इसकी स्थिति राजस्थान की तरह हो गई है. मिथिलांचल के […]
सरायरंजन प्रखंड की खेमैठ झील अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा
सरायरंजन : कभी हरियाली से भरी खेमैठ झील गरमी के मौसम में राहत देने के लिए प्रसिद्ध थी. आज सरकार की उपेक्षा के कारण इसकी स्थिति राजस्थान की तरह हो गई है. मिथिलांचल के दुर्लभ धरोहर में से एक सरायरंजन प्रखंड की खेमैठ झील अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.
प्रखंड मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण लगमा गांव के पास 200 एकड़ से अधिक भूमि में फैली इस झील में सूर्योदय एवं सूर्यास्त के साथ प्राकृतिक मनोरम दृश्य बरबर कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था. दूसरे जिला से आये पशुपालक किसान अपने मवेशियों के साथ यहां डेरा-डंडा गार कर पशुओं का भुख प्यास बुझाते थे. लेकिन इस बार सुखाड़ की मार खेमैठ झील भी झेल रहा है. यहां पहले बारहो मास पानी रहा करती थी़ आज वहां जगल उपज रही है. बढ़ते तापमान के साथ पानी की मार से इंसान के साथ पशु भी बेहाल हो रहे हैं.
प्रखंड क्षेत्र में समस्तीपुर जिला के मोहनपुर प्रखंड के बिनगामा गांव के पशुपालक एवं नवादा, लखीसराय सहित अन्य जिलों से बड़ी संख्या में मवेशियों के साथ पशुपालक पानी की खोज में प्रखंड में आ रहे हैं. मवेशियों के साथ पशुपालक पानी की बुंद-बुंद को तरस रहे हैं. मोहनपुर प्रखंड के पशुपालक किसान नवल महतों, रामबाबू महतों, दयानंद महतों सहित दजर्नो किसानों ने बताया कि वहां नदी नाला, तालाब आदि चीज पूरी तरह से सूख गयी है.
मवेशियों के लिए कंठ तर करना भी बहुत बड़ा समस्या हो गया है. लेकिन अन्य साल की भांति इस बार भी पशुपालक पानी की आश में आए थे लेकिन यहां भी पानी का नसीब उन पशपालकों को नहीं हुआ. अब उन लोगों के जाए तो जाएं कहा की स्थिति उत्पन्न हो गई है. मोहनपुर प्रखंड के गांव से एक सौ से अधिक पशुपालक अपना घर परिवार छोड़कर मवेशियों के साथ पानी व चारा के खोज में निकल गए हैं. निजी बोरिंग, चापाकल, कुआं सूख गए हैं. मोहनपुर प्रखंड स्थिति सीतवाही चौर पूरी तरह से सुख गई है, जिस कारण उस गांव पानी की और भी समस्या उत्पन्न हो गई है.
पशुपालकों ने बताया कि पानी के अभाव में नील गाय व जंगली जानवर मर रहे हैं. इन किसानों के कमाई का मुख्य जरिया मवेशीयों का दूध बेचना और दूध बेच कर पैसा इक्कठा कर ये लोग अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. इन पशुपालकों को थोड़ी बहुत जमीन है तो फसल लगाकर जीवन बसड़ कर रहे हैं. जिस कारण दूसरे जिले से आ रहे पशुपालक अपने मवेशीयों के साथ एक सौ किलोमीटर चल कर लगमा गांव पहुंच रहे हैं.
पानी नहीं मिलने के कारण निराश हो रही है. जिस कारण वैसे लाचार पशुपालक अन्य जिलें में पलायन करने को बाध्य हो रहे है. आज लोगों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या पानी है. लोग पानी के लिए तरह-तरह के तरकीब सोच रहे हैं लेकिन उन्हे पानी नहीं मिल रही है. सरकार की ओर से किसी प्रकार से पानी की व्यवस्था नहीं की जा रही है. अगर सरकार पानी की समस्याओं पर ध्यान नहीं दी तो किताना जीवन काल के गाल में समा जाएगा, इसका अदांजा लगाना मुश्किल है.
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